by Ajay Shukla | May 12, 2025 | Sanatan Soul
एक आदर्श गुरु के रूप में बुद्ध
वैशाख पूर्णिमा पर जब चांद अपने पूर्ण रूप में आकाश में खिलता है, तब हम बुद्ध पूर्णिमा मनाते हैं – वह दिन जब गौतम सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध की यात्रा पूरी हुई। राजकुमार से संन्यासी और फिर संन्यासी से बुद्ध – यह रूपांतरण हम सभी के जीवन के लिए एक प्रकाश स्तंभ है।
2025 में, जब हम अपने चारों ओर अनिश्चितता, तनाव और भौतिकवाद की चकाचौंध देखते हैं, बुद्ध के संदेश की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक है। बुद्ध एक आदर्श गुरु हैं क्योंकि उन्होंने केवल सिद्धांत ही नहीं दिए, बल्कि स्वयं के अनुभव से प्राप्त ज्ञान का मार्ग दिखाया। उन्होंने कहा, “अपने दीपक स्वयं बनो” – यह वाक्य हमें स्मरण दिलाता है कि सत्य की खोज बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर ही होती है।
ओशो ने एक बार कहा था, “बुद्ध ने कभी किसी को अपना अनुयायी नहीं बनाया, उन्होंने लोगों को बुद्ध बनाया।” यह वाक्य बुद्ध की शिक्षाओं का सार है। वे चाहते थे कि हर व्यक्ति स्वयं का गुरु बने, स्वयं की अंतर्यात्रा करे, और अपने भीतर के बुद्धत्व को खोजे।
बुद्धत्व क्या है?
बुद्धत्व शब्द का अर्थ है – जागृत अवस्था, बोध की वह अवस्था जहां मन की भ्रांतियां समाप्त हो जाती हैं। लेकिन यह सिर्फ एक शब्द या अवधारणा नहीं है। बुद्धत्व हमारा सत्य स्वरूप है, जो पहले से ही हमारे भीतर मौजूद है, केवल माया के आवरण से ढका हुआ है।
आचार्य प्रशांत जी कहते हैं, “बुद्धत्व कोई प्राप्त करने की वस्तु नहीं है, यह तो आपका मूल स्वभाव है। बस आवरणों को हटाना है।” यह बात कितनी सरल और गहरी है! हम सभी बुद्ध हैं, केवल हमें यह बात याद नहीं है। हमारा असली काम है – अपने वास्तविक स्वरूप को याद करना।
एक सरल उदाहरण से समझें – जैसे बादलों से ढका सूरज। सूरज कहीं गया नहीं, वह तो वहीं है, बस बादलों के कारण दिखाई नहीं देता। ठीक वैसे ही, हमारा बुद्धत्व हमेशा से हमारे भीतर है, बस विचारों, भावनाओं और अहंकार के बादलों से ढका हुआ है। जब ये बादल हट जाते हैं, तब हमारा सत्य स्वरूप, हमारा बुद्धत्व प्रकट होता है।
बुद्ध से हम क्या सीख सकते हैं?
1. मध्यम मार्ग – जीवन का संतुलित दर्शन
बुद्ध का पहला और सबसे महत्वपूर्ण उपदेश है – मध्यम मार्ग। न अति भोग, न अति त्याग। हमारे जीवन में यह कितना प्रासंगिक है!
आज के समय में देखें – कुछ लोग भौतिक सुखों के पीछे इतने भाग रहे हैं कि मानसिक शांति खो बैठे हैं, जबकि कुछ लोग आध्यात्मिकता के नाम पर जीवन से भाग रहे हैं। बुद्ध हमें सिखाते हैं कि दोनों अतियां हानिकारक हैं।
मेरे एक मित्र हैं जो एक सफल व्यवसायी हैं। वे काम में इतने व्यस्त थे कि परिवार, स्वास्थ्य, और खुद के लिए समय नहीं निकाल पाते थे। हृदय की बीमारी के बाद, उन्होंने बुद्ध की शिक्षाओं की ओर रुख किया। अब वे हर सुबह ध्यान करते हैं, परिवार के साथ समय बिताते हैं, और अपने व्यवसाय को भी संतुलित रूप से चलाते हैं। यह है मध्यम मार्ग का व्यावहारिक उदाहरण।
2. अनित्य – सब कुछ परिवर्तनशील है
बुद्ध का दूसरा महत्वपूर्ण उपदेश है – अनित्य, यानी सब कुछ परिवर्तनशील है। कोई भी चीज स्थायी नहीं है – न तो हमारे विचार, न भावनाएं, न सुख, न दुख, न शरीर, न संबंध।
कोरोना महामारी ने हम सभी को यह सच्चाई दिखाई। जिन्होंने अपने को अजेय समझा, वे भी एक सूक्ष्म वायरस के सामने अपनी असहायता महसूस करने लगे। जो सोचते थे कि उनकी नौकरी या व्यवसाय हमेशा रहेगा, उन्हें भी अचानक परिवर्तन का सामना करना पड़ा।
इस अनित्यता को समझना दुःख से मुक्ति का मार्ग है। जब हम जानते हैं कि सब कुछ बदलेगा, तो हम चीजों से इतना आसक्त नहीं होते। मेरे एक परिचित जो स्टॉक मार्केट के व्यापारी हैं, ने मुझे बताया कि जब से उन्होंने अनित्य के सिद्धांत को अपनाया है, तब से वे बाजार के उतार-चढ़ाव में भावनात्मक रूप से उलझते नहीं हैं। नतीजतन, उनके निर्णय अधिक स्पष्ट और लाभदायक होते हैं।
3. साक्षी भाव – विचारों से परे
बुद्ध की तीसरी शिक्षा है – साक्षी भाव विकसित करना। हम अपने विचारों, भावनाओं और कर्मों के साक्षी बनें, उनमें खो न जाएँ।
श्री श्री रविशंकर जी कहते हैं, “मन की शांति का रहस्य है – विचारों से दोस्ती नहीं, विचारों से दूरी।” जब हम अपने विचारों को देखते हैं, उनमें उलझते नहीं, तो हम अपने सत्य स्वरूप के करीब आते हैं।
मैंने स्वयं इसका अनुभव किया है। जब भी मन में नकारात्मक विचार आते हैं – चिंता, भय, क्रोध – मैं उन्हें देखता हूँ, एक पत्थर की तरह जो नदी में बह रहा है। मैं उन्हें रोकता नहीं, न ही उनमें उलझता हूँ। बस देखता हूँ और जाने देता हूँ। इससे मन में एक अद्भुत शांति आती है।
4. करुणा और मैत्री – हमारा असली स्वरूप
बुद्ध की चौथी शिक्षा है – करुणा और मैत्री। जब हम अपने सत्य स्वरूप को पहचानते हैं, तो स्वाभाविक रूप से हमारे भीतर से करुणा और प्रेम का प्रवाह होता है।
दलाई लामा जी कहते हैं, “करुणा हमारा असली स्वभाव है। जब हम करुणामय होते हैं, तो हम अपने असली स्वरूप में होते हैं।” यह बात बिल्कुल सत्य है।
आज के समय में, जब हम सोशल मीडिया पर द्वेष, क्रोध और विभाजन देखते हैं, तब करुणा और मैत्री की शिक्षा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। एक सरल अभ्यास है – हर सुबह 5 मिनट बैठकर सभी प्राणियों के कल्याण की भावना करें। इससे न केवल दूसरों के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदलता है, बल्कि हमारा स्वयं का मन भी शांत और प्रसन्न होता है।
बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष अभ्यास
इस बुद्ध पूर्णिमा पर, मैं आपके साथ कुछ सरल अभ्यास साझा करना चाहता हूँ जो आपको अपने सत्य स्वरूप, अपने भीतर के बुद्धत्व से जोड़ने में मदद कर सकते हैं:
1. आनापान ध्यान – 20 मिनट
बुद्ध द्वारा सिखाई गई सबसे सरल ध्यान विधि है – आनापान, यानी श्वास पर ध्यान केंद्रित करना। 20 मिनट के लिए शांत बैठकर केवल अपनी श्वास को देखें। जब श्वास अंदर जाए, जानें कि श्वास अंदर जा रही है। जब श्वास बाहर जाए, जानें कि श्वास बाहर जा रही है। मन भटके तो बिना निंदा के, धीरे से वापस श्वास पर ले आएँ।
2. मैत्री भावना – 10 मिनट
10 मिनट के लिए बैठकर सभी प्राणियों के कल्याण की भावना करें। पहले स्वयं के लिए, फिर अपने प्रियजनों के लिए, फिर तटस्थ लोगों के लिए, और अंत में अपने विरोधियों के लिए भी शांति और सुख की कामना करें।
3. अनित्य चिंतन – पूरे दिन
दिन भर में कुछ क्षण निकालकर यह देखें कि हर चीज कैसे बदल रही है – बादलों का आकार, पेड़ों की पत्तियों की हलचल, अपने विचारों का आना-जाना। यह अभ्यास आपको अनित्यता के बोध से भर देगा।
4. मध्यम मार्ग का अभ्यास – अपनी दिनचर्या में
अपनी दिनचर्या का विश्लेषण करें – क्या आप कहीं अति तो नहीं कर रहे? खाने में, काम में, मनोरंजन में, सोशल मीडिया पर समय बिताने में? क्या कहीं आप अपनी जरूरतों को नजरअंदाज तो नहीं कर रहे? संतुलन ढूंढें और एक संतुलित दिनचर्या बनाएँ।
अंतिम विचार: 2025 में बुद्ध का संदेश
2025 में, जब हम अनिश्चितता के समुद्र में नाव की तरह हिचकोले खा रहे हैं, बुद्ध का संदेश एक प्रकाश स्तंभ की तरह हमारा मार्गदर्शन करता है। प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, और डिजिटल क्रांति के इस युग में, हमें अपने मूल स्वभाव, अपने सत्य स्वरूप से जुड़े रहने की और भी अधिक आवश्यकता है।
जैसा कि निसर्गदत्त महाराज ने कहा था, “आप वही हैं जो आप खोज रहे हैं।” हमारी सारी खोज हमें वापस हमारे भीतर ही लाती है। बुद्धत्व कोई दूर की वस्तु नहीं, यह हमारा स्वाभाविक स्वरूप है, जिसे हम अनंत जन्मों से भूले हुए हैं।
इस बुद्ध पूर्णिमा पर, हम सब अपने भीतर के बुद्ध को जगाने का संकल्प लें। याद रखें, प्रकाश हमेशा से वहीं है – बस हमें अपनी आँखें खोलनी हैं।
“अप्पदीपो भव” – अपना दीपक स्वयं बनो!
बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ!
by Ajay Shukla | May 8, 2025 | Sanatan Soul
प्रस्तावना
जब शिव शब्द का उच्चारण होता है, तो एक विचित्र शांति का अनुभव होता है। क्या आपने कभी महसूस किया है कि शिव महज एक देवता नहीं, बल्कि चेतना की वह अवस्था हैं जिसकी ओर हम सभी की यात्रा है? मूर्तियों और अभिषेक के परे, शिव एक गहन वास्तविकता हैं – शाश्वत चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं।
शिव को समझना मन के परे जाने की बात है। आज इस लेख में, मैं आपके साथ अपने अनुभव और विभिन्न ज्ञानियों के अंतर्दृष्टि को साझा करना चाहता हूँ ताकि हम सब शिव के वास्तविक स्वरूप – उस शाश्वत चेतना को समझ सकें।
शिव: शुद्ध चैतन्य का प्रतीक
शिव क्या हैं? एक द्रष्टा, एक साक्षी, जो केवल ‘है’। वह अवस्था है जहाँ मन समाप्त होता है और केवल शुद्ध चेतना शेष रह जाती है।
ओशो कहते हैं, “ध्यान का अर्थ होता है – भीतर सिर्फ होना मात्र।” यही शिव की अवस्था है। जब हम अपने भीतर सिर्फ ‘होते’ हैं – न विचार, न वासना – तब शिव का आगमन होता है। इसीलिए उन्हें मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा गया है। मन का विनाश ही शिव का प्रादुर्भाव है।
कई वर्षों के शोध और अनुभव से मैंने समझा कि ध्यान ही मन की मृत्यु है। जब मन मरता है, तब हम शिव-स्वरूप हो जाते हैं। ऐसा मत सोचिए कि प्रलय कोई भविष्य की घटना है; जो साधक ध्यान में उतरता है, उसके भीतर तत्काल प्रलय घटित होती है – मन की प्रलय, विचारों की प्रलय। और उस शून्य में एक नई चेतना का जन्म होता है – शुद्ध, निर्मल, अखंड।
शिवलिंग: ध्यान का प्रतीक
क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे मंदिरों में शिवलिंग का आकार क्यों अंडाकार होता है? मैंने पाया कि यह आकृति ज्योति के आकार से मिलती-जुलती है।
जब हम ध्यान में गहराई से उतरते हैं, तो हमारे भीतर एक दिया जलता है। इस दिए की ज्योति का आकार ही शिवलिंग जैसा होता है। जैसे-जैसे यह ज्योति बढ़ती जाती है, हमारे चारों ओर एक आभामंडल बन जाता है, जिसकी आकृति भी अंडाकार होती है।
आश्चर्य की बात है कि आज की आधुनिक विज्ञान भी इस सत्य को मानने लगी है। रूस जैसे देशों में वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध किया गया है कि शांत व्यक्ति के चारों ओर ऊर्जा का मंडल अंडाकार हो जाता है, जबकि अशांत व्यक्ति के चारों ओर की ऊर्जा खंडित होती है – टुकड़े-टुकड़े, बिना किसी संतुलन के।
मेरे अपने ध्यान के अनुभवों में, मैंने पाया है कि जब मन शांत होता है, तो एक सुंदर, संतुलित ऊर्जा का अनुभव होता है, जो आंतरिक एकता और पूर्णता का प्रतीक है – ठीक वैसे ही जैसे शिवलिंग।
निर्गुण भक्ति और शिव
निर्गुण भक्ति में हम किसी आकार, रूप या गुण वाले देवता की उपासना नहीं करते, बल्कि उस निराकार, निर्गुण तत्व की अनुभूति करते हैं जो सर्वत्र व्याप्त है। शिव इसी निर्गुण तत्व के प्रतीक हैं।
साधना में अनुभूति हुए कि जब हम शिव को निर्गुण रूप में देखते हैं, तो वे मूर्तियों और मंदिरों में सीमित नहीं रहते, बल्कि हर श्वास, हर क्षण, हर अणु में हमारे साथ होते हैं। वे ही हमारे अंतर्तम में जो ‘देखने वाला’ है, जो ‘जानने वाला’ है, जो ‘अनुभव करने वाला’ है।
माँ शून्य के संग आत्मज्ञान की यात्रा
मेरे आध्यात्मिक सफर में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब मैं कैवल्याश्रम में माँ शून्य के सत्संग में गया। शून्य बोधिसत्व के मार्गदर्शन में माँ शून्य ज्ञान मार्ग की गुरु हैं। उनके माया और आत्मज्ञान के सत्संग में, मुझे एक गहरी अंतर्दृष्टि मिली।
माँ शून्य ने बताया कि आत्मज्ञान का मार्ग “नेति-नेति” (न यह, न यह) से होकर गुजरता है – यह वही दृष्टिकोण है जिसे महर्षि रमण ने अपने शिष्यों को सिखाया था। नेति-नेति का अर्थ है – जो कुछ भी परिवर्तनशील है, जो कुछ भी जन्म लेता और मरता है, जो कुछ भी आता और जाता है, वह हमारा वास्तविक स्वरूप नहीं है।
एक बार सत्संग के दौरान, माँ शून्य ने कहा, “अपने आप से पूछो – मैं क्या हूँ? क्या मैं यह शरीर हूँ? नहीं, क्योंकि शरीर जन्मता और मरता है। क्या मैं मन हूँ? नहीं, क्योंकि मन आता और जाता है। क्या मैं अपने विचार हूँ? नहीं, क्योंकि विचार उठते और मिटते हैं। मैं वह हूँ जो इन सबको देखता है, जो इन सबके परे है – शुद्ध चेतना, शिव स्वरूप।”
यह अनुभव अत्यंत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसने मुझे शिव के वास्तविक स्वरूप की झलक दिखाई – वह शुद्ध चेतना जो सब कुछ देखती है, पर स्वयं अदृश्य रहती है।
ज्ञान और ध्यान का संगम
ओशो कहते हैं, “ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा करते हो, वह ज्ञान नहीं है, ज्ञान का धोखा है – मिथ्या ज्ञान।”
अपने अनुभव से मैंने देखा है कि सच्चा ज्ञान पुस्तकों या शास्त्रों से नहीं, बल्कि गहरे अंतर्मनन और ध्यान से आता है। शिव इसी ज्ञान के आधार हैं – वह ज्ञान जो अनुभव से जन्मता है, जो चेतना की गहराइयों से उभरता है।
निर्गुण भक्ति के मार्ग पर चलते हुए, मैंने महसूस किया है कि यह ज्ञान कोई बाहरी वस्तु नहीं है, जिसे प्राप्त किया जाए। यह हमारे भीतर ही छिपा है, जैसे मिट्टी में दबा हुआ हीरा। ध्यान हमें इस हीरे को उजागर करने में मदद करता है।
साक्षी भाव: शिव का सार
शिव साक्षी भाव के प्रतीक हैं – वह जो सब कुछ देखता है, पर स्वयं अदृश्य रहता है; जो सब कुछ जानता है, पर स्वयं अज्ञेय है; जो सब कुछ अनुभव करता है, पर स्वयं अनुभव से परे है।
देखा गया है कि जब हम इस साक्षी भाव को अपनाते हैं, तो जीवन की अनेक समस्याएं स्वतः हल होने लगती हैं। क्रोध, भय, चिंता – ये सब भावनाएं तब रह जाती हैं जब हम इनके साक्षी बन जाते हैं, इनमें तादात्म्य नहीं करते।
गोरखनाथ जी कहते हैं, “मारो जोगी मारो, मारो मारन है मीठा।” यह मृत्यु अहंकार की मृत्यु है, मन की मृत्यु है। और इस मृत्यु से ही अमृत का जन्म होता है – वह अमृत जो शिव का स्वरूप है, जो शाश्वत चेतना है।
साक्षी भाव स्थिर होने का एक सरल तरीका है – अपने विचारों, भावनाओं और अनुभवों को देखना, बिना किसी निर्णय के, बिना किसी प्रतिक्रिया के। जैसे कोई नदी के किनारे बैठकर पानी का बहाव देखता है, वैसे ही अपने अंतर्जगत को देखना। यही साक्षी है, यही शिव है।
दैनिक जीवन में शिव चेतना
ऐसा नहीं है कि शिव चेतना केवल ध्यान में या आध्यात्मिक अभ्यास में ही अनुभव की जा सकती है। हमारे दैनिक जीवन में भी इसके अनुभव के अनेक क्षण होते हैं।
जब हम किसी कार्य में पूरी तरह से डूब जाते हैं – चाहे वह लेखन हो, चित्रकला हो, या सामान्य गृह कार्य – तब हम क्षण भर के लिए अपने ‘मैं’ (अहंकार) को भूल जाते हैं और शुद्ध क्रिया में तल्लीन हो जाते हैं। यही शिव अवस्था है।
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इसी प्रकार, जब हम प्रकृति की सुंदरता में खो जाते हैं, या किसी गहरे प्रेम के क्षण में, या गहरी शांति के अनुभव में – ये सभी शिव चेतना के झलक हैं।
मृत्यु और पुनर्जन्म का प्रतीक
शिव मृत्यु और पुनर्जन्म के देवता हैं। यह केवल शारीरिक मृत्यु और जन्म की बात नहीं है, बल्कि आंतरिक मृत्यु और पुनर्जन्म की बात है – पुराने ‘स्व’ की मृत्यु और नए ‘स्व’ का जन्म।
हर बार जब हम अपने अहंकार को त्यागते हैं, हर बार जब हम अपनी पुरानी धारणाओं को छोड़ते हैं, हर बार जब हम अपने भय और आसक्तियों से मुक्त होते हैं – हम शिव के मृत्यु और पुनर्जन्म के नृत्य में भाग लेते हैं।
निष्कर्ष: शिव चेतना का अनुभव
अंत में, कहना चाहता हूँ कि शिव को समझना कोई बौद्धिक व्यायाम नहीं है, बल्कि एक अनुभव है। यह अनुभव हमारे भीतर के शून्य से आता है, उस शून्य से जिसमें हम अपने विचारों, भावनाओं और धारणाओं से मुक्त हो जाते हैं।
निर्गुण भक्ति का मार्ग हमें इसी अनुभव की ओर ले जाता है – शिव चेतना के अनुभव की ओर। हमें जो वास्तव में चाहिए – शांति, आनंद, पूर्णता – वह बाहर नहीं, हमारे भीतर है, हमारी शिव चेतना में है।
अपनी यात्रा में, मैंने पाया है कि शिव चेतना का अनुभव किसी विशेष स्थान या समय तक सीमित नहीं है। यह हर क्षण संभव है, हर श्वास के साथ संभव है – जब हम साक्षी होते हैं, जब हम मौन में डूबते हैं, जब हम ‘होने’ मात्र का आनंद लेते हैं।
ध्यान रखें, यह यात्रा सरल नहीं है। मन बार-बार भटकाएगा, अहंकार बार-बार अपनी उपस्थिति जताएगा। लेकिन धीरज रखें। जैसे-जैसे आप साक्षी भाव में गहरे उतरेंगे, आप पाएंगे कि मन की चंचलता कम होती जाती है, अहंकार की पकड़ ढीली होती जाती है, और शिव चेतना का अनुभव अधिक स्पष्ट और निरंतर होता जाता है।
शिव चेतना का अनुभव वास्तव में मृत्यु जैसा है – मन की मृत्यु, अहंकार की मृत्यु। और इस मृत्यु के बाद जो जन्म होता है, वह अमृत का जन्म है – शाश्वत आनंद का, परम शांति का, असीम प्रेम का।
यदि आप शिव और चेतना के विषय में अधिक गहराई से जानना चाहते हैं, तो यह लेख “शिव कौन हैं? चेतना की यात्रा का मानचित्र“ अवश्य पढ़ें, जिसमें शिव चेतना के ग्यारह सोपानों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
ॐ नम: शिवाय।
संदर्भ: ओशो प्रवचन “शिव ही ज्ञानी है, ध्यान ही शिवलिंग है”
संदर्भ: आचार्य प्रशांत जी का “आज के समय में भक्ति उचित है, या ज्ञान” व्याख्यान (https://www.youtube.com/watch?v=Wu3tDCgrYe4)
by Ajay Shukla | Apr 29, 2025 | Trigyan
ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय॥ (हे प्रभु! मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥)
अपरोक्ष अनुभव और तर्क से पहचानें अपना असली स्वरूप
नमस्कार मित्रों! आज हम बात करेंगे आत्मज्ञान की – उस ज्ञान की, जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से परिचित कराता है। यह ज्ञान मार्ग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि जब हम स्वयं को ही नहीं जानते, तो बाकी सब ज्ञान कैसे सार्थक हो सकता है?
आपने कभी सोचा है कि आप वास्तव में हैं क्या? अधिकतर लोग कहेंगे, “मुझे पता है मैं क्या हूं, इसमें बताने की क्या जरूरत है?” लेकिन क्या वाकई हमें पता है? आइए, इस यात्रा पर निकलते हैं, जहां हम अपरोक्ष अनुभव और तर्क के माध्यम से अपने सच्चे स्वरूप को जानेंगे।
ज्ञान मार्ग क्या है?
शुरुआत करते हैं ज्ञान मार्ग को समझने से। ज्ञान मार्ग एक ऐसा आध्यात्मिक रास्ता है, जिसका मुख्य उद्देश्य अज्ञान का नाश करना है। अज्ञान क्या है? वो सभी मान्यताएं, अंधविश्वास, और धारणाएं जिन्हें हमने बिना सोचे-समझे, बिना प्रमाण के मान लिया है। जो दूसरों ने बताया और हमने सच मान लिया।
इस अज्ञान का नाश कैसे होगा? दो साधनों से:
- आपका अपना अनुभव (अपरोक्ष अनुभव)
- आपकी अपनी बुद्धि (तर्क)
ज्ञान मार्ग की खूबी यह है कि यहां किसी किताब या गुरु के वचनों को अंधे होकर नहीं माना जाता, बल्कि स्वयं के अनुभव से सत्य को जाना जाता है। आप जो देखते हैं, अनुभव करते हैं, और तर्क से समझते हैं – वही आपका ज्ञान बनता है।
ज्ञान मार्ग पर चलने से क्या लाभ होते हैं? शांति, सुख, आनंद, बुद्धि का विकास, मुक्ति, स्वतंत्रता – ये सभी फल मिलते हैं। क्योंकि अधिकतर लोग अज्ञान के कारण ही विभिन्न प्रकार के दुखों में फंसे रहते हैं।
ज्ञान मार्ग में तीन प्रकार का ज्ञान प्राप्त किया जाता है:
- आत्म ज्ञान – मैं क्या हूँ?
- माया का ज्ञान – जगत क्या है?
- ब्रह्म ज्ञान – परम सत्य क्या है?
आज हम आत्मज्ञान पर ध्यान केंद्रित करेंगे, क्योंकि यही तीनों में सबसे मूलभूत और महत्वपूर्ण है।
आत्मज्ञान: मैं क्या हूँ? तत्व क्या है? मैं कौन हूँ?
आत्मज्ञान का अर्थ है अपना तत्व जानना। तत्व क्या होता है? तत्व वह है जो सबसे आवश्यक है, जिसे हटाया नहीं जा सकता। आप में जो चीजें हैं, उनमें से सबसे आवश्यक, सबसे जरूरी क्या है – वही आपका तत्व है। अंग्रेजी में इसे essence कहते हैं।
इसे समझने के लिए एक सरल उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए आपके घर में लकड़ी से बना हुआ टेबल है। इस टेबल का आकार बदला जा सकता है, ऊंचाई बदली जा सकती है, रंग बदला जा सकता है, पॉलिश बदली जा सकती है। आप ड्रावर जोड़ सकते हैं, हटा सकते हैं, पहिए लगा सकते हैं या हटा सकते हैं – ये सब परिवर्तन हो सकते हैं।
लेकिन, अगर टेबल की लकड़ी ही निकाल दी जाए, तो क्या रहेगा? कुछ भी नहीं! इसका अर्थ है कि लकड़ी ही उस टेबल का तत्व है – वह अनिवार्य तत्व जिसके बिना टेबल का अस्तित्व ही नहीं है।
ठीक इसी तरह, हमें यह पता लगाना है कि हमारा तत्व क्या है – वह कौन सा अनिवार्य तत्व है, जिसके बिना हम नहीं रह सकते? और इसे जानने का सबसे अच्छा तरीका है, एक-एक करके उन सभी चीजों को हटाना जो हम नहीं हैं। जो अंत में बचेगा, वही हमारा तत्व है।
मैं क्या नहीं हूँ?
1. वस्तुएं
सबसे पहले, आपके आसपास की वस्तुएँ – फोन, कुर्सी, मेज, किताबें – आप इनमें से कोई नहीं हैं। क्यों? क्योंकि:
- ये आपसे अलग दिखाई देती हैं
- अगर ये बदलें या नष्ट हो जाएँ, तो आप नहीं बदलते या नष्ट नहीं होते
यहाँ हम दो महत्वपूर्ण नियम बना सकते हैं:
- जिसका अनुभव मुझे होता है, वो मैं नहीं हूँ
- जो बदलता है, वो मैं नहीं हूँ
इन दो नियमों का उपयोग करके, हम आगे बढ़ते हैं।
2. शरीर
क्या आप अपना शरीर हैं? शरीर का अनुभव होता है? हाँ। शरीर दिखाई देता है? हाँ। शरीर बदलता है? निश्चित रूप से!
जब आप पैदा हुए थे, तब का शरीर और अब का शरीर एक समान है क्या? बिल्कुल नहीं। शरीर हर पल बदल रहा है – 5 साल की उम्र में था, 10 साल में, 20 साल में, और अब भी – लगातार परिवर्तन। तो हमारे नियम कहते हैं, शरीर मैं नहीं हूँ।
और गहराई से सोचें – क्या आप अपने हाथ हैं? या पैर? या आँखें? या कोई अन्य अंग? अगर किसी का हाथ या पैर न हो, क्या वह अपूर्ण है? कभी नहीं! वह व्यक्ति पूर्ण है, क्योंकि उसका सच्चा स्वरूप इन अंगों से परे है।
हम कहते हैं, “हाथ मेरा है,” “पैर मेरा है,” न कि “मैं हाथ हूँ” या “मैं पैर हूँ”। यह दर्शाता है कि शरीर मेरा है, लेकिन मैं शरीर नहीं हूँ।
3. शारीरिक अनुभूतियाँ
शरीर में होने वाली अनुभूतियाँ – जैसे दर्द, भूख, प्यास, नींद, थकान – क्या ये मैं हूँ?
दर्द का उदाहरण लें। जब दर्द नहीं था, तब भी आप थे। जब दर्द हो रहा है, तब भी आप हैं। जब दर्द चला जाएगा, तब भी आप रहेंगे। आप कभी नहीं कहेंगे, “मैं वह दर्द हूँ, और दर्द चला गया तो मैं भी चला गया।”
इसलिए, कोई भी शारीरिक अनुभव आपका तत्व नहीं है। ये आपके अनुभव हैं, आप नहीं।
4. भावनाएँ
भावनाएँ – जैसे डर, गुस्सा, खुशी, दुख, प्रेम, घृणा – ये आती-जाती रहती हैं। कुछ पल पहले आप खुश थे, अब शायद चिंतित हैं, कुछ देर बाद शायद शांत हो जाएँगे।
प्रेम की भावना लें। जब आप किसी प्रियजन से मिलते हैं, तीव्र प्रेम महसूस होता है। कुछ समय बाद, काम में व्यस्त होने पर वह तीव्रता कम हो जाती है। लेकिन आप, जिन्हें यह अनुभव हो रहा है, वही रहते हैं।
तो भावनाएँ भी आपका तत्व नहीं हैं। वे आती-जाती हैं, बदलती हैं, और आप उनके अनुभवकर्ता हैं।
5. विचार
विचारों का क्या? हर सेकंड कई विचार आते और जाते हैं। एक क्षण में आप सोचते हैं कि क्या खाना बनाएँ, अगले क्षण में कार्यालय के काम के बारे में, फिर अपने परिवार के बारे में।
कोई भी विचार स्थायी नहीं है। वे सभी बदलते हैं। इसलिए, विचार भी आपका तत्व नहीं हो सकते।
6. इच्छाएँ
इच्छाएँ भी निरंतर बदलती रहती हैं। एक नया फोन चाहिए, फिर वह मिल गया, तो अब नई कार चाहिए, फिर बड़ा घर, फिर अच्छा स्वास्थ्य… यह क्रम कभी खत्म नहीं होता।
इच्छाएँ परिवर्तनशील हैं, जबकि आप, जिन्हें इन इच्छाओं का अनुभव हो रहा है, वही रहते हैं। तो इच्छाएँ भी आपका तत्व नहीं हैं।
7. स्मृति (मेमोरी)
स्मृति भी बदलती रहती है। कुछ याद रहता है, कुछ भूल जाते हैं। आपको याद है कि आपने कल क्या खाया था? शायद हाँ। और एक महीने पहले? शायद नहीं।
स्मृति चली गई, लेकिन आप वही हैं। इसलिए, स्मृति भी आपका तत्व नहीं है।
आपका नाम, आपकी पढ़ाई-लिखाई, आपका पेशा, आपके रिश्ते – ये सब स्मृति में हैं। अगर इन स्मृतियों को हटा दिया जाए, तो आप कहेंगे “मुझे याद नहीं,” लेकिन आप फिर भी वही रहेंगे।
8. स्त्री, पुरुष या किन्नर होना
स्त्री, पुरुष या किन्नर होना – ये शरीर के प्रकार हैं। और हम देख चुके हैं कि शरीर हमारा तत्व नहीं है। साथ ही, इनसे जुड़े संस्कार और भूमिकाएँ स्मृति और संस्कृति में हैं, जो भी हमारा तत्व नहीं हैं।
इसलिए, आपका तत्व न स्त्री है, न पुरुष, न किन्नर – यह इन सबसे परे है।
9. सपने
रात में सपने में, आपको अपनी एक छवि दिखाई देती है। वहां भी शरीर होता है, भावनाएँ होती हैं, विचार होते हैं। लेकिन जागने पर आप जानते हैं कि वह सब आप नहीं थे। वे केवल मानसिक अनुभव थे।
इसलिए, न तो जागृत अवस्था, न स्वप्न अवस्था, न सुषुप्ति (गहरी नींद) की अवस्था – इनमें से कोई भी आपका तत्व नहीं है। आप इन सभी अवस्थाओं के अनुभवकर्ता हैं।
तो मैं क्या हूँ?
हमने जगत के, शरीर के और मन के सभी अनुभवों को देख लिया। इनमें से कोई भी हम नहीं हैं। लेकिन फिर भी हम हैं, अस्तित्व में हैं। तो हम क्या हैं?
हम वह हैं जो इन सभी अनुभवों का अनुभव करता है – साक्षी, द्रष्टा, अनुभवकर्ता।
सभी बदलते हुए अनुभवों के बीच एक स्थिर तत्व है – जो देखता है, जानता है, अनुभव करता है, लेकिन स्वयं नहीं बदलता। वही हमारा तत्व है, वही हम हैं। इसे ही “साक्षी” कहते हैं।
साक्षी का अर्थ है – सभी अनुभवों का साक्षी, द्रष्टा। मैं जगत, शरीर और मन के सभी अनुभवों का साक्षी हूँ। यह साक्षी मेरा तत्व है, यही सबसे आवश्यक है। इसे हटा दें तो कुछ नहीं बचता।
साक्षी के गुण
1. निराकार और अपरिवर्तनशील
साक्षी का कोई आकार नहीं है, कोई रूप नहीं है। अगर इसका कोई रूप होता, तो यह दिख जाता और फिर अनुभव बन जाता। यह न भौतिक है, न मानसिक – यह परा-भौतिक और परा-मानसिक है।
साक्षी अपरिवर्तनशील है – यह कभी नहीं बदलता। यदि यह बदलता, तो यह आता-जाता अनुभव हो जाता, और हम नहीं होता।
2. अजन्मा, अजर, अमर
जन्म कैसे होता है? जब मिट्टी से घड़ा बनता है, तो घड़े का जन्म होता है – एक पदार्थ (मिट्टी) बदलकर एक नया रूप (घड़ा) लेता है। जन्म के लिए तीन चीजें जरूरी हैं: पदार्थ होना, बदलाव होना, और आकार लेना।
साक्षी में इनमें से कोई भी नहीं है – न पदार्थ है, न बदलाव है, न आकार है। इसलिए, साक्षी का जन्म नहीं होता – यह अजन्मा है।
ठीक इसी तरह, साक्षी बूढ़ा नहीं होता, इसे रोग नहीं होता – यह अजर है, अक्षय है। और क्योंकि इसका जन्म नहीं होता, इसलिए इसकी मृत्यु भी नहीं होती – यह अमर है।
हम शरीर की उम्र बढ़ने के साथ बदलते महसूस करते हैं, लेकिन अगर गहराई से देखें, तो वह अनुभवकर्ता जो 5 साल की उम्र में था, वही 50 साल की उम्र में भी है। साक्षी भाव कभी नहीं बदलता।
3. मुक्त और स्वतंत्र
जिसका जन्म नहीं होता, उसका पुनर्जन्म भी नहीं हो सकता। साक्षी जन्म-मृत्यु के चक्र से परे है – यह पहले से ही मुक्त है।
साक्षी को किसी जेल में बंद नहीं किया जा सकता, किसी पिंजरे में नहीं रखा जा सकता, किसी रस्सी से नहीं बांधा जा सकता। इसे मारा नहीं जा सकता, जलाया नहीं जा सकता, काटा नहीं जा सकता। यह बंधन-मुक्त है, स्वतंत्र है।
शरीर बंधन में हो सकता है, लेकिन साक्षी भाव सदा मुक्त है।
4. शांत और आनंदमय
साक्षी में कोई दर्द नहीं है, कोई सुख-दुख नहीं है, कोई इच्छा नहीं है, कोई चिंता नहीं है। यह शांत है।
साक्षी को कोई शिकायत भी नहीं है – यह केवल देखता है। इसीलिए यह आनंदमय है। आनंद का अर्थ यहाँ खुशी या हंसी नहीं, बल्कि पूर्ण शांति और संतुष्टि है।
गहरी नींद में जब कोई विचार या चिंता नहीं होती, वह शांति का अनुभव साक्षी का स्वभाव है – हमेशा शांत, हमेशा आनंदमय।
5. सर्वव्यापी और एक
क्या हर व्यक्ति में अलग-अलग साक्षी है? नहीं! यदि दो वस्तुओं के गुण मिलते हैं और दोनों के बीच में कोई सीमा नहीं है, तो वे एक ही होती हैं।
जैसे तालाब के दाएँ और बाएँ हिस्से में पानी एक ही है, वैसे ही सभी में साक्षी एक ही है। सभी साक्षियों के गुण समान हैं और उनके बीच कोई सीमा नहीं है। इसलिए, एक ही साक्षी है जो सभी में व्याप्त है।
यही अध्यात्मिक प्रेम है – एक होने का अनुभव। सभी का तत्व एक ही है, मैं ही सभी में हूँ।
आत्मज्ञान का सारांश
तो आत्मज्ञान क्या है? यह जानना कि:
- मैं जगत, शरीर, वस्तु, मन – इनमें से कोई भी नहीं हूँ
- मैं कोई अनुभव नहीं हूँ
- मुझमें परिवर्तन नहीं है – मैं नित्य हूँ
- मैं निराकार हूँ, अरूप हूँ
- मैं परा-भौतिक, परा-मानसिक हूँ
- मैं अजन्मा, अजर, अमर हूँ
- मैं बंधन-मुक्त, जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हूँ
- मैं शांत, आनंदमय हूँ
- मैं प्रेम हूँ – सभी में मैं ही व्याप्त हूँ
इस ज्ञान को केवल पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है। इसे अपने अनुभव से जांचना होगा। घर में बैठकर इस पर मनन कीजिए, विचार कीजिए, और देखिए कि क्या यह सत्य है।
जब आप जान लेते हैं कि आप साक्षी हैं, सभी अनुभवों के द्रष्टा हैं, तब आपको मुक्ति, शांति और आनंद की प्राप्ति होती है। यही सच्चा आत्मज्ञान है।
आशा है, यह लेख आपके आत्मज्ञान की यात्रा में सहायक सिद्ध होगा। याद रखिए, यह ज्ञान केवल बौद्धिक नहीं, बल्कि अनुभवजन्य है। इसे स्वयं अनुभव करें, तर्क से जांचें, और अपने जीवन में उतारें।
क्या आपके मन में कोई प्रश्न है? क्या आपने कभी आत्मज्ञान का अनुभव किया है? अपने विचार और अनुभव हमारे साथ टिप्पणी में साझा करें।
by Ajay Shukla | Apr 27, 2025 | Sanatan Soul
हमारे भीतर कई प्रकार की वृत्तियाँ होती हैं जो हमारे व्यक्तित्व और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती हैं। इन वृत्तियों में से एक महत्वपूर्ण है – बौद्धिक वृत्ति। बौद्धिक वृत्ति का अर्थ है तार्किकता, विश्लेषणात्मक सोच, ज्ञान की खोज और बौद्धिक उत्कृष्टता से जुड़ी प्रवृत्तियाँ।
ज्ञान मार्ग पर चलते हुए, हम इन वृत्तियों को ‘नियंत्रित’ नहीं करते, बल्कि ‘अनुभवकर्ता’ के रूप में इनका ‘अवलोकन’ करते हैं। अनुभवकर्ता को हम कई नामों से जानते हैं – दृष्टा, साक्षी, चैतन्य, आत्मन। आइए बौद्धिक वृत्ति के विभिन्न पहलुओं को साक्षी भाव से समझें।
1. व्यवहार (Behavior) में बौद्धिक वृत्ति का अवलोकन
विशेषज्ञता और अनुभव का अवलोकन
नीरज की कहानी: नीरज एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं। लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उनसे संपर्क करते हैं। एक दिन, एक युवा शोधकर्ता ने उनसे पूछा, “आप इतने अनुभवी कैसे बने?”
नीरज ने एक क्षण रुककर अपने व्यवहार पर चिंतन किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे भीतर एक ऐसी वृत्ति है जो मुझे निरंतर ज्ञान की खोज में रत रखती है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – विशेषज्ञता हासिल करने और समस्याओं का समाधान खोजने की प्रवृत्ति।”
नीरज इस वृत्ति के साक्षी बने, इससे तादात्म्य किए बिना।
एकांत और चयनात्मक सामाजिकता का साक्षित्व
अनुपमा की कहानी: अनुपमा एक प्रतिभाशाली लेखिका हैं। उन्हें एकांत पसंद है और वह सबके साथ घुलती-मिलती नहीं हैं। एक दिन, एक साक्षात्कारकर्ता ने उनसे पूछा, “क्या आप अंतर्मुखी हैं?”
“मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर एक ऐसी प्रवृत्ति है जो मुझे एकांत में रहने, गहन चिंतन करने के लिए प्रेरित करती है,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी बौद्धिक वृत्ति का एक पहलू है – विचारों और सृजनात्मकता के लिए आवश्यक एकांत की चाह।”
अनुपमा इस प्रवृत्ति की साक्षी बनीं, बिना इसे अच्छा या बुरा कहे।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे व्यवहार के बौद्धिक पैटर्न को देखता है, उन्हें स्वयं मान लिए बिना। जैसे दूरबीन से देखने वाला व्यक्ति सितारों से अलग होता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे बौद्धिक व्यवहार से अलग होता है।
पुस्तकालय संरक्षक की कहानी:
रमेश जी शहर के प्रमुख पुस्तकालय के संरक्षक थे। वह अपनी विशाल पुस्तक संग्रह और गहन ज्ञान के लिए जाने जाते थे। एक दिन, एक युवा छात्र ने उनसे पूछा, “रमेश जी, आप इतने सारे विषयों के बारे में इतना कुछ कैसे जानते हैं? और आप हमेशा अकेले क्यों रहना पसंद करते हैं?”
रमेश जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैंने अपने भीतर देखा है कि ज्ञान की प्यास और एकांत की चाह अक्सर साथ-साथ चलते हैं। यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – जानने की, समझने की, और गहरे विचारों के लिए अकेले रहने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इस वृत्ति का सिर्फ साक्षी बनता हूँ। मैं अपने आप को ‘बुद्धिमान’ या ‘ज्ञानी’ के रूप में परिभाषित नहीं करता। ये सिर्फ गुण हैं जो मेरे माध्यम से व्यक्त होते हैं, जैसे सूरज की किरणें खिड़की से घर में आती हैं। खिड़की किरणों का स्रोत नहीं है, सिर्फ माध्यम है।”
छात्र ने पूछा, “और एकांत प्रियता के बारे में?”
रमेश जी ने कहा, “जब मैं अकेला होता हूँ, तब भी मैं अपने एकांत की चाह का अवलोकन करता हूँ। यह एक आदत है, एक प्रवृत्ति है, मैं नहीं। कभी-कभी मैं समाज में भी होता हूँ, कभी-कभी अकेले। मैं दोनों स्थितियों का साक्षी हूँ, दोनों से न तो जुड़ा हूँ, न ही विमुख।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- बौद्धिक पैटर्न अवलोकन: एक दिन चुनें और उस दिन हर बार जब आप किसी समस्या का हल ढूंढते हैं या ज्ञान की खोज करते हैं, तो रुकें और इस प्रवृत्ति का अवलोकन करें।
- एकांत के क्षणों में साक्षित्व: जब आप अकेले हों, तो देखें कि आपका मन कैसे काम करता है। क्या आप विचारों में खोए रहते हैं? क्या आप इस एकांत का आनंद लेते हैं? बस देखें, निर्णय न करें।
- बुद्धिमत्ता के अहंकार का अवलोकन: जब कोई आपकी बुद्धि की प्रशंसा करे, तो अपने भीतर उठने वाले गर्व या अहंकार का अवलोकन करें। उसे न दबाएँ, न उसमें खोएँ, बस देखें।
2. वाणी (Speech) में बौद्धिक वृत्ति का अवलोकन
चयनात्मक और स्पष्ट संवाद का अवलोकन
विकास की कहानी: विकास एक प्रसिद्ध दार्शनिक हैं। वह बहुत कम बोलते हैं, लेकिन जब बोलते हैं तो लोग उनकी बात ध्यान से सुनते हैं। एक दिन, एक शिष्य ने पूछा, “गुरु जी, आप इतना कम क्यों बोलते हैं?”
विकास ने अपनी वाणी के पैटर्न पर विचार किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरी वाणी में एक चयनात्मकता है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – केवल तब बोलने की प्रवृत्ति जब कुछ सारगर्भित कहना हो।”
वह इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे स्वयं मान लिए बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारी वाणी के बौद्धिक पैटर्न को देखता है, उनके साथ तादात्म्य किए बिना। जैसे सरोवर जो उसमें प्रतिबिंबित होने वाले आकाश से अलग होता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे शब्दों से अलग होता है।
ग्रामीण शिक्षक की कहानी:
कमला देवी एक ग्रामीण स्कूल की शिक्षिका थीं। उनकी बात करने की शैली बहुत स्पष्ट और सीधी थी, लेकिन वे बहुत कम बोलती थीं। एक दिन, एक सहकर्मी ने पूछा, “कमला जी, आप इतना कम क्यों बोलती हैं, फिर भी जब बोलती हैं तो सभी आपकी बात सुनते हैं?”
कमला देवी ने शांति से कहा, “मैंने अपनी वाणी में एक पैटर्न देखा है। मुझे तब तक बोलना पसंद नहीं है जब तक कि वह आवश्यक न हो। यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – शब्दों का मूल्य समझने और उन्हें सोच-समझकर उपयोग करने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इस वृत्ति की सिर्फ साक्षी हूँ। कभी-कभी मैं अधिक बोलती हूँ, कभी बिल्कुल नहीं। मैं न तो अपने मौन पर गर्व करती हूँ, न ही उसके लिए क्षमा माँगती हूँ। मैं सिर्फ इसका अवलोकन करती हूँ – यह एक अभिव्यक्ति है, मैं नहीं।”
सहकर्मी ने पूछा, “क्या इससे आपको अकेला नहीं लगता?”
कमला देवी ने मुस्कुराकर कहा, “अकेलापन भी एक अनुभव है, जिसका मैं अवलोकन करती हूँ। कभी-कभी यह आता है, फिर चला जाता है। मैं न तो इससे चिपकती हूँ, न ही इससे भागती हूँ। मेरे शब्द कम हैं, लेकिन मेरा अवलोकन गहरा है।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- मौन अवलोकन: एक दिन चुनें जिसमें आप बहुत कम बोलें। हर बार जब आप बोलने की इच्छा महसूस करें, तो रुकें और उस इच्छा का अवलोकन करें।
- वाणी का वितरण: जब आप बातचीत में हों, तो देखें कि आप किस प्रकार के विषयों पर बात करना पसंद करते हैं और किन विषयों से बचते हैं।
- शब्द चयन का अवलोकन: अपने शब्दों के चयन पर ध्यान दें। क्या आप तार्किक, सटीक शब्द चुनते हैं? क्या आप सतही बातचीत से बचते हैं? सिर्फ देखें, निर्णय न करें।
3. विचार (Thoughts) में बौद्धिक वृत्ति का अवलोकन
तार्किक और सृजनात्मक विचारधारा का अवलोकन
आदित्य की कहानी: आदित्य एक सफल वास्तुकार हैं। उनका अधिकांश समय विचारों में बीतता है, जटिल समस्याओं के समाधान खोजने में। एक दिन, एक सहयोगी ने पूछा, “आप इतने रचनात्मक और व्यवस्थित कैसे हो सकते हैं एक साथ?”
आदित्य ने अपने विचारों के पैटर्न पर गौर किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे विचारों में एक संरचना और एक प्रवाह, दोनों हैं,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – जटिल समस्याओं को हल करने के लिए तार्किक और कल्पनाशील, दोनों तरह से सोचने की प्रवृत्ति।”
आदित्य इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे अपनी पहचान बनाए बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे विचारों के बौद्धिक पैटर्न को देखता है, उनमें खोए बिना। जैसे आकाश बादलों को आते-जाते देखता है, वैसे ही अनुभवकर्ता विचारों को देखता है।
दार्शनिक की कहानी:
प्रियंका जी एक गहन दार्शनिक थीं। वह जटिल दार्शनिक प्रश्नों पर विचार करती थीं और अपने विद्यार्थियों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करती थीं। एक दिन, एक विद्यार्थी ने उनसे पूछा, “प्रियंका जी, आप हमेशा इतने गहरे विचारों में कैसे डूबी रहती हैं? क्या आपका मन कभी थकता नहीं?”
प्रियंका जी ने गहरी साँस ली और कहा, “मैंने अपने विचारों का गहरा अध्ययन किया है। मैंने देखा है कि मेरा मन जटिल प्रश्नों की ओर खिंचता है, उन्हें सुलझाने की कोशिश करता है, हर पहलू को विश्लेषित करता है। यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – गहन चिंतन और विश्लेषण की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इन विचारों का सिर्फ साक्षी बनती हूँ। मैं इन्हें आने-जाने देती हूँ, इनमें खोती नहीं। मैं न तो इन विचारों को मैं मानती हूँ, न ही इनसे अलग। मैं सिर्फ देखती हूँ।”
विद्यार्थी ने पूछा, “क्या इससे विचारों की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होती?”
प्रियंका जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “उल्टा, इससे विचार अधिक स्पष्ट और गहरे होते हैं। जब हम विचारों से तादात्म्य नहीं करते, तो हम उनकी सीमाओं और पूर्वाग्रहों को अधिक स्पष्टता से देख पाते हैं। विचारों का साक्षी बनना उन्हें निर्मलता और विशुद्धता प्रदान करता है।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- विचार प्रवाह अवलोकन: हर दिन 10 मिनट के लिए शांत बैठें और अपने विचारों को बिना किसी निर्णय के बहते हुए देखें। क्या वे तार्किक हैं? कल्पनाशील हैं? व्यवस्थित हैं?
- विचार श्रेणीकरण: अपने विचारों को श्रेणियों में बाँटें – तार्किक, कल्पनाशील, विश्लेषणात्मक, भावनात्मक। उनकी प्रकृति का अवलोकन करें।
- विचार के स्रोत का अवलोकन: जब कोई नया विचार आए, तो स्वयं से पूछें: “यह कहाँ से आया?” विचारों के आगमन का अवलोकन करें, उन्हें अपना न मानें।
4. संबंध (Relationships) में बौद्धिक वृत्ति का अवलोकन
स्वतंत्रता और बौद्धिक संगति की चाह का अवलोकन
मेघना की कहानी: मेघना एक प्रतिभाशाली लेखिका हैं। वह भीड़ से दूर रहती हैं और उनका परिवार छोटा है। संबंधों में भी, वह कुछ दूरी बनाए रखती हैं, उन्हें अपनी निजता चाहिए। एक दिन, एक मित्र ने पूछा, “क्या आप अकेला महसूस नहीं करतीं?”
मेघना ने अपने संबंधों के पैटर्न पर विचार किया। “मैं देख रही हूँ कि मेरे संबंधों में एक दूरी और स्वतंत्रता है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – अपने विचारों और रचनात्मकता के लिए स्वतंत्रता चाहने की प्रवृत्ति।”
मेघना इस वृत्ति की साक्षी बनीं, इसे अच्छा या बुरा कहे बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे संबंधों के बौद्धिक पहलुओं को देखता है, उनमें उलझे बिना। जैसे प्रकाश जिन वस्तुओं को प्रकाशित करता है उनसे अप्रभावित रहता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे संबंधों को देखता है।
कलाकार की कहानी:
संजय एक प्रसिद्ध चित्रकार थे। उनके संबंध सीमित लेकिन गहरे थे। वह अधिकांश समय अकेले बिताते थे, अपनी कला में लीन। एक दिन, उनके एक मित्र ने पूछा, “संजय, तुम इतना अकेला कैसे रह लेते हो? और जब तुम किसी से जुड़ते हो, तो उसमें भी एक दूरी क्यों रखते हो?”
संजय ने अपनी तूलिका नीचे रखते हुए कहा, “मैंने अपने संबंधों में एक पैटर्न देखा है। मुझे स्वतंत्रता प्रिय है, और मैं अपने संबंधों में भी एक निश्चित दूरी चाहता हूँ। यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – अपने आंतरिक संसार को सुरक्षित रखने और उसे पोषित करने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करता हूँ। मैं इसे न तो बुरा मानता हूँ, न ही इसका बचाव करता हूँ। यह सिर्फ है, और मैं इसका अवलोकन करता हूँ।”
मित्र ने पूछा, “क्या इससे तुम्हारे संबंध कमजोर नहीं होते?”
संजय ने शांति से कहा, “जब मैं अपने संबंधों में इस दूरी का साक्षी बनता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि यह दूरी अक्सर गहरी समझ की जगह बनाती है। मैं जिन लोगों से जुड़ता हूँ, वे भी अपने आप में पूर्ण हैं, अपनी स्वतंत्रता में आनंदित हैं। हम एक-दूसरे पर निर्भर नहीं होते, बल्कि एक-दूसरे को समझते और सम्मान देते हैं।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- संबंध दूरी अवलोकन: अपने संबंधों में, जब आप निजता या दूरी चाहें, तो इस इच्छा का अवलोकन करें। इसे न तो दबाएँ, न ही इसके लिए अपराधबोध महसूस करें।
- बौद्धिक संगति तलाश: ध्यान दें कि आप किस प्रकार के लोगों के साथ जुड़ना पसंद करते हैं। क्या वे बुद्धिमान, रोचक, गहरे विचारों वाले हैं?
- स्वतंत्रता-निर्भरता संतुलन: अपने संबंधों में स्वतंत्रता और निर्भरता के बीच संतुलन का अवलोकन करें। एक दिन के लिए, अपने हर संबंध में इस संतुलन को नोट करें।
5. मनोरंजन (Recreation) में बौद्धिक वृत्ति का अवलोकन
ज्ञानवर्धक मनोरंजन की चाह का अवलोकन
अमित की कहानी: अमित को पढ़ना, नई कलाएँ सीखना और बुद्धिमान लोगों की संगति में समय बिताना पसंद है। एक दिन, एक मित्र ने पूछा, “तुम्हें पार्टियाँ या खेल क्यों नहीं पसंद?”
अमित ने अपने मनोरंजन के विकल्पों पर विचार किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे मनोरंजन के तरीकों में भी एक बौद्धिक पहलू है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – हर गतिविधि से कुछ सीखने और मानसिक रूप से उत्तेजित होने की प्रवृत्ति।”
अमित इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे अपनी पहचान बनाए बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन के बौद्धिक पहलुओं को देखता है, उनमें खोए बिना। जैसे आकाश विभिन्न रंगों के सूर्यास्त को देखता है पर स्वयं अपरिवर्तित रहता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन के तरीकों को देखता है।
सेवानिवृत्त प्रोफेसर की कहानी:
राजेंद्र जी एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर थे। अब अपने 70 के दशक में, वह अपना अधिकांश समय पढ़ने, वैज्ञानिक सम्मेलनों में भाग लेने और अपने समान रुचि वाले मित्रों के साथ गहन चर्चाओं में बिताते थे। एक दिन, उनके पोते ने पूछा, “दादाजी, आप टीवी क्यों नहीं देखते या पार्क में घूमने क्यों नहीं जाते जैसे अन्य दादाजी करते हैं?”
राजेंद्र जी ने अपने चश्मे को ठीक करते हुए कहा, “मैंने अपने मनोरंजन के तरीकों में एक पैटर्न देखा है। मुझे ऐसी गतिविधियाँ आकर्षित करती हैं जो मेरे मन को सक्रिय रखें, जो मुझे नया ज्ञान दें। यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – ज्ञान को मनोरंजन के रूप में देखने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करता हूँ। मैं इसे न तो श्रेष्ठ मानता हूँ, न ही इसका गर्व करता हूँ। यह सिर्फ है, जैसे कोई नदी अपने प्रवाह में बहती है।”
पोते ने फिर पूछा, “क्या आप कभी-कभी बस आराम करना या मनोरंजन के लिए कुछ करना नहीं चाहते?”
राजेंद्र जी ने मुस्कुराकर कहा, “जो दूसरों के लिए श्रम है, वह मेरे लिए आनंद है। जब मैं किसी नई अवधारणा को समझता हूँ, जब मैं किसी गहरे विचार में डूबता हूँ, तब मैं सबसे अधिक जीवंत महसूस करता हूँ। लेकिन यह भी एक वृत्ति है, मैं नहीं। मैं इसका भी साक्षी बनता हूँ, इसमें खोता नहीं।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- मनोरंजन विकल्प अवलोकन: एक सप्ताह तक अपने मनोरंजन के विकल्पों को नोट करें। कितने प्रतिशत ज्ञानवर्धक हैं? कितने केवल मनोरंजक?
- विविधता प्रयोग: अपने मनोरंजन में विविधता लाएँ। एक ऐसी गतिविधि चुनें जो आपके सामान्य बौद्धिक रुझान से अलग हो। अपनी प्रतिक्रिया का अवलोकन करें।
- ज्ञान और आनंद का संतुलन: हर मनोरंजक गतिविधि में ज्ञान और आनंद के संतुलन का अवलोकन करें। क्या आप सिर्फ ज्ञान के लिए आनंद का त्याग कर रहे हैं?
6. स्वास्थ्य (Health) में बौद्धिक वृत्ति का अवलोकन
बुद्धि-केंद्रित स्वास्थ्य दृष्टिकोण का अवलोकन
सुधीर की कहानी: सुधीर एक प्रसिद्ध गणितज्ञ हैं। वह अपने शरीर को सक्रिय रखने के लिए न्यूनतम प्रयास करते हैं, उनके लिए बुद्धि अधिक महत्वपूर्ण है। एक दिन, उनके डॉक्टर ने सुझाव दिया कि उन्हें अधिक व्यायाम करना चाहिए।
सुधीर ने अपने स्वास्थ्य के प्रति अपने दृष्टिकोण पर विचार किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे स्वास्थ्य के प्रति मेरा दृष्टिकोण मेरी बौद्धिक प्राथमिकताओं से प्रभावित है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी बौद्धिक वृत्ति का एक पहलू है – शारीरिक से अधिक मानसिक गतिविधियों को महत्व देने की प्रवृत्ति।”
सुधीर इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे निर्णित किए बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे स्वास्थ्य के प्रति हमारे बौद्धिक दृष्टिकोण को देखता है, उसमें फंसे बिना। जैसे कोई व्यक्ति अपने वाहन का रखरखाव करता है पर स्वयं को वाहन नहीं मानता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे शरीर के लिए हमारे विचारों को देखता है।
शोधकर्ता की कहानी:
वीणा एक प्रसिद्ध शोधकर्ता थीं। वह अपने अध्ययन और शोध में इतनी तल्लीन रहती थीं कि अक्सर खाना और नींद भूल जाती थीं। एक दिन, उनकी सहायक ने चिंता व्यक्त की, “वीणा जी, आप अपने शरीर की परवाह नहीं करतीं। आप सिर्फ अपने दिमाग के बारे में सोचती हैं।”
वीणा ने अपनी चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “मैंने अपने स्वास्थ्य के प्रति अपने रवैये में एक पैटर्न देखा है। मैं अक्सर अपने शारीरिक स्वास्थ्य को अपने बौद्धिक कार्यों के लिए गौण मानती हूँ। यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – शरीर से अधिक मन को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इस वृत्ति की साक्षी बनने का प्रयास करती हूँ। मैं देखती हूँ कि यह एक असंतुलन है – न तो स्वस्थ, न ही बुद्धिमान। जब मैं इसका अवलोकन करती हूँ, तो मैं धीरे-धीरे एक संतुलन की ओर बढ़ती हूँ, बिना इसे संघर्ष या त्याग के रूप में देखे।”
सहायक ने पूछा, “क्या अवलोकन से आपके स्वास्थ्य में सुधार होता है?”
वीणा ने कहा, “हाँ, क्योंकि जब मैं अपने स्वास्थ्य के प्रति अपने दृष्टिकोण का साक्षी बनती हूँ, तो मैं इसे अधिक पूर्णता से देख पाती हूँ। मैं देखती हूँ कि मेरा शरीर और मन अलग नहीं, बल्कि एक पूर्ण का हिस्सा हैं। जब मैं दोनों की देखभाल करती हूँ, तो मेरा बौद्धिक कार्य भी बेहतर होता है।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- शरीर-मन संबंध अवलोकन: हर दिन कुछ क्षण के लिए, अपने शरीर और मन के बीच संबंध का अवलोकन करें। क्या आप शरीर की उपेक्षा कर मन को प्राथमिकता देते हैं?
- बौद्धिक-शारीरिक संतुलन: एक दिन ऐसा चुनें जिसमें आप बौद्धिक और शारीरिक गतिविधियों के बीच संतुलन बनाएँ। हर बौद्धिक कार्य के बाद एक शारीरिक गतिविधि करें।
- स्वास्थ्य के प्रति बौद्धिक दृष्टिकोण का अवलोकन: अपने स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों में, देखें कि कितने तार्किक और कितने भावनात्मक या शारीरिक संकेतों पर आधारित हैं।
बौद्धिक वृत्ति की जागरूकता और उससे आगे बढ़ना
हमारी बौद्धिक वृत्ति – तार्किकता, विश्लेषण, ज्ञान की खोज और बौद्धिक उत्कृष्टता की प्रवृत्ति – हमारी मानवीय प्रकृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे बुरा या अच्छा मानने की आवश्यकता नहीं है। सच्चा मार्ग है इसके प्रति जागरूक होना, इसका अनुभवकर्ता बनना।
वरिष्ठ दार्शनिक का उपदेश:
एक प्रसिद्ध दार्शनिक अक्सर अपने शिष्यों से कहते थे, “बौद्धिक वृत्ति न तो अच्छी है, न बुरी – यह सिर्फ है। यह हमारी मानवीय प्रकृति का हिस्सा है। इससे लड़ो मत, इसे श्रेष्ठ मत मानो। बस इसके साक्षी बनो।”
एक बार एक शिष्य ने पूछा, “गुरुजी, क्या बुद्धि पर अत्यधिक निर्भरता, भावनाओं और शरीर की उपेक्षा, आध्यात्मिक विकास में बाधा नहीं है?”
दार्शनिक ने शांति से कहा, “जब तक तुम अपनी बुद्धि से तादात्म्य रखते हो, तब तक यह बाधा है। जब तुम इसके साक्षी बन जाते हो, तब यह सीढ़ी बन जाती है। क्योंकि इसे देखकर, तुम स्वयं को इससे परे जानते हो।”
शिष्य ने फिर पूछा, “तो क्या हमें अपनी बौद्धिक क्षमताओं का त्याग कर देना चाहिए?”
दार्शनिक ने कहा, “बिल्कुल नहीं। तुम अपनी बुद्धि का उपयोग करो, उसका आनंद लो, उससे सीखो। परंतु साथ ही साथ, इसके पीछे की वृत्तियों के साक्षी बनो। तब तुम्हारी बुद्धि तुम्हें बंधन में नहीं डालेगी, बल्कि तुम्हारे जीवन को समृद्ध करेगी।”
दैनिक जीवन में बौद्धिक वृत्ति के व्यावहारिक उदाहरण
1. कार्यालय में दिखाई देने वाली बौद्धिक वृत्ति
निखिल का अनुभव: निखिल एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करते हैं। एक बैठक में, उन्होंने एक जटिल समस्या का हल प्रस्तुत किया जिसे कोई और नहीं सुलझा पाया था। बैठक के बाद, उन्हें गर्व और श्रेष्ठता का भाव महसूस हुआ।
अनुभवकर्ता के रूप में, निखिल ने इस क्षण को देखा: “मैं देख रहा हूँ कि मेरे भीतर बौद्धिक श्रेष्ठता और मान्यता पाने की इच्छा है। यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – अपनी बुद्धि के माध्यम से प्रशंसा और महत्व पाने की प्रवृत्ति।”
इस जागरूकता से, वह अपने भावों से थोड़ा अलग हो सके और स्थिति को अधिक संतुलित दृष्टि से देख सके।
2. घर में दिखाई देने वाली बौद्धिक वृत्ति
सोनाली का अनुभव: सोनाली अपने बच्चे के स्कूल के कार्यक्रम में गईं। वहाँ अन्य माता-पिता सामाजिक बातचीत में व्यस्त थे, जबकि सोनाली को यह सब सतही और अरुचिकर लगा। वह अकेली बैठकर एक पुस्तक पढ़ने लगीं।
अनुभवकर्ता के रूप में, सोनाली ने इस प्रतिक्रिया को देखा: “मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर सतही सामाजिक बातचीत से बचने और अधिक अर्थपूर्ण या बौद्धिक गतिविधियों में संलग्न होने की इच्छा है। यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – गहराई और अर्थ की खोज की प्रवृत्ति।”
इस जागरूकता से, वह अपनी प्राथमिकताओं को स्वीकार कर सकीं, फिर भी कुछ सामाजिक संपर्क बनाने का प्रयास भी कर सकीं।
3. मित्रता का उदाहरण
राहुल का अनुभव: राहुल को एक सहकर्मी ने पार्टी में आमंत्रित किया। उन्होंने जब यह जाना कि पार्टी में गहरी बातचीत के बजाय सिर्फ मौज-मस्ती होगी, तो उन्होंने जाने से मना कर दिया।
अनुभवकर्ता के रूप में, राहुल ने इस निर्णय को देखा: “मैं देख रहा हूँ कि मेरे भीतर सिर्फ बौद्धिक रूप से संतोषजनक सामाजिक सेटिंग्स में शामिल होने की प्रवृत्ति है। यह मेरी बौद्धिक वृत्ति है – मानसिक उत्तेजना के बिना सामाजिक संपर्क से बचने की इच्छा।”
इस जागरूकता से, वह अपने विकल्पों को अधिक सोच-समझ कर चुन सके और भविष्य में शायद विभिन्न प्रकार के सामाजिक अवसरों के प्रति अधिक खुले रहने का निर्णय ले सके।
अनुभवकर्ता के दृष्टिकोण से बौद्धिक वृत्ति से ऊपर उठने की यात्रा
अरविंद की यात्रा:
अरविंद एक प्रसिद्ध प्रोफेसर थे। वह अपनी तीक्ष्ण बुद्धि, विश्लेषणात्मक क्षमता और गहन ज्ञान के लिए जाने जाते थे। वह अपने आप को ‘बौद्धिक व्यक्ति’ के रूप में देखते थे और इस पहचान पर गर्व करते थे। फिर भी, अंदर से वह अक्सर अकेला और असंतुष्ट महसूस करते थे।
एक दिन, एक आध्यात्मिक पुस्तक पढ़ते हुए, उन्हें एक अंतर्दृष्टि मिली: “मैं अपनी बुद्धि नहीं हूँ। मैं अपने विचारों, अपने ज्ञान, अपनी बौद्धिक उपलब्धियों से परे हूँ।”
अरविंद ने अपनी बौद्धिक वृत्ति को देखना शुरू किया:
- वह देखते कि कैसे वह हर चीज को विश्लेषित और वर्गीकृत करते हैं
- वह देखते कि कैसे वह बातचीत में अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता दिखाना चाहते हैं
- वह देखते कि कैसे वह भावनात्मक और शारीरिक अनुभवों से बचते हैं, उन्हें कम महत्वपूर्ण मानते हैं
वह इन सब प्रवृत्तियों के साक्षी बनते गए, न इनसे लड़े, न ही इनमें खोए।
धीरे-धीरे, एक अद्भुत परिवर्तन आया। जब आप किसी वृत्ति के साक्षी बनते हैं, तो उसकी पकड़ कमजोर हो जाती है। अरविंद ने पाया कि वह अब भी अपनी बुद्धि का उपयोग कर सकते थे, ज्ञान का आनंद ले सकते थे, लेकिन वह इसके साथ तादात्म्य नहीं करते थे। उन्होंने अपने जीवन में भावनाओं, शरीर और अन्य अनुभवों के लिए भी जगह बनाई। वह अधिक संतुलित, अधिक पूर्ण बन गए।
एक दिन, एक छात्र ने उनसे पूछा, “प्रोफेसर, आप इतने बुद्धिमान होने के बावजूद इतने विनम्र और संतुलित कैसे रह पाते हैं? आप अपनी बुद्धि पर इतना गर्व क्यों नहीं करते?”
अरविंद ने मुस्कुराकर कहा, “क्योंकि मैंने अपनी बौद्धिक वृत्ति को देखना सीख लिया है। जब मैं देखता हूँ कि मेरे अंदर बौद्धिक श्रेष्ठता दिखाने, हर चीज को जानने, हर समस्या को हल करने की इच्छा जागती है, तो मैं उसका साक्षी बनता हूँ, उसमें खोता नहीं। मैं अपनी बुद्धि नहीं हूँ, न ही अपना ज्ञान। मैं इससे कहीं गहरा और विशाल हूँ – मैं अनुभवकर्ता हूँ, साक्षी हूँ, चैतन्य हूँ।”
सत्य जानने के लिए दो महत्वपूर्ण नियम
बौद्धिक वृत्ति के संदर्भ में, सत्य जानने के दो महत्वपूर्ण नियम हैं:
1. जिसका अनुभव मुझे हो गया, वह मैं नहीं हूँ
हम अपने विचारों, ज्ञान, और बौद्धिक क्षमताओं का अनुभव करते हैं। लेकिन हम इनसे परे हैं। जैसे आकाश बादलों को अनुभव करता है लेकिन स्वयं बादल नहीं बनता, वैसे ही हम विचारों का अनुभव करते हैं लेकिन स्वयं विचार नहीं हैं।
उदाहरण: जब लोग आपको ‘बुद्धिमान’ कहते हैं, तो आप कहते हैं, “मैं बुद्धिमान हूँ।” लेकिन वास्तव में, आप वह हैं जो इस बुद्धि को जानता है, देखता है, अनुभव करता है। आप बुद्धि नहीं, बुद्धि के अनुभवकर्ता हैं।
2. जिस चीज़ में परिवर्तन होता है, वह सत्य नहीं
हमारे विचार, ज्ञान और बौद्धिक क्षमताएँ निरंतर परिवर्तनशील हैं। आज आप एक विषय के विशेषज्ञ हैं, कल एक नया अनुसंधान आपके ज्ञान को अप्रासंगिक बना सकता है। आज आप एक समस्या हल कर सकते हैं, कल एक नई समस्या आपको परेशान कर सकती है। जो परिवर्तनशील है, वह सत्य कैसे हो सकता है?
सत्य वह है जो सदा अपरिवर्तित रहता है – वह अनुभवकर्ता, वह साक्षी, वह चैतन्य जो इन सभी परिवर्तनों को देखता है।
उदाहरण: आपकी बौद्धिक क्षमताएँ जीवन भर बदलती रहती हैं – बचपन में सीखना, युवावस्था में विकसित होना, वृद्धावस्था में कुछ क्षमताओं का क्षीण होना। लेकिन जो इन सब परिवर्तनों को देखता है, वह नहीं बदलता। वही सत्य है, वही आपका वास्तविक स्वरूप है।
निष्कर्ष: बौद्धिक वृत्ति से परे जीवन की यात्रा
बौद्धिक वृत्ति – तार्किकता, विश्लेषण, ज्ञान की खोज और बौद्धिक उत्कृष्टता की प्रवृत्ति – मानव स्वभाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न तो अच्छी है, न बुरी – यह सिर्फ है।
जब हम अनुभवकर्ता होते हैं – इन बौद्धिक वृत्तियों के साक्षी, दृष्टा – तब हम इनके प्रभाव से स्वतंत्र हो जाते हैं। हम इनसे लड़ते नहीं, इन्हें श्रेष्ठ नहीं मानते, इन्हें अस्वीकार नहीं करते – हम सिर्फ इन्हें देखते हैं।
और इस देखने में, एक अद्भुत परिवर्तन होता है। हम अपने अंदर एक ऐसे स्थान को पाते हैं जो बौद्धिक उपलब्धियों पर निर्भर नहीं है। हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं, जो बौद्धिक वृत्ति से परे है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी बौद्धिक क्षमताओं का त्याग कर दें। बल्कि, हम इन सबको अधिक स्वतंत्रता, सहजता और संतुलन से उपयोग करते हैं – इनके गुलाम बने बिना, इनकी श्रेष्ठता पर गर्व किए बिना, इनकी सीमाओं से निराश हुए बिना।
आज ही से अपने जीवन में बौद्धिक वृत्ति के प्रति साक्षी भाव विकसित करें। अपने विचारों, अपनी तार्किक क्षमताओं, अपनी बौद्धिक उपलब्धियों का अवलोकन करें। उन्हें न तो श्रेष्ठ कहें, न हीन। बस देखें, और उस देखने में स्वतंत्रता पाएँ।
याद रखें, आप अपनी बुद्धि के स्वामी नहीं, न ही दास – आप उसके साक्षी हैं, अनुभवकर्ता हैं, आत्मन हैं।
व्यावहारिक अभ्यास: दैनिक जीवन में बौद्धिक वृत्ति का साक्षी बनना
सुबह का अभ्यास:
दिन की शुरुआत में 5 मिनट शांति से बैठकर अपने आने वाले विचारों का अवलोकन करें। देखें कि आपका मन किस प्रकार की चिंताओं, योजनाओं या विश्लेषणों में व्यस्त है। स्वयं से कहें: “मैं इन विचारों का साक्षी हूँ, मैं ये विचार नहीं हूँ।”
कार्य के दौरान:
जब आप किसी समस्या पर काम कर रहे हों या कोई निर्णय ले रहे हों, तो बीच-बीच में रुकें और अपनी सोच प्रक्रिया का अवलोकन करें। देखें कि आप कैसे विश्लेषण करते हैं, कैसे निष्कर्ष निकालते हैं।
बातचीत के समय:
किसी से बात करते समय, अपने भीतर उठने वाली प्रतिक्रियाओं का अवलोकन करें। क्या आप अपनी बुद्धिमत्ता दिखाना चाहते हैं? क्या आप दूसरों के विचारों का विश्लेषण कर रहे हैं? बस देखें, निर्णय न करें।
शाम का अभ्यास:
दिन के अंत में, अपनी बौद्धिक गतिविधियों पर चिंतन करें। कहाँ आपने अपनी बौद्धिक वृत्ति के साथ तादात्म्य किया? कहाँ आप साक्षी बने रहे? इसे डायरी में लिख सकते हैं।
एक आखिरी विचार
ज्ञान मार्ग पर चलते हुए, हम अक्सर अपनी बौद्धिक क्षमताओं को ही सत्य की खोज का माध्यम मान लेते हैं। लेकिन सच्चा ज्ञान तब उदय होता है जब हम अपनी बुद्धि के भी साक्षी बन जाते हैं। जब हम देखते हैं कि बुद्धि भी एक उपकरण है, हमारा वास्तविक स्वरूप नहीं।
जैसे दीपक अपने प्रकाश से अन्य वस्तुओं को प्रकाशित करता है, वैसे ही हमारी चेतना हमारी बुद्धि को प्रकाशित करती है। दीपक स्वयं को देखने के लिए किसी अन्य दीपक की आवश्यकता नहीं होती; वैसे ही हमारा वास्तविक स्वरूप स्वयं-प्रकाशित है, स्वयं-ज्ञात है।
इसलिए, अपनी बौद्धिक वृत्ति का आनंद लें, उसका सम्मान करें, उसका उपयोग करें – पर याद रखें, आप उससे कहीं अधिक विशाल और गहरे हैं। आप अनुभवकर्ता हैं, साक्षी हैं, चैतन्य हैं, आत्मन हैं।
by Ajay Shukla | Apr 27, 2025 | Sanatan Soul
हमारे भीतर कई प्रकार की वृत्तियाँ होती हैं जो हमारे व्यक्तित्व और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती हैं। इन वृत्तियों में से एक महत्वपूर्ण है – भाव वृत्ति। भाव वृत्ति का अर्थ है हमारी भावनात्मक प्रवृत्तियाँ, जो हमारे व्यवहार, वाणी, विचार, संबंध और स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
ज्ञान मार्ग पर चलते हुए, हम इन वृत्तियों को ‘नियंत्रित’ नहीं करते, बल्कि ‘अनुभवकर्ता’ के रूप में इनका ‘अवलोकन’ करते हैं। अनुभवकर्ता को हम कई नामों से जानते हैं – दृष्टा, साक्षी, चैतन्य, आत्मन। आइए भाव वृत्ति के विभिन्न पहलुओं को साक्षी भाव से समझें।
1. व्यवहार (Behavior) में भाव वृत्ति का अवलोकन
भावनात्मक उतार-चढ़ाव का अवलोकन
राजेश की कहानी: राजेश अपने कार्यालय में अच्छे कार्य के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उनके सहकर्मी उन्हें “भावुक” कहते हैं। कभी वे बहुत उत्साहित होते हैं, तो कभी उदास। एक दिन, एक मित्र ने पूछा, “तुम्हारे मूड इतनी जल्दी कैसे बदल जाते हैं?”
राजेश ने एक क्षण रुककर अपने व्यवहार पर चिंतन किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे भीतर एक ऐसी वृत्ति है जो मुझे भावनाओं के साथ बहा ले जाती है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति है – भावनाओं के प्रवाह में बहने की प्रवृत्ति।”
राजेश इस वृत्ति के साक्षी बने, इससे तादात्म्य किए बिना।
अंतर्मुखी प्रवृत्ति का साक्षित्व
सीमा की कहानी: सीमा को हमेशा अकेले रहना पसंद था। वह सबके साथ घुलती-मिलती नहीं थी, बल्कि अपनी दुनिया में रहना पसंद करती थी। एक दिन, एक सहेली ने उसे “अंतर्मुखी” कहा।
“मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर एक ऐसी प्रवृत्ति है जो मुझे अकेले रहने, भीड़ से दूर रहने के लिए प्रेरित करती है,” उसने स्वयं से कहा। “यह मेरी भाव वृत्ति का एक पहलू है – अपने आंतरिक संसार में डूबे रहने की इच्छा।”
सीमा इस प्रवृत्ति की साक्षी बनीं, बिना इसे अच्छा या बुरा कहे।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे व्यवहार के भावनात्मक पैटर्न को देखता है, उन्हें स्वयं मान लिए बिना। जैसे आकाश में बादलों को देखने वाला व्यक्ति बादलों से अलग होता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारी भावनाओं से अलग होता है।
रिक्शा चालक की कहानी:
रामू 20 वर्षों से रिक्शा चला रहे थे। कभी-कभी वे यात्रियों से बातें करते, उनके जीवन के बारे में सुनते, और कभी-कभी अपने दिल की बात भी कह देते। एक दिन, एक नियमित यात्री ने उनसे पूछा, “रामू जी, आप कभी नाराज या परेशान नहीं होते, हमेशा शांत रहते हैं?”
रामू ने मुस्कुराते हुए कहा, “बाबूजी, मैंने अपने अंदर देखा है कि भावनाएँ आती हैं और जाती हैं, जैसे मौसम बदलता है। कभी ख़ुशी, कभी दुःख, कभी गुस्सा। पहले मैं इन भावनाओं में बह जाता था। यदि कोई यात्री कटु शब्द कहता, तो मुझे गुस्सा आ जाता। यदि अच्छा दिन होता, तो मैं बहुत खुश हो जाता।”
“लेकिन धीरे-धीरे, मैंने इन भावनाओं को देखना सीख लिया। जब कोई मुझसे बुरा व्यवहार करता है, मैं देखता हूँ कि मेरे भीतर गुस्सा उठता है। यह मेरी भाव वृत्ति है – बाहरी घटनाओं से प्रभावित होने की प्रवृत्ति। लेकिन मैं उस गुस्से का सिर्फ साक्षी बनता हूँ। मैं उसमें खो नहीं जाता।”
यात्री ने पूछा, “और इससे क्या होता है?”
रामू ने कहा, “इससे मैं हर परिस्थिति में शांत रह पाता हूँ। भावनाएँ आती हैं, मैं उन्हें देखता हूँ, और वे चली जाती हैं – बिना मुझे बहाए, बिना मेरे जीवन को अस्त-व्यस्त किए।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- भावना अवलोकन: एक दिन चुनें और उस दिन हर महत्वपूर्ण भावनात्मक प्रतिक्रिया को नोट करें। उस भावना का नाम दें और स्वयं से पूछें: “क्या मैं इस भावना से अधिक हूँ?”
- भावनात्मक ट्रिगर्स की पहचान: अपने उन ट्रिगर्स (उत्तेजकों) को पहचानें जो आपमें मजबूत भावनात्मक प्रतिक्रिया पैदा करते हैं। इन्हें जानकर, आप अधिक साक्षी भाव से प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
- शारीरिक संवेदनाओं की जागरूकता: जब भी कोई भावना उत्पन्न हो, अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों (जैसे हृदय गति, साँस, तनाव) को महसूस करें। भावनाओं का शरीर पर प्रभाव देखें।
2. वाणी (Speech) में भाव वृत्ति का अवलोकन
चयनात्मक संवाद का अवलोकन
विनोद की कहानी: विनोद अजनबियों से बात करना पसंद नहीं करते थे, लेकिन अपने करीबी मित्रों के साथ घंटों बातें कर सकते थे। एक दिन, उनकी पत्नी ने कहा, “आप अजनबियों से इतना कम क्यों बोलते हैं?”
विनोद ने अपनी वाणी के पैटर्न पर विचार किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरी वाणी में एक चयनात्मकता है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति है – सिर्फ उन्हीं से गहरी बात करने की इच्छा जिनके साथ मैं भावनात्मक संबंध महसूस करता हूँ।”
वह इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे स्वयं मान लिए बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारी वाणी के भावनात्मक पैटर्न को देखता है, उनके साथ तादात्म्य किए बिना। जैसे दर्पण प्रतिबिंब दिखाता है पर प्रतिबिंब से प्रभावित नहीं होता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे शब्दों से अलग होता है।
कवि की कहानी:
सुरेंद्र एक छोटे से शहर के कवि थे। उनकी कविताएँ भावनाओं से भरी होती थीं – कभी प्रेम, कभी विरह, कभी आक्रोश। एक दिन, एक युवा कवि ने उनसे पूछा, “आप अपनी कविताओं में इतनी गहरी भावनाएँ कैसे व्यक्त कर पाते हैं?”
सुरेंद्र ने गहरी साँस ली और कहा, “मैंने अपने भीतर एक पैटर्न देखा है। जब मैं बोलता या लिखता हूँ, तो मेरे भीतर से एक भावनात्मक प्रवाह आता है। यह मेरी भाव वृत्ति है – अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने की, अपने आंतरिक संसार को व्यक्त करने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं सिर्फ इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करता हूँ। जब मैं लिखता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि मेरे शब्द कहाँ से आ रहे हैं – सतही भावनाओं से या गहरे सत्य से। और फिर मैं अपने शब्दों को उसी के अनुसार ढालता हूँ।”
युवा कवि ने पूछा, “क्या यह मुश्किल नहीं है, भावनाओं का साक्षी बनना और फिर भी उन्हें व्यक्त करना?”
सुरेंद्र ने मुस्कुराकर कहा, “शुरू में था। लेकिन जब आप अपनी भावनाओं का साक्षी बनना सीख जाते हैं, तो आपके शब्द अधिक सत्य, अधिक गहरे और कम भ्रामक होते जाते हैं। आप भावनाओं को महसूस करते हैं, लेकिन उनके गुलाम नहीं बनते।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- मौन अवलोकन: अगली बार जब आप किसी संवाद में हों, तो बोलने से पहले 3 सेकंड रुकें। अपने भीतर उठने वाली भावना को देखें, फिर बोलें।
- भावनात्मक शब्दावली: एक सप्ताह तक, अपने द्वारा उपयोग किए जाने वाले भावनात्मक शब्दों को नोट करें (जैसे “नाराज”, “खुश”, “निराश”)। देखें कि आप किन भावनाओं को अधिक व्यक्त करते हैं।
- सुनने का अभ्यास: एक दिन ऐसा चुनें जब आप अधिक सुनें, कम बोलें। देखें कि क्या आपके भीतर बोलने की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
3. विचार (Thoughts) में भाव वृत्ति का अवलोकन
भावना-आधारित निर्णयों का अवलोकन
करण की कहानी: करण अपने निर्णय तर्क से कम, भावनाओं से अधिक लेते थे। वह अक्सर कहते, “मैं महसूस करता हूँ कि यह सही है,” या “यह मुझे अच्छा नहीं लग रहा।” एक दिन, एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णय के बाद, उन्होंने इस पैटर्न पर गौर किया।
“मैं देख रहा हूँ कि मेरे निर्णय अक्सर मेरी भावनाओं पर आधारित होते हैं, तर्क पर नहीं,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति है – अपनी अंतर्ज्ञान और भावनाओं पर भरोसा करने की प्रवृत्ति।”
करण इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे अच्छा या बुरा कहे बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे विचारों के भावनात्मक आधार को देखता है, उनमें उलझे बिना। जैसे आकाश विभिन्न रंगों के सूर्यास्त को देखता है पर स्वयं रंगहीन रहता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे भावनात्मक विचारों से अलग रहता है।
व्यापारी की कहानी:
कृष्ण एक सफल व्यापारी थे। वे अपने निर्णय अक्सर “दिल की आवाज” सुनकर लेते थे। एक दिन, एक युवा उद्यमी ने उनसे पूछा, “आप अपने व्यापारिक निर्णय कैसे लेते हैं? क्या आप डेटा और विश्लेषण का उपयोग करते हैं?”
कृष्ण ने मुस्कुराकर कहा, “मैंने अपने विचारों का गहरा अध्ययन किया है। मैंने देखा है कि मेरे मन में विचार और भावनाएँ एक साथ आते हैं। जब मुझे कोई निर्णय लेना होता है, तो मैं ना सिर्फ तथ्यों को देखता हूँ, बल्कि इस बारे में अपनी भावनाओं को भी महसूस करता हूँ। यह मेरी भाव वृत्ति है – भावनाओं और अंतर्ज्ञान पर निर्भर होने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इन भावनाओं का सिर्फ साक्षी बनता हूँ। मैं इन्हें आने-जाने देता हूँ, इनसे घबराता नहीं। मैं देखता हूँ – क्या यह भावना मेरे अनुभव से आ रही है या भय से? क्या यह अंतर्ज्ञान है या सिर्फ एक आवेग?”
युवा उद्यमी ने पूछा, “और इससे आपके निर्णय बेहतर होते हैं?”
कृष्ण ने कहा, “हाँ, क्योंकि मैं न तो पूरी तरह से तर्क पर निर्भर होता हूँ, न ही पूरी तरह से भावनाओं पर। मैं दोनों को देखता हूँ, उनके साक्षी बनता हूँ, और फिर एक संतुलित निर्णय लेता हूँ।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- निर्णय अवलोकन: अगली बार जब आप कोई महत्वपूर्ण निर्णय लें, तो रुकें और अपने आप से पूछें: “इस निर्णय के पीछे कौन सी भावना है?”
- भावना vs तर्क: अपने दैनिक निर्णयों में, नोट करें कि आप कितनी बार भावनाओं पर और कितनी बार तर्क पर निर्भर करते हैं। दोनों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करें।
- विचार-भावना संबंध: जब भी कोई नकारात्मक विचार आए, उससे जुड़ी भावना को पहचानें। देखें कि कैसे विचार और भावनाएँ एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
4. संबंध (Relationships) में भाव वृत्ति का अवलोकन
प्रेम आधारित संबंधों का अवलोकन
अनिल की कहानी: अनिल का मानना था कि “प्रेम सभी संबंधों का आधार होना चाहिए।” वह अपने परिवार, मित्रों और सहकर्मियों के साथ हमेशा प्यार और करुणा से व्यवहार करते थे। एक दिन, उन्होंने इस दृष्टिकोण पर गौर किया।
“मैं देख रहा हूँ कि मेरे संबंधों में एक भावनात्मक गहराई है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति है – गहरे भावनात्मक जुड़ाव और प्रेम पर आधारित संबंध चाहने की प्रवृत्ति।”
अनिल इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे स्वयं मान लिए बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे संबंधों के भावनात्मक पहलुओं को देखता है, उनमें डूबे बिना। जैसे नाविक समुद्र की लहरों को देखता है लेकिन स्वयं को लहर नहीं मानता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे संबंधों की भावनात्मक गतिशीलता को देखता है।
माली की कहानी:
रामचंद्र एक माली थे जो एक बड़े बगीचे की देखभाल करते थे। वे हर पौधे, हर फूल से एक विशेष लगाव रखते थे। एक दिन, बगीचे के मालिक ने उनसे पूछा, “रामचंद्र, आप इन पौधों से इतना प्यार कैसे कर पाते हैं? आखिर ये तो बस पौधे हैं।”
रामचंद्र ने अपने हाथों की मिट्टी झाड़ते हुए कहा, “मालिक, मैंने अपने संबंधों में एक पैटर्न देखा है। मेरा हर चीज़ से – पौधों, जानवरों, इंसानों – एक भावनात्मक जुड़ाव होता है। यह मेरी भाव वृत्ति है – हर रिश्ते में प्रेम और भावना चाहने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करता हूँ। मैं अपने प्यार को देखता हूँ, उसमें बहता नहीं। इससे मेरा प्यार नियंत्रित या शर्त वाला नहीं रहता, बल्कि स्वतंत्र और शुद्ध हो जाता है।”
मालिक ने पूछा, “क्या इससे दर्द नहीं होता, जब कोई पौधा मर जाता है या कोई संबंध टूट जाता है?”
रामचंद्र ने शांति से कहा, “दर्द होता है, लेकिन उस दर्द का भी मैं साक्षी बनता हूँ। दर्द आता है, मैं उसे महसूस करता हूँ, और फिर वह जाता है। मैं उस दर्द में खो नहीं जाता, न ही उससे भागता हूँ। इससे मेरा प्रेम और भी गहरा और मजबूत होता जाता है।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- संबंध अवलोकन: अपने मुख्य संबंधों की सूची बनाएँ और प्रत्येक के साथ जुड़ी प्रमुख भावना को पहचानें (प्रेम, भय, आशा, निर्भरता, आदि)।
- भावनात्मक प्रतिक्रिया: जब कोई आपको परेशान करे, तो अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया का अवलोकन करें। प्रतिक्रिया देने से पहले, उस भावना के साक्षी बनें।
- निःस्वार्थ प्रेम अभ्यास: हर दिन, अपने किसी संबंध में बिना किसी अपेक्षा के प्रेम और करुणा व्यक्त करें। देखें कि यह कैसा महसूस होता है।
5. मनोरंजन (Recreation) में भाव वृत्ति का अवलोकन
भावनात्मक सिनेमा में रुचि का अवलोकन
अमित की कहानी: अमित को ऐसी फिल्में देखना पसंद था जो उन्हें गहराई से प्रभावित करें और जिनसे वे जुड़ सकें। वह अक्सर भावनात्मक कहानियों, प्रेम कथाओं और मानवीय संघर्षों की फिल्मों को चुनते थे। एक दिन, एक मित्र ने पूछा, “तुम एक्शन या थ्रिलर फिल्में क्यों नहीं देखते?”
अमित ने अपनी पसंद पर विचार किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे मनोरंजन के विकल्पों में भी एक भावनात्मक आधार है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति है – भावनात्मक अनुभवों और गहरे संबंधों की कहानियाँ चाहने की प्रवृत्ति।”
अमित इस वृत्ति के साक्षी बने, बिना इसे निर्णित किए।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन के भावनात्मक पहलुओं को देखता है, उनमें खोए बिना। जैसे कोई व्यक्ति संगीत सुनता है लेकिन संगीत नहीं बन जाता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन से मिलने वाली भावनाओं को देखता है।
पुस्तक प्रेमी की कहानी:
श्वेता एक पुस्तक प्रेमी थीं। वे अक्सर ऐसी किताबें पढ़ती थीं जो उनके जैसे लोगों के संबंधों और संघर्षों के बारे में होती थीं। एक दिन, उनकी बेटी ने पूछा, “माँ, आप हमेशा इतनी भावनात्मक किताबें क्यों पढ़ती हैं?”
श्वेता ने अपनी किताब एक तरफ रखते हुए कहा, “मैंने अपने मनोरंजन के तरीकों में एक पैटर्न देखा है। मुझे ऐसी कहानियाँ आकर्षित करती हैं जो मुझे भावनात्मक रूप से छू लें, जिनके पात्रों से मैं जुड़ सकूँ। यह मेरी भाव वृत्ति है – भावनात्मक अनुभवों और दूसरों के संघर्षों से जुड़ने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करती हूँ। जब मैं कोई किताब पढ़ती हूँ, तो मैं अपने भीतर उठने वाली भावनाओं को देखती हूँ। मैं उनमें बह नहीं जाती, न ही उनसे बचती हूँ। मैं सिर्फ देखती हूँ – इस कहानी ने मुझमें क्या भाव जगाए? क्या मैं इन पात्रों से इसलिए जुड़ रही हूँ क्योंकि मैं खुद वैसी ही हूँ, या क्योंकि मैं वैसी होना चाहती हूँ?”
बेटी ने पूछा, “क्या इससे पढ़ने का आनंद कम हो जाता है?”
श्वेता ने मुस्कुराकर कहा, “बिल्कुल नहीं। इससे पढ़ने का अनुभव और भी गहरा हो जाता है। मैं सिर्फ कहानी में नहीं, बल्कि अपने भीतर भी यात्रा करती हूँ। मैं देखती हूँ कि कैसे एक किताब मेरे भीतर के भावनात्मक तार को छू सकती है, और इस अवलोकन से मैं स्वयं को भी बेहतर समझ पाती हूँ।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- मनोरंजन अवलोकन: अगली बार जब आप कोई फिल्म देखें या पुस्तक पढ़ें, तो अपने भीतर उठने वाली भावनाओं को नोट करें। क्या यह दया है, प्रेम है, दुःख है, या उत्साह?
- भावनात्मक प्रभाव डायरी: एक सप्ताह तक, हर दिन के अंत में लिखें कि आपके मनोरंजन ने आपको कैसा महसूस कराया और क्यों।
- विविधता प्रयोग: अपने मनोरंजन में विविधता लाएँ। कुछ ऐसा देखें या पढ़ें जो आपकी सामान्य पसंद से बिल्कुल अलग हो। देखें कि यह कैसा भावनात्मक प्रभाव डालता है।
6. स्वास्थ्य (Health) में भाव वृत्ति का अवलोकन
सामान्य स्वास्थ्य के प्रति दृष्टिकोण का अवलोकन
संजय की कहानी: संजय अपने स्वास्थ्य के बारे में कहते थे, “मेरा स्वास्थ्य सामान्य है।” वह न तो अत्यधिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक थे, न ही पूरी तरह उदासीन। एक दिन, एक स्वास्थ्य जाँच के दौरान, डॉक्टर ने उनसे पूछा कि क्या वह अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं।
संजय ने अपने स्वास्थ्य के प्रति अपने दृष्टिकोण पर विचार किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे स्वास्थ्य के प्रति मेरा एक संतुलित भाव है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति का एक पहलू है – शारीरिक स्थिति से न तो अत्यधिक जुड़ना, न ही पूरी तरह उदासीन रहना।”
संजय इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे अच्छा या बुरा कहे बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे स्वास्थ्य के प्रति हमारे भावनात्मक दृष्टिकोण को देखता है, उसमें उलझे बिना। जैसे कोई व्यक्ति अपने वाहन की देखभाल करता है पर स्वयं को वाहन नहीं मानता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे शरीर के लिए हमारे भावों को देखता है।
योग शिक्षक की कहानी:
पूजा एक योग शिक्षिका थीं। वह अपने और अपने छात्रों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखती थीं। एक दिन, एक नए छात्र ने उनसे पूछा, “क्या आप हमेशा से इतनी स्वस्थ और संतुलित थीं?”
पूजा ने गहरी साँस लेते हुए कहा, “नहीं, मैंने अपने स्वास्थ्य के प्रति अपने दृष्टिकोण में एक यात्रा की है। मैंने देखा है कि मेरे भीतर स्वास्थ्य के प्रति विभिन्न भाव रहे हैं – कभी अत्यधिक चिंता, कभी पूर्ण उपेक्षा। यह मेरी भाव वृत्ति के विभिन्न पहलू थे – शरीर के प्रति भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ।”
“लेकिन मैंने धीरे-धीरे इन भावों का साक्षी बनना सीखा। अब जब मैं अपने शरीर में कोई असुविधा या दर्द महसूस करती हूँ, तो मैं न तो घबराती हूँ, न ही नजरअंदाज करती हूँ। मैं उस अनुभव को देखती हूँ, उसका अवलोकन करती हूँ, और फिर उचित कदम उठाती हूँ।”
छात्र ने पूछा, “क्या यह आपके स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है?”
पूजा ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ, क्योंकि जब हम अपने स्वास्थ्य के प्रति अपने भावों के साक्षी बनते हैं, तो हम अपने शरीर की वास्तविक जरूरतों को अधिक स्पष्टता से देख पाते हैं। हम न तो अत्यधिक भयभीत होते हैं, न ही लापरवाह। हम एक संतुलित दृष्टिकोण विकसित करते हैं, जहाँ शरीर की देखभाल भी महत्वपूर्ण है, बिना इसके प्रति आसक्त हुए। यही सच्चा स्वास्थ्य है – शारीरिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- शरीर-भावना अवलोकन: हर दिन कुछ मिनट के लिए, अपने शरीर की विभिन्न संवेदनाओं (दर्द, आराम, तनाव) को महसूस करें और इनके प्रति अपनी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को देखें।
- संतुलित दृष्टिकोण: अपने स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों में, स्वयं से पूछें: “क्या इस निर्णय के पीछे भय है, आलस्य है, या संतुलित विचार?”
- शरीर प्रति कृतज्ञता: हर दिन, अपने शरीर के एक पहलू के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो। देखें कि यह आपके स्वास्थ्य के प्रति आपके दृष्टिकोण को कैसे बदलता है।
भाव वृत्ति की जागरूकता और उससे आगे बढ़ना
हमारी भाव वृत्ति – भावनाओं से प्रभावित होने, भावनात्मक अनुभवों की चाह, और भावनात्मक संबंधों की प्राथमिकता – हमारी मानवीय प्रकृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे बुरा या अनुचित मानने की आवश्यकता नहीं है। सच्चा मार्ग है इसके प्रति जागरूक होना, इसका अनुभवकर्ता बनना।
वरिष्ठ महात्मा का उपदेश:
एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु अक्सर अपने शिष्यों से कहते थे, “भाव वृत्ति न तो अच्छी है, न बुरी – यह सिर्फ है। यह हमारी मानवीय प्रकृति का हिस्सा है। इससे लड़ो मत, इसे दबाओ मत। बस इसके साक्षी बनो।”
एक बार एक शिष्य ने पूछा, “गुरुजी, क्या भावनाओं पर इतना निर्भर होना, भावनात्मक संबंध चाहना आध्यात्मिक विकास में बाधा नहीं है?”
गुरु ने शांति से कहा, “जब तक तुम इन भावनाओं से तादात्म्य रखते हो, तब तक ये बाधा हैं। जब तुम इनके साक्षी बन जाते हो, तब ये सीढ़ी बन जाती हैं। क्योंकि इन्हें देखकर, तुम स्वयं को इनसे परे जानते हो।”
शिष्य ने फिर पूछा, “तो क्या हमें अपनी भावनाओं को दबाना चाहिए?”
गुरु ने कहा, “बिल्कुल नहीं। तुम अपनी भावनाओं को महसूस करो, उन्हें अनुभव करो, उनका आनंद लो। परंतु साथ ही साथ, इन सबके पीछे की वृत्तियों के साक्षी बनो। तब तुम्हारी भावनाएँ तुम्हें बंधन में नहीं डालेंगी, बल्कि तुम्हारे जीवन को समृद्ध करेंगी।”
दैनिक जीवन में भाव वृत्ति के व्यावहारिक उदाहरण
1. कार्यालय में दिखाई देने वाली भाव वृत्ति
सुनीता का अनुभव: सुनीता एक कंपनी में काम करती थीं। एक दिन, उनके सहकर्मी ने उनके प्रोजेक्ट की आलोचना की। सुनीता को गहरा दुःख और अपमान महसूस हुआ, और उनकी आँखें भर आईं।
अनुभवकर्ता के रूप में, सुनीता ने इस क्षण को देखा: “मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर आलोचना से गहरा दुःख उठता है। यह मेरी भाव वृत्ति है – बाहरी घटनाओं से गहराई से प्रभावित होने की प्रवृत्ति।”
इस जागरूकता से, वह अपने भावों से थोड़ा अलग हो सकीं और स्थिति को अधिक शांति से देख सकीं।
2. परिवार में दिखाई देने वाली भाव वृत्ति
रोहित का अनुभव: रोहित की बेटी ने उनके 50वें जन्मदिन पर एक भावनात्मक पत्र लिखा। पढ़ते हुए, रोहित की आँखों में आँसू आ गए।
अनुभवकर्ता के रूप में, रोहित ने इस प्रतिक्रिया को देखा: “मैं देख रहा हूँ कि मेरे भीतर प्रेम और कृतज्ञता की गहरी भावनाएँ उठ रही हैं। यह मेरी भाव वृत्ति है – रिश्तों में गहरे भावनात्मक जुड़ाव की प्रवृत्ति।”
इस जागरूकता से, वह इन भावनाओं का पूरी तरह से आनंद ले सके, उनमें खोए बिना।
3. मित्रता का उदाहरण
मीना का अनुभव: मीना की सबसे अच्छी मित्र ने उन्हें बताया कि वह दूसरे शहर में जा रही है। मीना को गहरा दुःख महसूस हुआ और वह चिंतित हो गईं कि उनकी मित्रता कैसे बनी रहेगी।
अनुभवकर्ता के रूप में, मीना ने इस प्रतिक्रिया को देखा: “मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर एक भय है कि मैं अपने करीबी रिश्ते खो दूंगी। यह मेरी भाव वृत्ति है – गहरे भावनात्मक संबंधों पर निर्भर होने की प्रवृत्ति।”
इस जागरूकता से, वह अपने भय को स्वीकार कर सकीं और फिर भी इस परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए तैयार हो सकीं।
अनुभवकर्ता के दृष्टिकोण से भाव वृत्ति से ऊपर उठने की यात्रा
नीलम की यात्रा:
नीलम एक शिक्षिका थीं। वह अपने छात्रों और उनके परिवारों से गहरा भावनात्मक जुड़ाव रखती थीं। वह उनकी सफलताओं पर बहुत खुश होतीं और असफलताओं पर दुखी। इस भावनात्मक उतार-चढ़ाव से वह अक्सर थक जातीं और कभी-कभी अपने व्यक्तिगत जीवन में संतुलन खो देतीं।
एक दिन, उन्होंने एक आध्यात्मिक पुस्तक में पढ़ा कि हम अपनी भावनाओं के साक्षी बन सकते हैं – उन्हें अनुभव कर सकते हैं, उनसे सीख सकते हैं, फिर भी उनमें पूरी तरह डूब नहीं जाते।
नीलम ने अपनी भाव वृत्ति को देखना शुरू किया:
- वह देखती कि कैसे वह हर छात्र की कहानी से भावनात्मक रूप से जुड़ जाती हैं
- वह देखती कि कैसे उनकी मनोदशा अक्सर बाहरी घटनाओं से प्रभावित होती है
- वह देखती कि कैसे वह हमेशा गहरे संबंध और भावनात्मक जुड़ाव चाहती हैं
वह इन सब प्रवृत्तियों की साक्षी बनती गईं, न इनसे लड़ीं, न ही इनमें खोईं।
धीरे-धीरे, एक अद्भुत परिवर्तन आया। जब आप किसी वृत्ति के साक्षी बनते हैं, तो उसकी पकड़ कमजोर हो जाती है। नीलम ने पाया कि वह अब भी अपने छात्रों से प्यार करती थीं, उनकी परवाह करती थीं, लेकिन वह उनके उतार-चढ़ाव में पूरी तरह नहीं बहती थीं। वह अपने और अपने छात्रों के बीच एक स्वस्थ सीमा बना पाई थीं।
एक दिन, एक सहकर्मी ने उनसे पूछा, “नीलम, आप इतनी परवाह करती हैं, फिर भी इतनी शांत कैसे रहती हैं? आप कभी भावनात्मक रूप से अभिभूत नहीं होतीं?”
नीलम ने मुस्कुराकर कहा, “क्योंकि मैंने अपनी भावनाओं को देखना सीख लिया है। जब मैं देखती हूँ कि मेरे अंदर प्रेम, चिंता, उत्साह या निराशा की भावनाएँ जागती हैं, तो मैं उनका साक्षी बनती हूँ, उनमें खोती नहीं। मैं वे भावनाएँ नहीं हूँ, न ही उनकी अनुपस्थिति। मैं इससे कहीं गहरी और विशाल हूँ – मैं अनुभवकर्ता हूँ, साक्षी हूँ, चैतन्य हूँ।”
सत्य जानने के लिए दो महत्वपूर्ण नियम
भाव वृत्ति के संदर्भ में, सत्य जानने के दो महत्वपूर्ण नियम हैं:
1. जिसका अनुभव मुझे हो गया, वह मैं नहीं हूँ
हम अपनी भावनाओं का अनुभव करते हैं – खुशी, दुःख, क्रोध, प्रेम। लेकिन हम इन भावनाओं से परे हैं। जैसे आकाश बादलों को अनुभव करता है लेकिन स्वयं बादल नहीं बनता, वैसे ही हम भावनाओं का अनुभव करते हैं लेकिन स्वयं वे भावनाएँ नहीं हैं।
उदाहरण: जब आप दुःखी होते हैं, तो कहते हैं, “मैं दुःखी हूँ।” लेकिन वास्तव में, आप वह हैं जो इस दुःख को जानता है, देखता है, अनुभव करता है। आप दुःख नहीं, दुःख के अनुभवकर्ता हैं।
2. जिस चीज़ में परिवर्तन होता है, वह सत्य नहीं
हमारी भावनाएँ निरंतर परिवर्तनशील हैं – कभी खुशी, कभी दुःख, कभी शांति, कभी अशांति। वे आती हैं और जाती हैं, जैसे मौसम बदलता है। लेकिन जो परिवर्तनशील है, वह सत्य कैसे हो सकता है?
सत्य वह है जो सदा अपरिवर्तित रहता है – वह अनुभवकर्ता, वह साक्षी, वह चैतन्य जो इन सभी परिवर्तनों को देखता है।
उदाहरण: आज आप प्रसन्न हैं, कल दुःखी हो सकते हैं। प्रसन्नता और दुःख बदलते रहते हैं, लेकिन जो इन्हें जानता है, वह नहीं बदलता। वही सत्य है, वही आपका वास्तविक स्वरूप है।
निष्कर्ष: भाव वृत्ति से परे जीवन की यात्रा
भाव वृत्ति – भावनात्मक अनुभवों, गहरे संबंधों और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं की चाह – मानव स्वभाव का एक स्वाभाविक हिस्सा है। यह न तो अच्छी है, न बुरी – यह सिर्फ है।
जब हम अनुभवकर्ता होते हैं – इन भावनात्मक वृत्तियों के साक्षी, दृष्टा – तब हम इनके प्रभाव से स्वतंत्र हो जाते हैं। हम इनसे लड़ते नहीं, इन्हें दबाते नहीं, इन्हें अस्वीकार नहीं करते – हम सिर्फ इन्हें देखते हैं।
और इस देखने में, एक अद्भुत परिवर्तन होता है। हम अपने अंदर एक ऐसे स्थान को पाते हैं जो भावनात्मक उतार-चढ़ाव पर निर्भर नहीं है। हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं, जो भाव वृत्ति से परे है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी भावनाओं का त्याग कर दें। बल्कि, हम इन सबको अधिक स्वतंत्रता, सहजता और गहराई से अनुभव करते हैं – इनके गुलाम बने बिना, इनकी दासता से मुक्त होकर।
आज ही से अपने जीवन में भाव वृत्ति के प्रति साक्षी भाव विकसित करें। अपनी भावनाओं, अपने भावनात्मक संबंधों और प्रतिक्रियाओं को देखें। उन्हें न तो अच्छा कहें, न बुरा। बस देखें, और उस देखने में स्वतंत्रता पाएँ।
याद रखें, आप अपनी भावनाओं के स्वामी नहीं, न ही दास – आप उनके साक्षी हैं, अनुभवकर्ता हैं, आत्मन हैं।