हमारे भीतर कई प्रकार की वृत्तियाँ होती हैं जो हमारे व्यक्तित्व और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती हैं। इन वृत्तियों में से एक महत्वपूर्ण है – भाव वृत्ति। भाव वृत्ति का अर्थ है हमारी भावनात्मक प्रवृत्तियाँ, जो हमारे व्यवहार, वाणी, विचार, संबंध और स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
ज्ञान मार्ग पर चलते हुए, हम इन वृत्तियों को ‘नियंत्रित’ नहीं करते, बल्कि ‘अनुभवकर्ता’ के रूप में इनका ‘अवलोकन’ करते हैं। अनुभवकर्ता को हम कई नामों से जानते हैं – दृष्टा, साक्षी, चैतन्य, आत्मन। आइए भाव वृत्ति के विभिन्न पहलुओं को साक्षी भाव से समझें।
1. व्यवहार (Behavior) में भाव वृत्ति का अवलोकन
भावनात्मक उतार-चढ़ाव का अवलोकन
राजेश की कहानी: राजेश अपने कार्यालय में अच्छे कार्य के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उनके सहकर्मी उन्हें “भावुक” कहते हैं। कभी वे बहुत उत्साहित होते हैं, तो कभी उदास। एक दिन, एक मित्र ने पूछा, “तुम्हारे मूड इतनी जल्दी कैसे बदल जाते हैं?”
राजेश ने एक क्षण रुककर अपने व्यवहार पर चिंतन किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे भीतर एक ऐसी वृत्ति है जो मुझे भावनाओं के साथ बहा ले जाती है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति है – भावनाओं के प्रवाह में बहने की प्रवृत्ति।”
राजेश इस वृत्ति के साक्षी बने, इससे तादात्म्य किए बिना।
अंतर्मुखी प्रवृत्ति का साक्षित्व
सीमा की कहानी: सीमा को हमेशा अकेले रहना पसंद था। वह सबके साथ घुलती-मिलती नहीं थी, बल्कि अपनी दुनिया में रहना पसंद करती थी। एक दिन, एक सहेली ने उसे “अंतर्मुखी” कहा।
“मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर एक ऐसी प्रवृत्ति है जो मुझे अकेले रहने, भीड़ से दूर रहने के लिए प्रेरित करती है,” उसने स्वयं से कहा। “यह मेरी भाव वृत्ति का एक पहलू है – अपने आंतरिक संसार में डूबे रहने की इच्छा।”
सीमा इस प्रवृत्ति की साक्षी बनीं, बिना इसे अच्छा या बुरा कहे।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे व्यवहार के भावनात्मक पैटर्न को देखता है, उन्हें स्वयं मान लिए बिना। जैसे आकाश में बादलों को देखने वाला व्यक्ति बादलों से अलग होता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारी भावनाओं से अलग होता है।
रिक्शा चालक की कहानी:
रामू 20 वर्षों से रिक्शा चला रहे थे। कभी-कभी वे यात्रियों से बातें करते, उनके जीवन के बारे में सुनते, और कभी-कभी अपने दिल की बात भी कह देते। एक दिन, एक नियमित यात्री ने उनसे पूछा, “रामू जी, आप कभी नाराज या परेशान नहीं होते, हमेशा शांत रहते हैं?”
रामू ने मुस्कुराते हुए कहा, “बाबूजी, मैंने अपने अंदर देखा है कि भावनाएँ आती हैं और जाती हैं, जैसे मौसम बदलता है। कभी ख़ुशी, कभी दुःख, कभी गुस्सा। पहले मैं इन भावनाओं में बह जाता था। यदि कोई यात्री कटु शब्द कहता, तो मुझे गुस्सा आ जाता। यदि अच्छा दिन होता, तो मैं बहुत खुश हो जाता।”
“लेकिन धीरे-धीरे, मैंने इन भावनाओं को देखना सीख लिया। जब कोई मुझसे बुरा व्यवहार करता है, मैं देखता हूँ कि मेरे भीतर गुस्सा उठता है। यह मेरी भाव वृत्ति है – बाहरी घटनाओं से प्रभावित होने की प्रवृत्ति। लेकिन मैं उस गुस्से का सिर्फ साक्षी बनता हूँ। मैं उसमें खो नहीं जाता।”
यात्री ने पूछा, “और इससे क्या होता है?”
रामू ने कहा, “इससे मैं हर परिस्थिति में शांत रह पाता हूँ। भावनाएँ आती हैं, मैं उन्हें देखता हूँ, और वे चली जाती हैं – बिना मुझे बहाए, बिना मेरे जीवन को अस्त-व्यस्त किए।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- भावना अवलोकन: एक दिन चुनें और उस दिन हर महत्वपूर्ण भावनात्मक प्रतिक्रिया को नोट करें। उस भावना का नाम दें और स्वयं से पूछें: “क्या मैं इस भावना से अधिक हूँ?”
- भावनात्मक ट्रिगर्स की पहचान: अपने उन ट्रिगर्स (उत्तेजकों) को पहचानें जो आपमें मजबूत भावनात्मक प्रतिक्रिया पैदा करते हैं। इन्हें जानकर, आप अधिक साक्षी भाव से प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
- शारीरिक संवेदनाओं की जागरूकता: जब भी कोई भावना उत्पन्न हो, अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों (जैसे हृदय गति, साँस, तनाव) को महसूस करें। भावनाओं का शरीर पर प्रभाव देखें।
2. वाणी (Speech) में भाव वृत्ति का अवलोकन
चयनात्मक संवाद का अवलोकन
विनोद की कहानी: विनोद अजनबियों से बात करना पसंद नहीं करते थे, लेकिन अपने करीबी मित्रों के साथ घंटों बातें कर सकते थे। एक दिन, उनकी पत्नी ने कहा, “आप अजनबियों से इतना कम क्यों बोलते हैं?”
विनोद ने अपनी वाणी के पैटर्न पर विचार किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरी वाणी में एक चयनात्मकता है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति है – सिर्फ उन्हीं से गहरी बात करने की इच्छा जिनके साथ मैं भावनात्मक संबंध महसूस करता हूँ।”
वह इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे स्वयं मान लिए बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारी वाणी के भावनात्मक पैटर्न को देखता है, उनके साथ तादात्म्य किए बिना। जैसे दर्पण प्रतिबिंब दिखाता है पर प्रतिबिंब से प्रभावित नहीं होता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे शब्दों से अलग होता है।
कवि की कहानी:
सुरेंद्र एक छोटे से शहर के कवि थे। उनकी कविताएँ भावनाओं से भरी होती थीं – कभी प्रेम, कभी विरह, कभी आक्रोश। एक दिन, एक युवा कवि ने उनसे पूछा, “आप अपनी कविताओं में इतनी गहरी भावनाएँ कैसे व्यक्त कर पाते हैं?”
सुरेंद्र ने गहरी साँस ली और कहा, “मैंने अपने भीतर एक पैटर्न देखा है। जब मैं बोलता या लिखता हूँ, तो मेरे भीतर से एक भावनात्मक प्रवाह आता है। यह मेरी भाव वृत्ति है – अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने की, अपने आंतरिक संसार को व्यक्त करने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं सिर्फ इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करता हूँ। जब मैं लिखता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि मेरे शब्द कहाँ से आ रहे हैं – सतही भावनाओं से या गहरे सत्य से। और फिर मैं अपने शब्दों को उसी के अनुसार ढालता हूँ।”
युवा कवि ने पूछा, “क्या यह मुश्किल नहीं है, भावनाओं का साक्षी बनना और फिर भी उन्हें व्यक्त करना?”
सुरेंद्र ने मुस्कुराकर कहा, “शुरू में था। लेकिन जब आप अपनी भावनाओं का साक्षी बनना सीख जाते हैं, तो आपके शब्द अधिक सत्य, अधिक गहरे और कम भ्रामक होते जाते हैं। आप भावनाओं को महसूस करते हैं, लेकिन उनके गुलाम नहीं बनते।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- मौन अवलोकन: अगली बार जब आप किसी संवाद में हों, तो बोलने से पहले 3 सेकंड रुकें। अपने भीतर उठने वाली भावना को देखें, फिर बोलें।
- भावनात्मक शब्दावली: एक सप्ताह तक, अपने द्वारा उपयोग किए जाने वाले भावनात्मक शब्दों को नोट करें (जैसे “नाराज”, “खुश”, “निराश”)। देखें कि आप किन भावनाओं को अधिक व्यक्त करते हैं।
- सुनने का अभ्यास: एक दिन ऐसा चुनें जब आप अधिक सुनें, कम बोलें। देखें कि क्या आपके भीतर बोलने की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
3. विचार (Thoughts) में भाव वृत्ति का अवलोकन
भावना-आधारित निर्णयों का अवलोकन
करण की कहानी: करण अपने निर्णय तर्क से कम, भावनाओं से अधिक लेते थे। वह अक्सर कहते, “मैं महसूस करता हूँ कि यह सही है,” या “यह मुझे अच्छा नहीं लग रहा।” एक दिन, एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णय के बाद, उन्होंने इस पैटर्न पर गौर किया।
“मैं देख रहा हूँ कि मेरे निर्णय अक्सर मेरी भावनाओं पर आधारित होते हैं, तर्क पर नहीं,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति है – अपनी अंतर्ज्ञान और भावनाओं पर भरोसा करने की प्रवृत्ति।”
करण इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे अच्छा या बुरा कहे बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे विचारों के भावनात्मक आधार को देखता है, उनमें उलझे बिना। जैसे आकाश विभिन्न रंगों के सूर्यास्त को देखता है पर स्वयं रंगहीन रहता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे भावनात्मक विचारों से अलग रहता है।
व्यापारी की कहानी:
कृष्ण एक सफल व्यापारी थे। वे अपने निर्णय अक्सर “दिल की आवाज” सुनकर लेते थे। एक दिन, एक युवा उद्यमी ने उनसे पूछा, “आप अपने व्यापारिक निर्णय कैसे लेते हैं? क्या आप डेटा और विश्लेषण का उपयोग करते हैं?”
कृष्ण ने मुस्कुराकर कहा, “मैंने अपने विचारों का गहरा अध्ययन किया है। मैंने देखा है कि मेरे मन में विचार और भावनाएँ एक साथ आते हैं। जब मुझे कोई निर्णय लेना होता है, तो मैं ना सिर्फ तथ्यों को देखता हूँ, बल्कि इस बारे में अपनी भावनाओं को भी महसूस करता हूँ। यह मेरी भाव वृत्ति है – भावनाओं और अंतर्ज्ञान पर निर्भर होने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इन भावनाओं का सिर्फ साक्षी बनता हूँ। मैं इन्हें आने-जाने देता हूँ, इनसे घबराता नहीं। मैं देखता हूँ – क्या यह भावना मेरे अनुभव से आ रही है या भय से? क्या यह अंतर्ज्ञान है या सिर्फ एक आवेग?”
युवा उद्यमी ने पूछा, “और इससे आपके निर्णय बेहतर होते हैं?”
कृष्ण ने कहा, “हाँ, क्योंकि मैं न तो पूरी तरह से तर्क पर निर्भर होता हूँ, न ही पूरी तरह से भावनाओं पर। मैं दोनों को देखता हूँ, उनके साक्षी बनता हूँ, और फिर एक संतुलित निर्णय लेता हूँ।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- निर्णय अवलोकन: अगली बार जब आप कोई महत्वपूर्ण निर्णय लें, तो रुकें और अपने आप से पूछें: “इस निर्णय के पीछे कौन सी भावना है?”
- भावना vs तर्क: अपने दैनिक निर्णयों में, नोट करें कि आप कितनी बार भावनाओं पर और कितनी बार तर्क पर निर्भर करते हैं। दोनों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करें।
- विचार-भावना संबंध: जब भी कोई नकारात्मक विचार आए, उससे जुड़ी भावना को पहचानें। देखें कि कैसे विचार और भावनाएँ एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
4. संबंध (Relationships) में भाव वृत्ति का अवलोकन
प्रेम आधारित संबंधों का अवलोकन
अनिल की कहानी: अनिल का मानना था कि “प्रेम सभी संबंधों का आधार होना चाहिए।” वह अपने परिवार, मित्रों और सहकर्मियों के साथ हमेशा प्यार और करुणा से व्यवहार करते थे। एक दिन, उन्होंने इस दृष्टिकोण पर गौर किया।
“मैं देख रहा हूँ कि मेरे संबंधों में एक भावनात्मक गहराई है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति है – गहरे भावनात्मक जुड़ाव और प्रेम पर आधारित संबंध चाहने की प्रवृत्ति।”
अनिल इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे स्वयं मान लिए बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे संबंधों के भावनात्मक पहलुओं को देखता है, उनमें डूबे बिना। जैसे नाविक समुद्र की लहरों को देखता है लेकिन स्वयं को लहर नहीं मानता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे संबंधों की भावनात्मक गतिशीलता को देखता है।
माली की कहानी:
रामचंद्र एक माली थे जो एक बड़े बगीचे की देखभाल करते थे। वे हर पौधे, हर फूल से एक विशेष लगाव रखते थे। एक दिन, बगीचे के मालिक ने उनसे पूछा, “रामचंद्र, आप इन पौधों से इतना प्यार कैसे कर पाते हैं? आखिर ये तो बस पौधे हैं।”
रामचंद्र ने अपने हाथों की मिट्टी झाड़ते हुए कहा, “मालिक, मैंने अपने संबंधों में एक पैटर्न देखा है। मेरा हर चीज़ से – पौधों, जानवरों, इंसानों – एक भावनात्मक जुड़ाव होता है। यह मेरी भाव वृत्ति है – हर रिश्ते में प्रेम और भावना चाहने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करता हूँ। मैं अपने प्यार को देखता हूँ, उसमें बहता नहीं। इससे मेरा प्यार नियंत्रित या शर्त वाला नहीं रहता, बल्कि स्वतंत्र और शुद्ध हो जाता है।”
मालिक ने पूछा, “क्या इससे दर्द नहीं होता, जब कोई पौधा मर जाता है या कोई संबंध टूट जाता है?”
रामचंद्र ने शांति से कहा, “दर्द होता है, लेकिन उस दर्द का भी मैं साक्षी बनता हूँ। दर्द आता है, मैं उसे महसूस करता हूँ, और फिर वह जाता है। मैं उस दर्द में खो नहीं जाता, न ही उससे भागता हूँ। इससे मेरा प्रेम और भी गहरा और मजबूत होता जाता है।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- संबंध अवलोकन: अपने मुख्य संबंधों की सूची बनाएँ और प्रत्येक के साथ जुड़ी प्रमुख भावना को पहचानें (प्रेम, भय, आशा, निर्भरता, आदि)।
- भावनात्मक प्रतिक्रिया: जब कोई आपको परेशान करे, तो अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया का अवलोकन करें। प्रतिक्रिया देने से पहले, उस भावना के साक्षी बनें।
- निःस्वार्थ प्रेम अभ्यास: हर दिन, अपने किसी संबंध में बिना किसी अपेक्षा के प्रेम और करुणा व्यक्त करें। देखें कि यह कैसा महसूस होता है।
5. मनोरंजन (Recreation) में भाव वृत्ति का अवलोकन
भावनात्मक सिनेमा में रुचि का अवलोकन
अमित की कहानी: अमित को ऐसी फिल्में देखना पसंद था जो उन्हें गहराई से प्रभावित करें और जिनसे वे जुड़ सकें। वह अक्सर भावनात्मक कहानियों, प्रेम कथाओं और मानवीय संघर्षों की फिल्मों को चुनते थे। एक दिन, एक मित्र ने पूछा, “तुम एक्शन या थ्रिलर फिल्में क्यों नहीं देखते?”
अमित ने अपनी पसंद पर विचार किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे मनोरंजन के विकल्पों में भी एक भावनात्मक आधार है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति है – भावनात्मक अनुभवों और गहरे संबंधों की कहानियाँ चाहने की प्रवृत्ति।”
अमित इस वृत्ति के साक्षी बने, बिना इसे निर्णित किए।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन के भावनात्मक पहलुओं को देखता है, उनमें खोए बिना। जैसे कोई व्यक्ति संगीत सुनता है लेकिन संगीत नहीं बन जाता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन से मिलने वाली भावनाओं को देखता है।
पुस्तक प्रेमी की कहानी:
श्वेता एक पुस्तक प्रेमी थीं। वे अक्सर ऐसी किताबें पढ़ती थीं जो उनके जैसे लोगों के संबंधों और संघर्षों के बारे में होती थीं। एक दिन, उनकी बेटी ने पूछा, “माँ, आप हमेशा इतनी भावनात्मक किताबें क्यों पढ़ती हैं?”
श्वेता ने अपनी किताब एक तरफ रखते हुए कहा, “मैंने अपने मनोरंजन के तरीकों में एक पैटर्न देखा है। मुझे ऐसी कहानियाँ आकर्षित करती हैं जो मुझे भावनात्मक रूप से छू लें, जिनके पात्रों से मैं जुड़ सकूँ। यह मेरी भाव वृत्ति है – भावनात्मक अनुभवों और दूसरों के संघर्षों से जुड़ने की प्रवृत्ति।”
“लेकिन मैं इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करती हूँ। जब मैं कोई किताब पढ़ती हूँ, तो मैं अपने भीतर उठने वाली भावनाओं को देखती हूँ। मैं उनमें बह नहीं जाती, न ही उनसे बचती हूँ। मैं सिर्फ देखती हूँ – इस कहानी ने मुझमें क्या भाव जगाए? क्या मैं इन पात्रों से इसलिए जुड़ रही हूँ क्योंकि मैं खुद वैसी ही हूँ, या क्योंकि मैं वैसी होना चाहती हूँ?”
बेटी ने पूछा, “क्या इससे पढ़ने का आनंद कम हो जाता है?”
श्वेता ने मुस्कुराकर कहा, “बिल्कुल नहीं। इससे पढ़ने का अनुभव और भी गहरा हो जाता है। मैं सिर्फ कहानी में नहीं, बल्कि अपने भीतर भी यात्रा करती हूँ। मैं देखती हूँ कि कैसे एक किताब मेरे भीतर के भावनात्मक तार को छू सकती है, और इस अवलोकन से मैं स्वयं को भी बेहतर समझ पाती हूँ।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- मनोरंजन अवलोकन: अगली बार जब आप कोई फिल्म देखें या पुस्तक पढ़ें, तो अपने भीतर उठने वाली भावनाओं को नोट करें। क्या यह दया है, प्रेम है, दुःख है, या उत्साह?
- भावनात्मक प्रभाव डायरी: एक सप्ताह तक, हर दिन के अंत में लिखें कि आपके मनोरंजन ने आपको कैसा महसूस कराया और क्यों।
- विविधता प्रयोग: अपने मनोरंजन में विविधता लाएँ। कुछ ऐसा देखें या पढ़ें जो आपकी सामान्य पसंद से बिल्कुल अलग हो। देखें कि यह कैसा भावनात्मक प्रभाव डालता है।
6. स्वास्थ्य (Health) में भाव वृत्ति का अवलोकन
सामान्य स्वास्थ्य के प्रति दृष्टिकोण का अवलोकन
संजय की कहानी: संजय अपने स्वास्थ्य के बारे में कहते थे, “मेरा स्वास्थ्य सामान्य है।” वह न तो अत्यधिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक थे, न ही पूरी तरह उदासीन। एक दिन, एक स्वास्थ्य जाँच के दौरान, डॉक्टर ने उनसे पूछा कि क्या वह अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं।
संजय ने अपने स्वास्थ्य के प्रति अपने दृष्टिकोण पर विचार किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे स्वास्थ्य के प्रति मेरा एक संतुलित भाव है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी भाव वृत्ति का एक पहलू है – शारीरिक स्थिति से न तो अत्यधिक जुड़ना, न ही पूरी तरह उदासीन रहना।”
संजय इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे अच्छा या बुरा कहे बिना।
अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:
अनुभवकर्ता हमारे स्वास्थ्य के प्रति हमारे भावनात्मक दृष्टिकोण को देखता है, उसमें उलझे बिना। जैसे कोई व्यक्ति अपने वाहन की देखभाल करता है पर स्वयं को वाहन नहीं मानता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे शरीर के लिए हमारे भावों को देखता है।
योग शिक्षक की कहानी:
पूजा एक योग शिक्षिका थीं। वह अपने और अपने छात्रों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखती थीं। एक दिन, एक नए छात्र ने उनसे पूछा, “क्या आप हमेशा से इतनी स्वस्थ और संतुलित थीं?”
पूजा ने गहरी साँस लेते हुए कहा, “नहीं, मैंने अपने स्वास्थ्य के प्रति अपने दृष्टिकोण में एक यात्रा की है। मैंने देखा है कि मेरे भीतर स्वास्थ्य के प्रति विभिन्न भाव रहे हैं – कभी अत्यधिक चिंता, कभी पूर्ण उपेक्षा। यह मेरी भाव वृत्ति के विभिन्न पहलू थे – शरीर के प्रति भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ।”
“लेकिन मैंने धीरे-धीरे इन भावों का साक्षी बनना सीखा। अब जब मैं अपने शरीर में कोई असुविधा या दर्द महसूस करती हूँ, तो मैं न तो घबराती हूँ, न ही नजरअंदाज करती हूँ। मैं उस अनुभव को देखती हूँ, उसका अवलोकन करती हूँ, और फिर उचित कदम उठाती हूँ।”
छात्र ने पूछा, “क्या यह आपके स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है?”
पूजा ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ, क्योंकि जब हम अपने स्वास्थ्य के प्रति अपने भावों के साक्षी बनते हैं, तो हम अपने शरीर की वास्तविक जरूरतों को अधिक स्पष्टता से देख पाते हैं। हम न तो अत्यधिक भयभीत होते हैं, न ही लापरवाह। हम एक संतुलित दृष्टिकोण विकसित करते हैं, जहाँ शरीर की देखभाल भी महत्वपूर्ण है, बिना इसके प्रति आसक्त हुए। यही सच्चा स्वास्थ्य है – शारीरिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर।”
दैनिक जीवन के लिए सुझाव:
- शरीर-भावना अवलोकन: हर दिन कुछ मिनट के लिए, अपने शरीर की विभिन्न संवेदनाओं (दर्द, आराम, तनाव) को महसूस करें और इनके प्रति अपनी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को देखें।
- संतुलित दृष्टिकोण: अपने स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों में, स्वयं से पूछें: “क्या इस निर्णय के पीछे भय है, आलस्य है, या संतुलित विचार?”
- शरीर प्रति कृतज्ञता: हर दिन, अपने शरीर के एक पहलू के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो। देखें कि यह आपके स्वास्थ्य के प्रति आपके दृष्टिकोण को कैसे बदलता है।
भाव वृत्ति की जागरूकता और उससे आगे बढ़ना
हमारी भाव वृत्ति – भावनाओं से प्रभावित होने, भावनात्मक अनुभवों की चाह, और भावनात्मक संबंधों की प्राथमिकता – हमारी मानवीय प्रकृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे बुरा या अनुचित मानने की आवश्यकता नहीं है। सच्चा मार्ग है इसके प्रति जागरूक होना, इसका अनुभवकर्ता बनना।
वरिष्ठ महात्मा का उपदेश:
एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु अक्सर अपने शिष्यों से कहते थे, “भाव वृत्ति न तो अच्छी है, न बुरी – यह सिर्फ है। यह हमारी मानवीय प्रकृति का हिस्सा है। इससे लड़ो मत, इसे दबाओ मत। बस इसके साक्षी बनो।”
एक बार एक शिष्य ने पूछा, “गुरुजी, क्या भावनाओं पर इतना निर्भर होना, भावनात्मक संबंध चाहना आध्यात्मिक विकास में बाधा नहीं है?”
गुरु ने शांति से कहा, “जब तक तुम इन भावनाओं से तादात्म्य रखते हो, तब तक ये बाधा हैं। जब तुम इनके साक्षी बन जाते हो, तब ये सीढ़ी बन जाती हैं। क्योंकि इन्हें देखकर, तुम स्वयं को इनसे परे जानते हो।”
शिष्य ने फिर पूछा, “तो क्या हमें अपनी भावनाओं को दबाना चाहिए?”
गुरु ने कहा, “बिल्कुल नहीं। तुम अपनी भावनाओं को महसूस करो, उन्हें अनुभव करो, उनका आनंद लो। परंतु साथ ही साथ, इन सबके पीछे की वृत्तियों के साक्षी बनो। तब तुम्हारी भावनाएँ तुम्हें बंधन में नहीं डालेंगी, बल्कि तुम्हारे जीवन को समृद्ध करेंगी।”
दैनिक जीवन में भाव वृत्ति के व्यावहारिक उदाहरण
1. कार्यालय में दिखाई देने वाली भाव वृत्ति
सुनीता का अनुभव: सुनीता एक कंपनी में काम करती थीं। एक दिन, उनके सहकर्मी ने उनके प्रोजेक्ट की आलोचना की। सुनीता को गहरा दुःख और अपमान महसूस हुआ, और उनकी आँखें भर आईं।
अनुभवकर्ता के रूप में, सुनीता ने इस क्षण को देखा: “मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर आलोचना से गहरा दुःख उठता है। यह मेरी भाव वृत्ति है – बाहरी घटनाओं से गहराई से प्रभावित होने की प्रवृत्ति।”
इस जागरूकता से, वह अपने भावों से थोड़ा अलग हो सकीं और स्थिति को अधिक शांति से देख सकीं।
2. परिवार में दिखाई देने वाली भाव वृत्ति
रोहित का अनुभव: रोहित की बेटी ने उनके 50वें जन्मदिन पर एक भावनात्मक पत्र लिखा। पढ़ते हुए, रोहित की आँखों में आँसू आ गए।
अनुभवकर्ता के रूप में, रोहित ने इस प्रतिक्रिया को देखा: “मैं देख रहा हूँ कि मेरे भीतर प्रेम और कृतज्ञता की गहरी भावनाएँ उठ रही हैं। यह मेरी भाव वृत्ति है – रिश्तों में गहरे भावनात्मक जुड़ाव की प्रवृत्ति।”
इस जागरूकता से, वह इन भावनाओं का पूरी तरह से आनंद ले सके, उनमें खोए बिना।
3. मित्रता का उदाहरण
मीना का अनुभव: मीना की सबसे अच्छी मित्र ने उन्हें बताया कि वह दूसरे शहर में जा रही है। मीना को गहरा दुःख महसूस हुआ और वह चिंतित हो गईं कि उनकी मित्रता कैसे बनी रहेगी।
अनुभवकर्ता के रूप में, मीना ने इस प्रतिक्रिया को देखा: “मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर एक भय है कि मैं अपने करीबी रिश्ते खो दूंगी। यह मेरी भाव वृत्ति है – गहरे भावनात्मक संबंधों पर निर्भर होने की प्रवृत्ति।”
इस जागरूकता से, वह अपने भय को स्वीकार कर सकीं और फिर भी इस परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए तैयार हो सकीं।
अनुभवकर्ता के दृष्टिकोण से भाव वृत्ति से ऊपर उठने की यात्रा
नीलम की यात्रा:
नीलम एक शिक्षिका थीं। वह अपने छात्रों और उनके परिवारों से गहरा भावनात्मक जुड़ाव रखती थीं। वह उनकी सफलताओं पर बहुत खुश होतीं और असफलताओं पर दुखी। इस भावनात्मक उतार-चढ़ाव से वह अक्सर थक जातीं और कभी-कभी अपने व्यक्तिगत जीवन में संतुलन खो देतीं।
एक दिन, उन्होंने एक आध्यात्मिक पुस्तक में पढ़ा कि हम अपनी भावनाओं के साक्षी बन सकते हैं – उन्हें अनुभव कर सकते हैं, उनसे सीख सकते हैं, फिर भी उनमें पूरी तरह डूब नहीं जाते।
नीलम ने अपनी भाव वृत्ति को देखना शुरू किया:
- वह देखती कि कैसे वह हर छात्र की कहानी से भावनात्मक रूप से जुड़ जाती हैं
- वह देखती कि कैसे उनकी मनोदशा अक्सर बाहरी घटनाओं से प्रभावित होती है
- वह देखती कि कैसे वह हमेशा गहरे संबंध और भावनात्मक जुड़ाव चाहती हैं
वह इन सब प्रवृत्तियों की साक्षी बनती गईं, न इनसे लड़ीं, न ही इनमें खोईं।
धीरे-धीरे, एक अद्भुत परिवर्तन आया। जब आप किसी वृत्ति के साक्षी बनते हैं, तो उसकी पकड़ कमजोर हो जाती है। नीलम ने पाया कि वह अब भी अपने छात्रों से प्यार करती थीं, उनकी परवाह करती थीं, लेकिन वह उनके उतार-चढ़ाव में पूरी तरह नहीं बहती थीं। वह अपने और अपने छात्रों के बीच एक स्वस्थ सीमा बना पाई थीं।
एक दिन, एक सहकर्मी ने उनसे पूछा, “नीलम, आप इतनी परवाह करती हैं, फिर भी इतनी शांत कैसे रहती हैं? आप कभी भावनात्मक रूप से अभिभूत नहीं होतीं?”
नीलम ने मुस्कुराकर कहा, “क्योंकि मैंने अपनी भावनाओं को देखना सीख लिया है। जब मैं देखती हूँ कि मेरे अंदर प्रेम, चिंता, उत्साह या निराशा की भावनाएँ जागती हैं, तो मैं उनका साक्षी बनती हूँ, उनमें खोती नहीं। मैं वे भावनाएँ नहीं हूँ, न ही उनकी अनुपस्थिति। मैं इससे कहीं गहरी और विशाल हूँ – मैं अनुभवकर्ता हूँ, साक्षी हूँ, चैतन्य हूँ।”
सत्य जानने के लिए दो महत्वपूर्ण नियम
भाव वृत्ति के संदर्भ में, सत्य जानने के दो महत्वपूर्ण नियम हैं:
1. जिसका अनुभव मुझे हो गया, वह मैं नहीं हूँ
हम अपनी भावनाओं का अनुभव करते हैं – खुशी, दुःख, क्रोध, प्रेम। लेकिन हम इन भावनाओं से परे हैं। जैसे आकाश बादलों को अनुभव करता है लेकिन स्वयं बादल नहीं बनता, वैसे ही हम भावनाओं का अनुभव करते हैं लेकिन स्वयं वे भावनाएँ नहीं हैं।
उदाहरण: जब आप दुःखी होते हैं, तो कहते हैं, “मैं दुःखी हूँ।” लेकिन वास्तव में, आप वह हैं जो इस दुःख को जानता है, देखता है, अनुभव करता है। आप दुःख नहीं, दुःख के अनुभवकर्ता हैं।
2. जिस चीज़ में परिवर्तन होता है, वह सत्य नहीं
हमारी भावनाएँ निरंतर परिवर्तनशील हैं – कभी खुशी, कभी दुःख, कभी शांति, कभी अशांति। वे आती हैं और जाती हैं, जैसे मौसम बदलता है। लेकिन जो परिवर्तनशील है, वह सत्य कैसे हो सकता है?
सत्य वह है जो सदा अपरिवर्तित रहता है – वह अनुभवकर्ता, वह साक्षी, वह चैतन्य जो इन सभी परिवर्तनों को देखता है।
उदाहरण: आज आप प्रसन्न हैं, कल दुःखी हो सकते हैं। प्रसन्नता और दुःख बदलते रहते हैं, लेकिन जो इन्हें जानता है, वह नहीं बदलता। वही सत्य है, वही आपका वास्तविक स्वरूप है।
निष्कर्ष: भाव वृत्ति से परे जीवन की यात्रा
भाव वृत्ति – भावनात्मक अनुभवों, गहरे संबंधों और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं की चाह – मानव स्वभाव का एक स्वाभाविक हिस्सा है। यह न तो अच्छी है, न बुरी – यह सिर्फ है।
जब हम अनुभवकर्ता होते हैं – इन भावनात्मक वृत्तियों के साक्षी, दृष्टा – तब हम इनके प्रभाव से स्वतंत्र हो जाते हैं। हम इनसे लड़ते नहीं, इन्हें दबाते नहीं, इन्हें अस्वीकार नहीं करते – हम सिर्फ इन्हें देखते हैं।
और इस देखने में, एक अद्भुत परिवर्तन होता है। हम अपने अंदर एक ऐसे स्थान को पाते हैं जो भावनात्मक उतार-चढ़ाव पर निर्भर नहीं है। हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं, जो भाव वृत्ति से परे है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी भावनाओं का त्याग कर दें। बल्कि, हम इन सबको अधिक स्वतंत्रता, सहजता और गहराई से अनुभव करते हैं – इनके गुलाम बने बिना, इनकी दासता से मुक्त होकर।
आज ही से अपने जीवन में भाव वृत्ति के प्रति साक्षी भाव विकसित करें। अपनी भावनाओं, अपने भावनात्मक संबंधों और प्रतिक्रियाओं को देखें। उन्हें न तो अच्छा कहें, न बुरा। बस देखें, और उस देखने में स्वतंत्रता पाएँ।
याद रखें, आप अपनी भावनाओं के स्वामी नहीं, न ही दास – आप उनके साक्षी हैं, अनुभवकर्ता हैं, आत्मन हैं।
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