एक आदर्श गुरु के रूप में बुद्ध
वैशाख पूर्णिमा पर जब चांद अपने पूर्ण रूप में आकाश में खिलता है, तब हम बुद्ध पूर्णिमा मनाते हैं – वह दिन जब गौतम सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध की यात्रा पूरी हुई। राजकुमार से संन्यासी और फिर संन्यासी से बुद्ध – यह रूपांतरण हम सभी के जीवन के लिए एक प्रकाश स्तंभ है।
2025 में, जब हम अपने चारों ओर अनिश्चितता, तनाव और भौतिकवाद की चकाचौंध देखते हैं, बुद्ध के संदेश की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक है। बुद्ध एक आदर्श गुरु हैं क्योंकि उन्होंने केवल सिद्धांत ही नहीं दिए, बल्कि स्वयं के अनुभव से प्राप्त ज्ञान का मार्ग दिखाया। उन्होंने कहा, “अपने दीपक स्वयं बनो” – यह वाक्य हमें स्मरण दिलाता है कि सत्य की खोज बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर ही होती है।
ओशो ने एक बार कहा था, “बुद्ध ने कभी किसी को अपना अनुयायी नहीं बनाया, उन्होंने लोगों को बुद्ध बनाया।” यह वाक्य बुद्ध की शिक्षाओं का सार है। वे चाहते थे कि हर व्यक्ति स्वयं का गुरु बने, स्वयं की अंतर्यात्रा करे, और अपने भीतर के बुद्धत्व को खोजे।
बुद्धत्व क्या है?
बुद्धत्व शब्द का अर्थ है – जागृत अवस्था, बोध की वह अवस्था जहां मन की भ्रांतियां समाप्त हो जाती हैं। लेकिन यह सिर्फ एक शब्द या अवधारणा नहीं है। बुद्धत्व हमारा सत्य स्वरूप है, जो पहले से ही हमारे भीतर मौजूद है, केवल माया के आवरण से ढका हुआ है।
आचार्य प्रशांत जी कहते हैं, “बुद्धत्व कोई प्राप्त करने की वस्तु नहीं है, यह तो आपका मूल स्वभाव है। बस आवरणों को हटाना है।” यह बात कितनी सरल और गहरी है! हम सभी बुद्ध हैं, केवल हमें यह बात याद नहीं है। हमारा असली काम है – अपने वास्तविक स्वरूप को याद करना।
एक सरल उदाहरण से समझें – जैसे बादलों से ढका सूरज। सूरज कहीं गया नहीं, वह तो वहीं है, बस बादलों के कारण दिखाई नहीं देता। ठीक वैसे ही, हमारा बुद्धत्व हमेशा से हमारे भीतर है, बस विचारों, भावनाओं और अहंकार के बादलों से ढका हुआ है। जब ये बादल हट जाते हैं, तब हमारा सत्य स्वरूप, हमारा बुद्धत्व प्रकट होता है।
बुद्ध से हम क्या सीख सकते हैं?
1. मध्यम मार्ग – जीवन का संतुलित दर्शन
बुद्ध का पहला और सबसे महत्वपूर्ण उपदेश है – मध्यम मार्ग। न अति भोग, न अति त्याग। हमारे जीवन में यह कितना प्रासंगिक है!
आज के समय में देखें – कुछ लोग भौतिक सुखों के पीछे इतने भाग रहे हैं कि मानसिक शांति खो बैठे हैं, जबकि कुछ लोग आध्यात्मिकता के नाम पर जीवन से भाग रहे हैं। बुद्ध हमें सिखाते हैं कि दोनों अतियां हानिकारक हैं।
मेरे एक मित्र हैं जो एक सफल व्यवसायी हैं। वे काम में इतने व्यस्त थे कि परिवार, स्वास्थ्य, और खुद के लिए समय नहीं निकाल पाते थे। हृदय की बीमारी के बाद, उन्होंने बुद्ध की शिक्षाओं की ओर रुख किया। अब वे हर सुबह ध्यान करते हैं, परिवार के साथ समय बिताते हैं, और अपने व्यवसाय को भी संतुलित रूप से चलाते हैं। यह है मध्यम मार्ग का व्यावहारिक उदाहरण।
2. अनित्य – सब कुछ परिवर्तनशील है
बुद्ध का दूसरा महत्वपूर्ण उपदेश है – अनित्य, यानी सब कुछ परिवर्तनशील है। कोई भी चीज स्थायी नहीं है – न तो हमारे विचार, न भावनाएं, न सुख, न दुख, न शरीर, न संबंध।
कोरोना महामारी ने हम सभी को यह सच्चाई दिखाई। जिन्होंने अपने को अजेय समझा, वे भी एक सूक्ष्म वायरस के सामने अपनी असहायता महसूस करने लगे। जो सोचते थे कि उनकी नौकरी या व्यवसाय हमेशा रहेगा, उन्हें भी अचानक परिवर्तन का सामना करना पड़ा।
इस अनित्यता को समझना दुःख से मुक्ति का मार्ग है। जब हम जानते हैं कि सब कुछ बदलेगा, तो हम चीजों से इतना आसक्त नहीं होते। मेरे एक परिचित जो स्टॉक मार्केट के व्यापारी हैं, ने मुझे बताया कि जब से उन्होंने अनित्य के सिद्धांत को अपनाया है, तब से वे बाजार के उतार-चढ़ाव में भावनात्मक रूप से उलझते नहीं हैं। नतीजतन, उनके निर्णय अधिक स्पष्ट और लाभदायक होते हैं।
3. साक्षी भाव – विचारों से परे
बुद्ध की तीसरी शिक्षा है – साक्षी भाव विकसित करना। हम अपने विचारों, भावनाओं और कर्मों के साक्षी बनें, उनमें खो न जाएँ।
श्री श्री रविशंकर जी कहते हैं, “मन की शांति का रहस्य है – विचारों से दोस्ती नहीं, विचारों से दूरी।” जब हम अपने विचारों को देखते हैं, उनमें उलझते नहीं, तो हम अपने सत्य स्वरूप के करीब आते हैं।
मैंने स्वयं इसका अनुभव किया है। जब भी मन में नकारात्मक विचार आते हैं – चिंता, भय, क्रोध – मैं उन्हें देखता हूँ, एक पत्थर की तरह जो नदी में बह रहा है। मैं उन्हें रोकता नहीं, न ही उनमें उलझता हूँ। बस देखता हूँ और जाने देता हूँ। इससे मन में एक अद्भुत शांति आती है।
4. करुणा और मैत्री – हमारा असली स्वरूप
बुद्ध की चौथी शिक्षा है – करुणा और मैत्री। जब हम अपने सत्य स्वरूप को पहचानते हैं, तो स्वाभाविक रूप से हमारे भीतर से करुणा और प्रेम का प्रवाह होता है।
दलाई लामा जी कहते हैं, “करुणा हमारा असली स्वभाव है। जब हम करुणामय होते हैं, तो हम अपने असली स्वरूप में होते हैं।” यह बात बिल्कुल सत्य है।
आज के समय में, जब हम सोशल मीडिया पर द्वेष, क्रोध और विभाजन देखते हैं, तब करुणा और मैत्री की शिक्षा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। एक सरल अभ्यास है – हर सुबह 5 मिनट बैठकर सभी प्राणियों के कल्याण की भावना करें। इससे न केवल दूसरों के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदलता है, बल्कि हमारा स्वयं का मन भी शांत और प्रसन्न होता है।
बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष अभ्यास
इस बुद्ध पूर्णिमा पर, मैं आपके साथ कुछ सरल अभ्यास साझा करना चाहता हूँ जो आपको अपने सत्य स्वरूप, अपने भीतर के बुद्धत्व से जोड़ने में मदद कर सकते हैं:
1. आनापान ध्यान – 20 मिनट
बुद्ध द्वारा सिखाई गई सबसे सरल ध्यान विधि है – आनापान, यानी श्वास पर ध्यान केंद्रित करना। 20 मिनट के लिए शांत बैठकर केवल अपनी श्वास को देखें। जब श्वास अंदर जाए, जानें कि श्वास अंदर जा रही है। जब श्वास बाहर जाए, जानें कि श्वास बाहर जा रही है। मन भटके तो बिना निंदा के, धीरे से वापस श्वास पर ले आएँ।
2. मैत्री भावना – 10 मिनट
10 मिनट के लिए बैठकर सभी प्राणियों के कल्याण की भावना करें। पहले स्वयं के लिए, फिर अपने प्रियजनों के लिए, फिर तटस्थ लोगों के लिए, और अंत में अपने विरोधियों के लिए भी शांति और सुख की कामना करें।
3. अनित्य चिंतन – पूरे दिन
दिन भर में कुछ क्षण निकालकर यह देखें कि हर चीज कैसे बदल रही है – बादलों का आकार, पेड़ों की पत्तियों की हलचल, अपने विचारों का आना-जाना। यह अभ्यास आपको अनित्यता के बोध से भर देगा।
4. मध्यम मार्ग का अभ्यास – अपनी दिनचर्या में
अपनी दिनचर्या का विश्लेषण करें – क्या आप कहीं अति तो नहीं कर रहे? खाने में, काम में, मनोरंजन में, सोशल मीडिया पर समय बिताने में? क्या कहीं आप अपनी जरूरतों को नजरअंदाज तो नहीं कर रहे? संतुलन ढूंढें और एक संतुलित दिनचर्या बनाएँ।
अंतिम विचार: 2025 में बुद्ध का संदेश
2025 में, जब हम अनिश्चितता के समुद्र में नाव की तरह हिचकोले खा रहे हैं, बुद्ध का संदेश एक प्रकाश स्तंभ की तरह हमारा मार्गदर्शन करता है। प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, और डिजिटल क्रांति के इस युग में, हमें अपने मूल स्वभाव, अपने सत्य स्वरूप से जुड़े रहने की और भी अधिक आवश्यकता है।
जैसा कि निसर्गदत्त महाराज ने कहा था, “आप वही हैं जो आप खोज रहे हैं।” हमारी सारी खोज हमें वापस हमारे भीतर ही लाती है। बुद्धत्व कोई दूर की वस्तु नहीं, यह हमारा स्वाभाविक स्वरूप है, जिसे हम अनंत जन्मों से भूले हुए हैं।
इस बुद्ध पूर्णिमा पर, हम सब अपने भीतर के बुद्ध को जगाने का संकल्प लें। याद रखें, प्रकाश हमेशा से वहीं है – बस हमें अपनी आँखें खोलनी हैं।
“अप्पदीपो भव” – अपना दीपक स्वयं बनो!
बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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