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भोग वृत्ति को साक्षी भाव से समझना: अनुभवकर्ता की दृष्टि

भोग वृत्ति

by | Apr 26, 2025 | Sanatan Soul

भोग वृत्ति को साक्षी भाव से समझना: अनुभवकर्ता की दृष्टि

हमारी जीवन यात्रा में हम कई प्रकार की वृत्तियों का अनुभव करते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण है – भोग वृत्ति, जिसका अर्थ है सुख, आनंद और भौतिक चीजों की ओर आकर्षण। यह वृत्ति हमारे अंदर इच्छाओं, आकांक्षाओं और तृप्ति की भावना को जन्म देती है।

जब हम अनुभवकर्ता या साक्षी के रूप में इस वृत्ति को देखते हैं, तो हम इसके प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं। अनुभवकर्ता को कई नामों से जाना जाता है – दृष्टा, साक्षी, चैतन्य, आत्मन। यह वह है जो हमारे अंदर देखता है, अनुभव करता है, पर किसी भी वृत्ति से प्रभावित नहीं होता।

ज्ञान मार्ग पर चलते हुए, हम भोग वृत्ति को ‘नियंत्रित’ नहीं करते, बल्कि उसे ‘देखते’ हैं, उसके ‘साक्षी’ बनते हैं, और उसका ‘अवलोकन’ करते हैं। आइए भोग वृत्ति के विभिन्न पहलुओं को साक्षी भाव से समझें।

1. व्यवहार (Behavior) में भोग वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

सुख-केंद्रित व्यवहार का अवलोकन

रोहन की कहानी: रोहन एक 32 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। हर महीने वेतन मिलते ही, वह नए गैजेट्स, कपड़े या रेस्टोरेंट्स में पैसे खर्च करते हैं। एक दिन, वह अपने इस व्यवहार को देखते हैं।

“मैं देख रहा हूँ कि मेरे व्यवहार में एक पैटर्न है – मैं नई-नई चीजों से खुशी पाने की कोशिश करता हूँ,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी भोग वृत्ति है – तत्काल सुख पाने की इच्छा।”

रोहन इस वृत्ति के साक्षी बने, उसमें उलझे नहीं। उन्होंने इसे न तो बुरा कहा, न अच्छा – बस देखा।

आराम और सुविधा के प्रति झुकाव का साक्षित्व

नीलम की कहानी: नीलम एक बैंक में काम करती हैं। जब भी कोई कठिन काम आता है, वह उसे टालने की कोशिश करती हैं और आसान कामों को चुनती हैं। एक दिन, उन्होंने इस प्रवृत्ति पर ध्यान दिया।

“मैं देख रही हूँ कि मेरा झुकाव आराम और सुविधा की ओर है,” उन्होंने महसूस किया। “मैं चुनौतियों से बचती हूँ और आसान रास्ते पर चलना चाहती हूँ।”

वह इस प्रवृत्ति की साक्षी बनीं, इससे लड़ीं नहीं।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे व्यवहार के पैटर्न को देखता है, उन्हें निर्णय किए बिना। जैसे आकाश बादलों को आते-जाते देखता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे व्यवहार को देखता है।

चाय वाले की कहानी:

रामपुर गाँव के चौराहे पर जगदीश चाय बेचते थे। वह हमेशा मुस्कुराते रहते थे, भले ही ग्राहक कितने भी अधीर या नाराज हों। एक दिन एक ग्राहक ने पूछा, “जगदीश भाई, आप हमेशा इतने शांत कैसे रहते हैं? लोग आपसे बहुत मांगें करते हैं, फिर भी आप कभी परेशान नहीं होते।”

जगदीश ने चाय बनाते हुए कहा, “देखिए साहब, मैंने अपने अंदर एक आदत बना ली है। मैं अपनी इच्छाओं और दूसरों की मांगों को देखता हूँ, जैसे कोई फिल्म देखता है। मैं देखता हूँ कि कभी-कभी मेरे मन में भी आता है कि सब कुछ मेरी इच्छा के अनुसार होना चाहिए, सब मुझे खुश करें। यह मेरी भोग वृत्ति है – सुख पाने की, अपनी इच्छा पूरी करवाने की चाह।”

“लेकिन मैं इन इच्छाओं से अलग हूँ, मैं इनका दृष्टा हूँ। जैसे-जैसे मैं इन्हें देखता हूँ, ये अपनी शक्ति खो देती हैं।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. व्यवहार अवलोकन: एक दिन के लिए, जब भी आप कोई निर्णय लें (जैसे क्या खाएं, क्या देखें, क्या खरीदें), स्वयं से पूछें: “क्या यह निर्णय तत्काल सुख पाने के लिए है?”
  2. साक्षी जर्नल: हर रात 5 मिनट के लिए उन मौकों को नोट करें जहां आपने आराम या सुख के लिए कुछ चुना। बिना आलोचना के, बस देखें कि क्या पैटर्न उभरता है।
  3. चुनौती दिवस: हर सप्ताह एक दिन चुनें जहां आप जानबूझकर कुछ चुनौतीपूर्ण करें और देखें कि आपका मन कैसी प्रतिक्रिया देता है। साक्षी बनकर इस प्रतिक्रिया को देखें।

2. वाणी (Speech) में भोग वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

स्वयं-केंद्रित वार्तालाप का अवलोकन

प्रिया की कहानी: प्रिया अक्सर अपनी दोस्तों के साथ चाय पर मिलती हैं। एक दिन उन्होंने ध्यान दिया कि वह अधिकतर अपनी नई खरीदारी, अपनी इच्छाओं और अपनी समस्याओं के बारे में ही बात करती हैं।

“मैं देख रही हूँ कि मेरी बातचीत अक्सर मेरे आस-पास ही घूमती है,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी भोग वृत्ति है – सब कुछ अपने सुख और अपनी इच्छाओं के नजरिए से देखना।”

वह इस पैटर्न की साक्षी बनीं, बिना आत्म-दोष के।

मनोरंजक और सनसनीखेज बातों का साक्षित्व

संजय की कहानी: संजय अपने दोस्तों के बीच मशहूर हैं क्योंकि वह हमेशा मजेदार, रोचक और कभी-कभी सनसनीखेज बातें करते हैं। एक दिन उन्होंने देखा कि वह अक्सर बातों को बढ़ा-चढ़ाकर कहते हैं ताकि दूसरे उन्हें और अधिक ध्यान दें।

“मैं देख रहा हूँ कि मैं लोगों का ध्यान पाने के लिए अपनी बातों में मसाला मिलाता हूँ,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भोग वृत्ति है – ध्यान पाने की, प्रशंसा पाने की चाह।”

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारी वाणी के पैटर्न को देखता है, बिना तादात्म्य के। जैसे नदी के किनारे बैठा व्यक्ति पानी के प्रवाह को देखता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारी बातों के प्रवाह को देखता है।

सब्जी विक्रेता की कहानी:

लक्ष्मी बाई पिछले 30 वर्षों से अपने शहर के बाजार में सब्जियां बेचती थीं। वह बहुत कम बोलती थीं, लेकिन जब बोलती थीं तो लोग ध्यान से सुनते थे। एक दिन एक नई दुकानदार ने उनसे पूछा, “आप इतना कम क्यों बोलती हैं? अगर आप ग्राहकों को ललचाएं और अपनी सब्जियों की तारीफ करें तो शायद ज्यादा बिक्री हो।”

लक्ष्मी बाई ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटी, मैंने साल दर साल देखा है कि मेरे अंदर भी बोलने की, अपनी तारीफ करने की, दूसरों को प्रभावित करने की इच्छा आती है। ये सब हमारी भोग वृत्ति है – अच्छा लगने की, महत्वपूर्ण महसूस करने की चाह।”

“मैं इन इच्छाओं को देखती हूँ और फिर वापस अपने काम पर आ जाती हूँ। जरूरत से ज्यादा बोलना आवश्यक नहीं है। मेरी सब्जियां अपनी गुणवत्ता से बिकती हैं, शब्दों से नहीं।”

नई दुकानदार ने पूछा, “पर आपको बोलने से रोकना नहीं पड़ता?”

लक्ष्मी बाई ने कहा, “मैं रोकती नहीं, बस देखती हूँ। बोलने की इच्छा आती है, मैं देखती हूँ, और अधिकांश समय वह इच्छा अपने आप शांत हो जाती है। मैं उसकी साक्षी हूँ, उसकी मालकिन नहीं।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. वाणी अवलोकन: एक दिन के लिए, जब भी आप बातचीत करें, ध्यान दें कि आप कितनी बार “मैं” या “मेरा” शब्द का इस्तेमाल करते हैं। बिना निर्णय के, केवल अवलोकन करें।
  2. मौन अभ्यास: हर दिन 30 मिनट का समय निकालें जहां आप सिर्फ सुनें, बोलें नहीं। देखें कि इस दौरान आपके मन में क्या विचार आते हैं, विशेष रूप से बोलने की इच्छा।
  3. पैटर्न नोटिस: ध्यान दें कि आप किन विषयों पर बात करते हुए उत्साहित और ऊर्जावान हो जाते हैं। क्या ये विषय अक्सर आपके सुख, आपकी उपलब्धियों या आपकी इच्छाओं से जुड़े होते हैं?

3. विचार (Thoughts) में भोग वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

आनंद-केंद्रित सोच का अवलोकन

विकास की कहानी: विकास एक कॉलेज छात्र हैं। वह अक्सर सोचते हैं, “जीवन बहुत छोटा है, इसे भरपूर जीना चाहिए।” उनके ज्यादातर निर्णय तत्काल आनंद के आधार पर होते हैं।

एक दिन, एक ध्यान शिविर में, उन्होंने अपने इस विचार पैटर्न को देखा। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे विचार आनंद के इर्द-गिर्द घूमते हैं,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भोग वृत्ति है – हर क्षण का आनंद लेने की, गहरे सोच-विचार से बचने की चाह।”

वह इस सोच के साक्षी बने, इसे बदलने की कोशिश नहीं की।

सुख की योजनाओं में उलझे विचारों का साक्षित्व

मीना की कहानी: मीना अक्सर भविष्य की योजनाएँ बनाती रहती हैं – कहाँ घूमने जाएंगी, क्या खरीदेंगी, किस रेस्टोरेंट में खाएंगी। एक दिन उन्होंने इस पैटर्न को नोटिस किया।

“मैं देख रही हूँ कि मेरे विचार अक्सर भविष्य के सुख की योजनाओं में उलझे रहते हैं,” उन्होंने स्वयं से कहा। “मैं वर्तमान क्षण को जीने के बजाय भविष्य के सुख में खोई रहती हूँ।”

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे विचारों को देखता है, उनमें खोता नहीं। जैसे रात के आकाश में तारों को देखने वाला व्यक्ति उनसे अलग रहता है, वैसे ही अनुभवकर्ता विचारों से अलग रहता है।

टैक्सी ड्राइवर की कहानी:

गुरमीत सिंह पिछले 25 वर्षों से दिल्ली में टैक्सी चला रहे थे। एक दिन एक यात्री ने पूछा, “आपको अपना काम पसंद है?”

गुरमीत ने मुस्कुराकर कहा, “देखिए साहब, काम तो काम है। पर मैंने अपने मन को देखना सीखा है। जब मैं ट्रैफिक में फंसता हूँ, तो मेरे मन में विचार आते हैं – ‘काश मैं अभी घर पर होता और आराम कर रहा होता’ या ‘काश मैं एक बड़ी कार का मालिक होता’।”

“मैं इन विचारों को देखता हूँ, इनका साक्षी बनता हूँ। मैं जानता हूँ कि ये भोग वृत्ति के विचार हैं – आराम की चाह, अधिक पाने की इच्छा, सुख की खोज।”

यात्री ने पूछा, “तो आप इन विचारों से परेशान नहीं होते?”

गुरमीत ने कहा, “देखिए, विचार तो आएंगे-जाएंगे, जैसे सड़क पर कारें आती-जाती हैं। मैं उन्हें देखता हूँ, फिर वापस सड़क पर ध्यान लगा देता हूँ। मैं न उन विचारों का मालिक हूँ, न ही उनका गुलाम – मैं उनका साक्षी हूँ।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. विचार अवलोकन: हर दिन 10 मिनट शांति से बैठें और अपने विचारों को देखें। विशेष रूप से, सुख, आनंद और इच्छाओं से जुड़े विचारों को नोट करें।
  2. प्रश्न पूछें: जब भी आप कोई निर्णय लेने वाले हों, स्वयं से पूछें: “क्या यह निर्णय गहरे सोच-विचार पर आधारित है या सिर्फ तत्काल सुख के लिए है?”
  3. वर्तमान क्षण अभ्यास: दिन में कई बार, कुछ क्षणों के लिए, सिर्फ वर्तमान में होने का अभ्यास करें। देखें कि मन कितनी बार भविष्य के सुख में या अतीत की यादों में भटक जाता है।

4. संबंध (Relationships) में भोग वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

स्वार्थपूर्ण संबंधों का अवलोकन

अजय की कहानी: अजय के कई दोस्त हैं, लेकिन वह अक्सर उन लोगों के साथ अधिक समय बिताते हैं जो उनके लिए उपयोगी हैं या जिनके साथ वह आनंद ले सकते हैं। एक दिन, उन्होंने इस पैटर्न को देखा।

“मैं देख रहा हूँ कि मैं अपने संबंधों में अक्सर ‘मुझे क्या मिलेगा’ की सोच रखता हूँ,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी भोग वृत्ति है – हर संबंध से कुछ पाने की, सुख प्राप्त करने की चाह।”

वह इस प्रवृत्ति के साक्षी बने, बिना आत्म-निंदा के।

आकर्षण पर आधारित संबंधों का साक्षित्व

सोनाली की कहानी: सोनाली के कई अल्पकालिक रिश्ते रहे हैं। वह अक्सर शुरुआती आकर्षण के आधार पर रिश्ते शुरू करती हैं, लेकिन जैसे ही वह आकर्षण कम होता है, वह नए रिश्ते की ओर देखने लगती हैं।

एक दिन, इस पैटर्न पर चिंतन करते हुए, उन्होंने कहा, “मैं देख रही हूँ कि मेरे संबंध अक्सर आकर्षण और उत्तेजना पर आधारित होते हैं, गहरे जुड़ाव पर नहीं। यह मेरी भोग वृत्ति है – नए-नए अनुभवों की, उत्तेजना की खोज।”

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे संबंधों के पैटर्न को देखता है, उनसे जुड़े बिना। जैसे कोई चित्रकार अपने बनाए चित्र को दूर से देखता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे संबंधों को देखता है।

सब्जी मंडी के किसान की कहानी:

रामलाल पिछले 40 वर्षों से शहर की सब्जी मंडी में अपनी उपज बेचते थे। उनके कई ग्राहक थे – कुछ नियमित, कुछ अनियमित। एक दिन एक युवा किसान ने उनसे पूछा, “चाचा, आप सबके साथ इतना अच्छा व्यवहार कैसे करते हैं? कुछ ग्राहक तो इतने मुश्किल होते हैं।”

रामलाल ने कहा, “बेटा, मैंने देखा है कि हम संबंधों में अक्सर क्या चाहते हैं – सम्मान, पैसा, प्यार, मान्यता। ये सब भोग वृत्ति के हिस्से हैं – कुछ पाने की, अपनी जरूरतें पूरी करवाने की चाह। मैं अपने भीतर इन इच्छाओं को देखता हूँ, इनका साक्षी बनता हूँ।”

“जब कोई ग्राहक मुझसे बदतमीजी करता है, तो मैं देखता हूँ कि मेरे अंदर गुस्सा आता है, बदला लेने की इच्छा होती है। मैं इसे भी देखता हूँ। फिर मैं अपने काम पर लौट आता हूँ। न मैं इन भावनाओं का गुलाम हूँ, न ही मालिक – मैं साक्षी हूँ।”

युवा किसान ने पूछा, “लेकिन इससे क्या फायदा होता है?”

रामलाल मुस्कुराए, “जब आप साक्षी बन जाते हैं, तो संबंध विशुद्ध हो जाते हैं। आप देते हैं क्योंकि देना चाहते हैं, पाने की अपेक्षा के बिना। यह स्वतंत्रता है।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. संबंध अवलोकन: अपने प्रमुख संबंधों की सूची बनाएँ और प्रत्येक के सामने लिखें कि आप उस संबंध से क्या चाहते हैं। बिना निर्णय के, सिर्फ अवलोकन करें।
  2. निस्वार्थ अभ्यास: हर दिन कम से कम एक ऐसा कार्य करें जहां आप किसी के लिए बिना किसी अपेक्षा के कुछ करें। इस दौरान अपने विचारों और भावनाओं का अवलोकन करें।
  3. संबंध ध्यान: जब भी आप किसी के साथ हों, कुछ क्षणों के लिए सिर्फ उनके साथ होने का अनुभव करें, बिना कुछ पाने या देने की इच्छा के। देखें कि यह कैसा महसूस होता है।

5. मनोरंजन (Recreation) में भोग वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

यात्रा और छुट्टियों के प्रति आकर्षण का अवलोकन

राजीव की कहानी: राजीव को यात्रा करना बहुत पसंद है। वह हर कुछ महीनों में नई जगहों पर घूमने जाते हैं और सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें शेयर करते हैं। एक दिन, उन्होंने इस शौक पर गहराई से विचार किया।

“मैं देख रहा हूँ कि मुझे नई जगहों पर जाने, नए अनुभव पाने की ललक है,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी भोग वृत्ति है – नए-नए अनुभवों के माध्यम से आनंद पाने की, दैनिक जीवन से पलायन करने की चाह।”

वह इस प्रवृत्ति के साक्षी बने, इसे दबाने की कोशिश नहीं की।

विलासितापूर्ण मनोरंजन का साक्षित्व

अदिति की कहानी: अदिति को शॉपिंग मॉल्स में जाना, महंगे रेस्टोरेंट्स में खाना और फैशन शो देखना पसंद है। एक दिन उन्होंने इस रुचि पर चिंतन किया।

“मैं देख रही हूँ कि मुझे विलासिता और शानदार चीजों से घिरे रहने में आनंद आता है,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी भोग वृत्ति है – चमक-दमक, सुंदरता और विलासिता की ओर आकर्षण।”

वह इस प्रवृत्ति की साक्षी बनीं, इसे बुरा समझे बिना।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन के विकल्पों को देखता है, उनसे तादात्म्य किए बिना। जैसे कोई संगीत सुनता है बिना उसमें खो जाए, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन के तरीकों को देखता है।

रिटायर्ड शिक्षक की कहानी:

शारदा जी 35 साल स्कूल में पढ़ाने के बाद रिटायर हो गईं थीं। एक दिन उनकी पूर्व छात्रा उनसे मिलने आई और पूछा, “मैडम, आप अपना समय कैसे बिताती हैं? क्या आप भी घूमने-फिरने जाती हैं जैसा कि हर कोई रिटायरमेंट के बाद करता है?”

शारदा जी मुस्कुराईं और कहीं, “देखो बेटा, मैंने देखा है कि हम सभी के अंदर ‘कुछ करते रहने की’, ‘कहीं जाते रहने की’, ‘नए अनुभव पाने की’ इच्छा होती है। यह हमारी भोग वृत्ति है – हर पल का आनंद लेने की, कभी न रुकने की चाह।”

“मैं भी कभी-कभी घूमने जाती हूँ, पर मैंने अपने भीतर इस चाह को देखना सीखा है। कभी-कभी मैं अपने घर के बगीचे में बैठकर सिर्फ पक्षियों को देखती हूँ और उतना ही आनंद पाती हूँ जितना किसी पर्यटन स्थल पर जाकर। मनोरंजन बाहर नहीं, भीतर है।”

छात्रा ने पूछा, “पर क्या आपको कभी ऊब नहीं लगती?”

शारदा जी ने कहा, “ऊब भी एक अनुभव है, और मैं उसकी भी साक्षी बनती हूँ। मैं देखती हूँ कि ऊब के पीछे भी एक इच्छा है – नित्य नए उत्तेजना की, सतत मनोरंजन की। जब मैं इसे देखती हूँ, तो अक्सर ऊब अपने आप चली जाती है, और मैं वर्तमान क्षण में शांति पाती हूँ।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. मनोरंजन डायरी: एक हफ्ते तक अपने सभी मनोरंजन के तरीकों को नोट करें। हर मनोरंजन के बाद, अपने आप से पूछें: “क्या इससे मुझे वास्तविक संतुष्टि मिली या यह सिर्फ क्षणिक सुख था?”
  2. शांत मनोरंजन: कुछ ऐसे मनोरंजन के तरीके अपनाएँ जो शांत और अंतर्मुखी हों, जैसे प्रकृति में समय बिताना, किताब पढ़ना, या शांति से बैठना।
  3. अतिरेक अवलोकन: अगली बार जब आप किसी मनोरंजक गतिविधि में अतिरेक महसूस करें (जैसे लंबे समय तक सोशल मीडिया स्क्रॉल करना या शॉपिंग करना), तो उस इच्छा का अवलोकन करें जो इसे प्रेरित कर रही है।

6. स्वास्थ्य (Health) में भोग वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

व्यसनों का अवलोकन

मोहन की कहानी: मोहन को शाम को एक-दो पेग शराब पीने की आदत है। वह कहते हैं, “इससे मेरा तनाव कम होता है।” एक दिन, उन्होंने इस आदत पर ध्यान दिया।

“मैं देख रहा हूँ कि मुझे शराब पीने की एक लत सी हो गई है,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी भोग वृत्ति है – तनाव से पलायन करने की, आसान तसल्ली पाने की चाह।”

वह इस आदत के साक्षी बने, इसे नकारने के बजाय।

शारीरिक आकर्षण पर अत्यधिक ध्यान का साक्षित्व

तनुजा की कहानी: तनुजा अपने रूप-रंग पर बहुत ध्यान देती हैं। वह घंटों जिम में बिताती हैं और महंगे ब्यूटी ट्रीटमेंट करवाती हैं। एक दिन, उन्होंने इस पैटर्न पर विचार किया।

“मैं देख रही हूँ कि मुझे अपने शारीरिक सौंदर्य के प्रति एक प्रकार का लगाव है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भोग वृत्ति है – आकर्षक दिखने की, दूसरों से प्रशंसा पाने की चाह।”

वह इस प्रवृत्ति की साक्षी बनीं, इसे अच्छा या बुरा कहे बिना।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों और आदतों को देखता है, उनसे अपनी पहचान बनाए बिना। जैसे कोई अपने शरीर के रोग का चिकित्सक होता है पर रोग से प्रभावित नहीं होता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारी स्वास्थ्य संबंधी आदतों को देखता है।

योग गुरु की कहानी:

विजय गुरुजी एक प्रसिद्ध योग शिक्षक थे। एक दिन एक शिष्य ने उनसे पूछा, “गुरुजी, आप हमेशा इतने स्वस्थ और संतुलित कैसे रहते हैं? क्या आपको कभी कुछ खाने-पीने की या किसी व्यसन की इच्छा नहीं होती?”

गुरुजी हंसे और बोले, “बेटा, मुझे भी हर तरह की इच्छाएँ होती हैं। कभी मीठा खाने की, कभी आलस्य करने की, कभी अधिक खाने की। ये सभी भोग वृत्ति के अंश हैं।”

“पर मैंने इन इच्छाओं का साक्षी बनना सीखा है। जब मीठा खाने की इच्छा होती है, मैं उसे देखता हूँ, उसका स्वागत करता हूँ, और फिर उसे जाने देता हूँ। मैं उससे लड़ता नहीं, न ही उसमें खो जाता हूँ। मैं साक्षी बनता हूँ।”

शिष्य ने पूछा, “लेकिन आप जो खाते-पीते हैं, वह तो बहुत नियंत्रित और संतुलित होता है?”

गुरुजी ने कहा, “हाँ, क्योंकि जब आप इच्छाओं के साक्षी बनते हैं, तो अपने आप एक प्राकृतिक संतुलन आ जाता है। मैं अपने शरीर को सुनता हूँ, न कि सिर्फ अपनी इच्छाओं को। मैं जो खाता-पीता हूँ, वह प्रेम से खाता हूँ, भय या अपराधबोध से नहीं।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. स्वास्थ्य आदत अवलोकन: अपनी दैनिक आदतों पर नजर डालें – खाने-पीने से लेकर नींद और व्यायाम तक। किन आदतों में भोग वृत्ति अधिक दिखती है? बिना निर्णय के, सिर्फ देखें।
  2. इच्छा साक्षित्व: जब भी आपको कुछ खाने-पीने या किसी आदत की तीव्र इच्छा हो, एक क्षण रुकें और उस इच्छा का अवलोकन करें। उसे ‘बुरा’ मानने के बजाय, उसकी प्रकृति को समझें।
  3. शरीर सुनना: हर दिन कुछ मिनट अपने शरीर को सुनने में बिताएँ। शरीर क्या चाहता है? वास्तविक भूख और नकली भूख (जो आदत या भावनाओं से प्रेरित है) के बीच अंतर पहचानें।

भोग वृत्ति की जागरूकता और उससे ऊपर उठना

हमारी भोग वृत्ति – सुख, आनंद, तृप्ति, विलासिता की चाह – हमारी मानवीय प्रकृति का हिस्सा है। इसे बुरा मानना या इससे लड़ना समाधान नहीं है। वास्तविक समाधान है अनुभवकर्ता बनना – इस वृत्ति का साक्षी, दृष्टा बनना।

गुरुदेव के उपदेश:

एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु अक्सर अपने शिष्यों से कहते थे, “भोग वृत्ति न तो अच्छी है, न बुरी – यह सिर्फ है। इससे लड़ो मत, इसे दबाओ मत, इसे अस्वीकार मत करो। बस इसके साक्षी बनो।”

एक बार एक शिष्य ने पूछा, “गुरुदेव, पर यदि मैं इन इच्छाओं का साक्षी बनूँ और फिर भी इनका पालन करूँ, तो क्या यह गलत नहीं होगा?”

गुरुदेव मुस्कुराए, “जब तुम वास्तव में साक्षी बन जाते हो, तो तुम इच्छाओं का ‘पालन’ नहीं करते। तुम सचेत निर्णय लेते हो। कभी तुम इच्छा को पूरा करने का निर्णय ले सकते हो, कभी नहीं। लेकिन यह निर्णय अंधी आसक्ति से नहीं, बल्कि जागरूकता से आता है।”

शिष्य ने पूछा, “फिर भी, क्या भोग वृत्ति आध्यात्मिक प्रगति में बाधा नहीं है?”

गुरुदेव ने कहा, “जब तक तुम भोग वृत्ति के साथ तादात्म्य रखते हो, तब तक यह बाधा है। जब तुम इसके साक्षी बन जाते हो, तब यह सीढ़ी बन जाती है। क्योंकि इसे देखकर, तुम स्वयं को इससे परे जानते हो।”

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Ajay Shukla

Throughout my life, I've worked across multiple industries, and truthfully, defining myself in one line has never been easy. However, a few roles resonate deeply with me: digital marketing strategist, former journalist (Dainik Jagran) and journalism teacher, and a lifelong student of existence. Each experience has shaped who I am, merging practical insight with a quest for deeper understanding.

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