क्या गृहस्थ धर्म और वैराग्य परस्पर विरोधी हैं? आधुनिक साधक की सबसे बड़ी चुनौती है संसार में रहकर वैराग्य का विकास। ईशावास्य उपनिषद से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता तक, सभी शास्त्रों में गृहस्थ जीवन में वैराग्य की स्पष्ट विधि मिलती है। पारिवारिक दायित्वों, कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारियों और सामाजिक कर्तव्यों के साथ कैसे आसक्ति से मुक्त हुआ जा सकता है? इस लेख में वेदांत के अनुसार संसार में रहकर वैराग्य की संपूर्ण व्यावहारिक विधि प्रस्तुत है।
