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पशु वृत्ति से मुक्ति: जागरूकता और परिवर्तन का मार्ग

पशु वृत्ति से मुक्ति

by | Apr 24, 2025 | Sanatan Soul

पशु वृत्ति को साक्षी भाव से समझना: अनुभवकर्ता की दृष्टि

हम सभी के भीतर विभिन्न प्रकार की वृत्तियाँ होती हैं। कुछ वृत्तियाँ हमें ऊपर की ओर ले जाती हैं, और कुछ हमें नीचे खींचती हैं। इस लेख में, हम ‘पशु वृत्ति’ को समझेंगे – वे आदिम प्रवृत्तियाँ जो हमारे मन में जन्मजात रूप से मौजूद हैं।

परंतु, हम इन्हें समझेंगे ‘अनुभवकर्ता’ के दृष्टिकोण से। अनुभवकर्ता को हम कई नामों से जानते हैं – दृष्टा, साक्षी, चैतन्य, आत्मन। यह वह है जो हमारे भीतर देखता है, अनुभव करता है, पर किसी भी वृत्ति से प्रभावित नहीं होता।

ज्ञान मार्ग की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अपनी वृत्तियों को ‘नियंत्रित’ करने की कोशिश नहीं करते, बल्कि उन्हें ‘देखते’ हैं, ‘साक्षी’ बनते हैं, और उनका ‘अवलोकन’ करते हैं। आइए पशु वृत्ति के विभिन्न पहलुओं को साक्षी भाव से समझें।

1. व्यवहार (Behavior) में पशु वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

सरलता और आज्ञाकारिता का अवलोकन

राकेश की कहानी: राकेश एक 45 वर्षीय बैंक कर्मचारी हैं। वे अपने मैनेजर की हर बात मानते हैं, कभी सवाल नहीं उठाते। एक दिन, उनके एक पुराने मित्र ने उनसे कहा, “तुम हमेशा हर चीज़ मान लेते हो, अपनी राय कभी नहीं रखते।”

राकेश ने कहा, “हाँ, मैं देख रहा हूँ कि मेरे व्यवहार में एक सरलता और आज्ञाकारिता है। यह अच्छा भी है, पर कभी-कभी यह मेरे लिए हानिकारक भी होता है।”

इसी तरह, हम सभी अपने भीतर देख सकते हैं कि कैसे हम कभी-कभी बिना सोचे-समझे दूसरों की बात मान लेते हैं। साक्षी बनकर, हम इस वृत्ति को देखते हैं, बिना आलोचना के।

आक्रामकता और रक्षात्मकता का साक्षित्व

अनिता की कहानी: अनिता एक कॉल सेंटर में काम करती हैं। एक दिन, एक ग्राहक ने उन पर चिल्लाना शुरू किया। अनिता का पहला प्रतिक्रिया था ग्राहक पर वापस चिल्लाना। लेकिन अचानक, उन्होंने अपने भीतर इस आवेग को देखा।

“मुझे अभी गुस्सा आ रहा है,” उन्होंने अपने आप से कहा। “मेरे शरीर में गर्मी महसूस हो रही है, मेरे हाथ कंप रहे हैं। यह मेरी पशु वृत्ति है – रक्षा या आक्रमण की प्रवृत्ति।”

वह सिर्फ इस प्रवृत्ति की साक्षी बनीं, उसमें उलझीं नहीं। उन्होंने तीन गहरी साँसें लीं और शांति से जवाब दिया।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे व्यवहार को देखता है, उसे नियंत्रित नहीं करता। जैसे पेड़ पर बैठा पक्षी सड़क पर चलते लोगों को देखता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे भीतर के व्यवहार को देखता है।

मजदूर बाबा की कहानी:

मजदूर बाबा एक साधारण मजदूर थे, लेकिन उनकी समझदारी अद्भुत थी। एक दिन, एक युवक ने उनसे पूछा, “बाबा, आप इतने शांत कैसे रहते हैं, जबकि ठेकेदार आप पर चिल्लाता है और कम पैसे देता है?”

मजदूर बाबा मुस्कुराए, “बेटा, मैं देखता हूँ कि मेरे भीतर गुस्सा उठता है। मैं उसे आते-जाते देखता हूँ, जैसे आकाश में बादल आते-जाते हैं। मैं वह गुस्सा नहीं हूँ, मैं उसका दृष्टा हूँ। जब मैं इसे देखता हूँ, तो यह अपनी शक्ति खो देता है।”

युवक ने कहा, “लेकिन आप इसे नियंत्रित कैसे करते हैं?”

मजदूर बाबा ने जवाब दिया, “मैं नियंत्रित नहीं करता, मैं सिर्फ देखता हूँ। देखना ही सबसे बड़ी शक्ति है।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. साक्षी भाव अभ्यास: जब आप किसी स्थिति में प्रतिक्रिया करें, एक क्षण रुकें और कहें: “मैं देख रहा/रही हूँ कि मेरा व्यवहार कैसा है।” बस देखें, निर्णय न करें।
  2. शरीर का अवलोकन: अपने शरीर की प्रतिक्रियाओं पर ध्यान दें – क्या आपके हाथ कंप रहे हैं? हृदय तेजी से धड़क रहा है? ये संकेत हैं आपकी पशु वृत्ति के सक्रिय होने के।
  3. दृष्टा अभ्यास: दिन में कम से कम तीन बार खुद से कहें, “मैं मेरे व्यवहार का दृष्टा हूँ, मैं मेरा व्यवहार नहीं हूँ।”

2. वाणी (Speech) में पशु वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

पुरानी बातों का दोहराव देखना

सुनीता की कहानी: सुनीता हर दिन अपनी सहेलियों के साथ चाय पर मिलती हैं। एक दिन, उन्होंने ध्यान दिया कि वह हर दिन एक ही बातें दोहराती हैं – बच्चों की समस्याएँ, महंगाई, पड़ोसियों की गपशप।

“मैं देख रही हूँ कि मेरी वाणी में नयापन नहीं है,” उन्होंने स्वयं से कहा। “मैं हमेशा वही पुरानी बातें दोहराती रहती हूँ।”

यह देखकर, वह न तो परेशान हुईं, न ही खुद को कोसा। वह बस इस पैटर्न की साक्षी बनीं।

हिंसक और अपमानजनक भाषा का अवलोकन

विशाल की कहानी: विशाल एक कार चालक हैं। ट्रैफिक में फंसने पर वह अक्सर गालियां देते हैं। एक दिन उन्होंने अपनी इस आदत को देखा।

“मैं देख रहा हूँ कि जब मैं गुस्सा होता हूँ, तो मेरी वाणी में हिंसा आ जाती है,” उन्होंने महसूस किया। “मैं ऐसे शब्द बोलता हूँ जो दूसरों को और मुझे भी नुकसान पहुंचाते हैं।”

वह इस पैटर्न के साक्षी बने, इससे उलझे नहीं।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारी वाणी को सुनता है, बिना निर्णय लिए। जैसे पहाड़ी पर बैठा कोई व्यक्ति घाटी से आती आवाजें सुनता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे शब्दों को सुनता है।

फल विक्रेता की कहानी:

मुंबई के एक बाजार में रमीज़ा नाम की एक फल विक्रेता थी। वह बहुत कम बोलती थी, पर उसकी बात में प्रभाव था। एक दिन एक ग्राहक ने उससे पूछा, “आप इतना कम क्यों बोलती हैं?”

रमीज़ा ने मुस्कुराकर कहा, “मैं अपने शब्दों को सुनती हूँ, इससे पहले कि दूसरे सुनें। जब मैं सुनती हूँ, तो अक्सर पाती हूँ कि बोलने की जरूरत ही नहीं है।”

ग्राहक ने पूछा, “लेकिन जब दूसरे आप पर चिल्लाते हैं या आपका सामान लेकर मोल-भाव करते हैं, तब भी आप शांत कैसे रहती हैं?”

रमीज़ा ने कहा, “मैं अपने भीतर उठने वाले गुस्से को सुनती हूँ, जो जवाब देना चाहता है। मैं उसे सुनती हूँ, फिर उसे जाने देती हूँ। मैं वह गुस्सा नहीं हूँ, मैं उसकी श्रोता हूँ।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. वाणी का अवलोकन: एक दिन के लिए, हर बार बोलने से पहले एक पल रुकें और सोचें: “क्या मैं कोई नई बात कह रहा/रही हूँ या पुरानी बातें दोहरा रहा/रही हूँ?”
  2. मौन का अभ्यास: हर दिन 10 मिनट का मौन रखें, जहां आप सिर्फ अपने विचारों और आवाज़ों को सुनें।
  3. प्रश्न पूछने का अभ्यास: बातचीत में, बोलने से ज्यादा सवाल पूछें और सुनें। यह आपकी वाणी में नयापन लाएगा।

3. विचार (Thoughts) में पशु वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

भय और चिंता के विचारों का साक्षित्व

महेश की कहानी: महेश एक छोटे व्यापार के मालिक हैं। हर रात, उनके मन में चिंताओं का तूफान उठता है – “क्या मेरा व्यापार चलेगा? पैसे कैसे आएंगे? परिवार का क्या होगा?”

एक दिन, एक दोस्त ने उन्हें ध्यान का अभ्यास सिखाया। महेश ने अपने विचारों को देखना शुरू किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे मन में भय के विचार आ रहे हैं,” उन्होंने स्वयं से कहा। “ये विचार आ रहे हैं, लेकिन मैं इन विचारों से अलग हूँ।”

जैसे-जैसे वह अपने विचारों के साक्षी बने, उन्होंने देखा कि विचार अपनी शक्ति खोने लगे।

सीमित और आदतन सोच का अवलोकन

पूजा की कहानी: पूजा एक गृहिणी हैं। उन्होंने एक दिन देखा कि उनके विचार अधिकतर घर, खाना, और परिवार तक ही सीमित हैं।

“मैं देख रही हूँ कि मेरे विचार एक ही दायरे में घूमते हैं,” उन्होंने महसूस किया। “मैं अपने विचारों को विस्तृत कर सकती हूँ।”

वह अपने सीमित विचारों की साक्षी बनीं, और फिर धीरे-धीरे नए विचारों को आमंत्रित करने लगीं।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे विचारों को देखता है, उनसे प्रभावित नहीं होता। जैसे आकाश बादलों को आते-जाते देखता है, वैसे ही अनुभवकर्ता विचारों को देखता है।

कबाड़ी वाले की कहानी:

शाहरुख एक कबाड़ी वाले के रूप में काम करता था। हर दिन वह शहर की गलियों में घूमता और पुराना सामान इकट्ठा करता। एक दिन एक कॉलेज प्रोफेसर ने उससे पूछा, “आप हमेशा इतने खुश कैसे रहते हैं, जबकि आपका काम इतना कठिन है?”

शाहरुख ने मुस्कुराकर कहा, “साहब, मैंने एक बात सीखी है। मेरे दिमाग में हजारों विचार आते हैं – कभी चिंता, कभी गुस्सा, कभी दुख। मैं इन सबको देखता हूँ, जैसे सड़क पर बिखरे कबाड़ को देखता हूँ। मैं जो चाहूँ उठा लेता हूँ, बाकी छोड़ देता हूँ। मैं अपने विचारों का मालिक नहीं, साक्षी हूँ।”

प्रोफेसर चकित रह गए। उन्होंने कहा, “आपने जीवन का गहरा दर्शन कबाड़ से सीखा है।”

शाहरुख ने कहा, “जिंदगी हर जगह सिखाती है, बस देखने वाली आँखें चाहिए।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. विचार डायरी: एक नोटबुक रखें और दिन में तीन बार 5 मिनट के लिए अपने विचारों को लिखें, बिना किसी निर्णय के।
  2. विचार-साक्षी अभ्यास: जब भी आप परेशान हों, कहें: “मेरे मन में यह विचार आ रहा है, और मैं इसे देख रहा/रही हूँ।”
  3. चिंतन समय: हर दिन 15 मिनट का समय निकालें जहाँ आप किसी नए विषय पर सोचें, अपने विचारों को विस्तृत करें।

4. संबंध (Relationships) में पशु वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

सुरक्षा और स्थिरता के लिए संबंधों का अवलोकन

अमित की कहानी: अमित एक आईटी कंपनी में काम करते हैं। वह अपने दोस्तों और परिवार से मजबूत संबंध रखते हैं। एक दिन, उन्होंने स्वयं से पूछा, “मैं इन संबंधों को क्यों महत्व देता हूँ?”

उन्होंने देखा कि वह अक्सर सुरक्षा, स्थिरता और सुख के लिए इन संबंधों पर निर्भर हैं। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे संबंधों में एक प्रकार की निर्भरता है,” उन्होंने महसूस किया। “यह एक प्राकृतिक वृत्ति है, लेकिन मैं इससे अधिक हूँ।”

निर्भरता और स्वार्थ संबंधों का साक्षित्व

रेखा की कहानी: रेखा अपने जीजा के व्यापार में काम करती हैं। एक दिन उन्होंने देखा कि वह अपने जीजा की हर बात इसलिए मान लेती हैं क्योंकि उनकी नौकरी उन पर निर्भर है।

“मैं देख रही हूँ कि मेरे इस संबंध में एक प्रकार का स्वार्थ और भय है,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी पशु वृत्ति है – अस्तित्व और सुरक्षा के लिए समझौता करना।”

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे संबंधों को देखता है, उनमें उलझता नहीं। जैसे कोई नदी के दो किनारों को एक साथ देखता है, वैसे ही अनुभवकर्ता संबंधों के दोनों पक्षों को देखता है।

रिक्शा चालक की कहानी:

चंदन एक रिक्शा चालक थे। हर दिन वह अलग-अलग यात्रियों से मिलते, कुछ अच्छे, कुछ रूखे, कुछ उदार, कुछ कंजूस। एक दिन एक यात्री ने पूछा, “आप सभी के साथ इतना अच्छा व्यवहार कैसे करते हैं?”

चंदन ने कहा, “हर यात्री के साथ मेरा एक अलग संबंध है – कुछ के साथ अच्छा, कुछ के साथ चुनौतीपूर्ण। मैं इन सभी संबंधों को देखता हूँ, पर इनमें खो नहीं जाता। मैं जानता हूँ कि ये संबंध आते-जाते हैं, जैसे सड़क पर यात्री।”

यात्री ने कहा, “लेकिन कुछ लोग आपसे बुरा व्यवहार करते होंगे?”

चंदन ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ, और मैं अपने भीतर उठने वाले बुरे भावों को भी देखता हूँ। मैं न तो उनके व्यवहार का गुलाम हूँ, न ही अपनी प्रतिक्रिया का। मैं दोनों का साक्षी हूँ।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. संबंध अवलोकन: अपने प्रमुख संबंधों के बारे में सोचें और स्वयं से पूछें: “मैं इस संबंध में क्या देख रहा/रही हूँ? क्या यह सुरक्षा, स्वार्थ, या सच्चे प्रेम पर आधारित है?”
  2. स्वतंत्र साक्षी: अपने किसी करीबी संबंध में, एक दिन बिना कुछ बदले या माँगे, सिर्फ देखें और अनुभव करें।
  3. संबंध दर्पण: हर संबंध को अपने भीतर झांकने का दर्पण मानें। जब कोई आपको गुस्सा दिलाए, देखें आपके भीतर क्या उभरता है।

5. मनोरंजन (Recreation) में पशु वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

पलायनवादी मनोरंजन का अवलोकन

राहुल की कहानी: राहुल दिनभर की थकान के बाद हर शाम टीवी पर क्राइम शो देखते हैं। एक दिन उन्होंने स्वयं से पूछा, “मैं इन हिंसक शो में क्या ढूंढ रहा हूँ?”

उन्होंने महसूस किया, “मैं देख रहा हूँ कि मेरे मनोरंजन में एक प्रकार का पलायन है। मैं अपनी वास्तविक भावनाओं और जीवन से भाग रहा हूँ।”

सरल और आसान मनोरंजन का साक्षित्व

निशा की कहानी: निशा अपने फोन पर घंटों सोशल मीडिया स्क्रॉल करती हैं। एक दिन उन्होंने इस आदत को देखा।

“मैं देख रही हूँ कि मैं ऐसे मनोरंजन को चुनती हूँ जो समझने में आसान है, जिसमें दिमाग लगाने की जरूरत नहीं,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी पशु वृत्ति है – कम प्रयास और तत्काल संतुष्टि की चाह।”

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन के विकल्पों को देखता है, बिना निर्णय लिए। जैसे कोई संगीत सुनता है, बिना उसे अच्छा या बुरा कहे, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन को देखता है।

सब्जी विक्रेता की कहानी:

मोहन एक सब्जी विक्रेता थे। हर शाम, अपनी दुकान बंद करने के बाद, वह पास के मंदिर में जाते और वहां के प्रांगण में बैठकर लोगों को देखते। एक दिन, एक नियमित ग्राहक ने उन्हें वहां देखा और पूछा, “मोहन भाई, आप यहां क्या करते हैं? कोई भजन-कीर्तन नहीं चल रहा?”

मोहन ने मुस्कुराकर कहा, “नहीं, मैं बस लोगों को देखता हूँ। कोई हंसता है, कोई रोता है, कोई प्रार्थना करता है, कोई सिर्फ आराम करता है। मैं अपने भीतर देखता हूँ कि मुझे कैसा लगता है। यह मेरा मनोरंजन है – देखना, अनुभव करना, बिना कुछ पाने या खोने की इच्छा के।”

ग्राहक ने कहा, “लेकिन टीवी देखना, फिल्में देखना ज्यादा मजेदार नहीं होगा?”

मोहन ने कहा, “वह भी अच्छा है। लेकिन वहां मैं सिर्फ देखता हूँ, यहां मैं अपने देखने को भी देखता हूँ। अपने अनुभव का अनुभव करता हूँ। यह अलग तरह का आनंद है।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. मनोरंजन लॉग: एक सप्ताह तक अपने सभी मनोरंजन गतिविधियों को लिखें और देखें कि आप किस प्रकार का मनोरंजन पसंद करते हैं।
  2. विविधता अभ्यास: अपने मनोरंजन में विविधता लाएँ – कुछ सक्रिय, कुछ शांत, कुछ सोचने वाला, कुछ आनंददायक। फिर देखें आप किसमें ज्यादा खिंचे चले जाते हैं।
  3. साक्षी मनोरंजन: अगली बार जब आप टीवी देखें या फोन चलाएँ, अपने आप से पूछें: “मैं इस गतिविधि में क्या ढूंढ रहा/रही हूँ? मैं कैसा महसूस कर रहा/रही हूँ?”

6. स्वास्थ्य (Health) में पशु वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

सामान्य स्वास्थ्य प्रति उदासीनता का अवलोकन

रमेश की कहानी: रमेश 45 वर्ष के हैं और एक ऑफिस में काम करते हैं। उनका स्वास्थ्य न बहुत अच्छा है, न बहुत खराब। वह कहते हैं, “मेरा स्वास्थ्य सामान्य है, मैं ठीक हूँ।”

एक दिन उनके डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनका ब्लड प्रेशर बढ़ रहा है। रमेश ने स्वयं से कहा, “मैं देख रहा हूँ कि मैंने अपने स्वास्थ्य के प्रति एक प्रकार की उदासीनता विकसित कर ली है। मैं तब तक ध्यान नहीं देता जब तक कोई समस्या न हो।”

शक्ति प्रदर्शन से स्वास्थ्य को देखना

विक्रम की कहानी: विक्रम एक युवा पहलवान हैं। वह अपने शरीर और शक्ति पर बहुत गर्व करते हैं। एक दिन प्रशिक्षण के दौरान उन्हें चोट लग गई।

ठीक होने के दौरान उन्होंने स्वयं से कहा, “मैं देख रहा हूँ कि मैं अपने स्वास्थ्य को सिर्फ शक्ति और प्रदर्शन के रूप में देखता हूँ। यह मेरी पशु वृत्ति है – शारीरिक श्रेष्ठता दिखाने की चाह।”

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे स्वास्थ्य की स्थिति को देखता है, उससे पहचान नहीं बनाता। जैसे कोई वाहन का रखरखाव करता है पर उससे खुद को अलग जानता है, वैसे ही अनुभवकर्ता शरीर को देखता है।

बागवान की कहानी:

रामू काका एक छोटे से गाँव में बागवानी करते थे। 70 साल की उम्र में भी वह बड़ी फुर्ती से काम करते थे। एक बार एक शहरी आगंतुक ने उनसे पूछा, “काका, आप इतनी उम्र में भी इतने स्वस्थ कैसे हैं?”

रामू काका हंसे और बोले, “देखो बेटा, मैं अपने शरीर को एक बगीचे की तरह देखता हूँ। मैं इसका अनुभव करता हूँ, इसकी देखभाल करता हूँ, पर मैं यह जानता हूँ कि मैं यह बगीचा नहीं हूँ। मैं इसका माली हूँ, इसका अनुभवकर्ता हूँ।”

आगंतुक ने पूछा, “लेकिन जब आप बीमार पड़ते हैं तब क्या करते हैं?”

रामू काका ने कहा, “जैसे बगीचे में कभी कीड़े लग जाते हैं या सूखा पड़ जाता है, वैसे ही शरीर में भी बीमारी आती है। मैं इसका भी अनुभव करता हूँ, इलाज करता हूँ, पर इससे घबराता नहीं। मैं बीमारी का भी दृष्टा हूँ, स्वास्थ्य का भी।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. शारीरिक अनुभव: हर दिन 5 मिनट के लिए आँखें बंद करके अपने शरीर को महसूस करें – साँस की आवाज, दिल की धड़कन, पेट में हलचल। सिर्फ अनुभव करें, निर्णय न करें।
  2. स्वास्थ्य डायरी: अपने स्वास्थ्य में होने वाले परिवर्तनों को बिना भय या चिंता के नोट करें। शरीर के संकेतों के साक्षी बनें।
  3. संतुलित दृष्टिकोण: अपने स्वास्थ्य को न तो अत्यधिक महत्व दें, न ही उपेक्षा करें। एक साक्षी की तरह देखें – “यह मेरा शरीर है, मैं इसकी देखभाल करता/करती हूँ, पर मैं यह नहीं हूँ।”

पशु वृत्ति की पहचान और उससे ऊपर उठना

हमारे भीतर की पशु वृत्ति स्वाभाविक है, और इसे अस्वीकार करने या इससे लड़ने की आवश्यकता नहीं है। अनुभवकर्ता के रूप में, हम इसे देखते हैं, समझते हैं, और धीरे-धीरे इससे ऊपर उठते हैं।

सब्जी मंडी के प्रसंग:

एक बार एक व्यक्ति सब्जी मंडी में गया। उसने देखा कि वहां सब्जियों की कई अलग-अलग किस्में थीं – कुछ ताजी, कुछ थोड़ी पुरानी, कुछ बहुत महंगी, कुछ सस्ती।

वह सबसे अच्छी सब्जियां चुनने में व्यस्त था, जब उसने एक बुजुर्ग को देखा जो बस खड़े थे और मंडी का नजारा देख रहे थे। व्यक्ति ने पूछा, “बाबा, आप सब्जियां नहीं खरीद रहे?”

बुजुर्ग ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, पहले मैं अपने भीतर देख रहा हूँ कि मेरी क्या जरूरत है, फिर मैं सब्जियों को देखूंगा। अक्सर हमारी पशु वृत्ति हमें सबसे अच्छा, सबसे ज्यादा, सबसे बेहतर चुनने के लिए प्रेरित करती है, जबकि हमारी वास्तविक जरूरत बहुत कम होती है।”

व्यक्ति ने कहा, “लेकिन मैं तो अच्छी चीजें लेना चाहता हूँ, इसमें गलत क्या है?”

बुजुर्ग ने कहा, “कुछ भी गलत नहीं है। बस अपने भीतर के उस हिस्से को देखो जो चुनाव कर रहा है, जो तुलना कर रहा है, जो ज्यादा पाना चाहता है। इसे देखो, इसके साथ लड़ो मत। देखने से ही समझ आएगी।”

पशु वृत्ति के साक्षी बनने के दैनिक अभ्यास:

  1. प्रातः जागरूकता: सुबह उठते ही 5 मिनट शांति से बैठें और कहें, “आज मैं अपनी सभी वृत्तियों का साक्षी बनूंगा/बनूंगी, बिना निर्णय के, बिना प्रतिक्रिया के।”
  2. दैनिक ट्रिगर नोट: दिन भर में जो भी स्थितियां आपको परेशान करें या उत्तेजित करें, उन्हें एक छोटी नोटबुक में लिखें। शाम को देखें और पहचानें कि कौन सी पशु वृत्ति (भय, क्रोध, लालच, आलस्य) सक्रिय हुई थी।
  3. शरीर अनुभव: जब भी आप तनाव, क्रोध या भय महसूस करें, अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों को देखें – हृदय गति, श्वास, मांसपेशियों में तनाव। ये पशु वृत्ति के सक्रिय होने के संकेत हैं।
  4. मौन अवलोकन: हर दिन 15-20 मिनट का समय निकालें जहां आप सिर्फ बैठें और अपने विचारों, भावनाओं और शारीरिक संवेदनाओं का अवलोकन करें।
  5. साक्षी प्रश्न: दिन में कई बार स्वयं से पूछें:
    • “मैं इस क्षण क्या अनुभव कर रहा/रही हूँ?”
    • “मैं इस अनुभव का साक्षी कैसे बन सकता/सकती हूँ?”
    • “मेरी कौन सी पशु वृत्ति इस समय सक्रिय है?”

जीवन में पशु वृत्ति के व्यावहारिक उदाहरण

1. ऑफिस में दिखाई देने वाली पशु वृत्ति

सुमित का प्रसंग: सुमित एक कॉरपोरेट कंपनी में काम करते हैं। एक दिन, उनके सहकर्मी को उनके बजाय प्रमोशन मिल गया। सुमित के भीतर ईर्ष्या और क्रोध उभरा।

अनुभवकर्ता के रूप में, सुमित ने इन भावनाओं को देखा। “मैं देख रहा हूँ कि मुझे ईर्ष्या हो रही है। यह मेरी पशु वृत्ति है – प्रतिस्पर्धा और तुलना की प्रवृत्ति।” उन्होंने इस भावना से लड़ने के बजाय उसे देखा, समझा, और धीरे-धीरे वह शांत हो गई।

2. परिवार में दिखाई देने वाली पशु वृत्ति

गीता का प्रसंग: गीता अपने बेटे को बहुत प्यार करती हैं। जब उसने बताया कि वह शादी के बाद दूसरे शहर में रहना चाहता है, गीता भावुक हो गईं और रोने लगीं।

अनुभवकर्ता के रूप में, गीता ने अपनी इस प्रतिक्रिया को देखा। “मैं देख रही हूँ कि मुझे अपने बेटे से बिछड़ने का डर है। यह मेरी पशु वृत्ति है – अपने बच्चे को अपने पास रखने की प्राकृतिक प्रवृत्ति।” इस समझ से, वह अपने डर से ऊपर उठ सकीं और बेटे के निर्णय का सम्मान कर सकीं।

3. सामाजिक परिस्थितियों में दिखाई देने वाली पशु वृत्ति

मनोज का प्रसंग: मनोज को एक पार्टी में आमंत्रित किया गया जहां उन्हें कोई नहीं जानता था। उन्होंने सोचा, “मैं नहीं जाऊंगा, वहां अजनबियों के बीच असहज लगेगा।”

अनुभवकर्ता के रूप में, मनोज ने इस विचार को देखा। “मैं देख रहा हूँ कि मुझे अपरिचित लोगों से डर लग रहा है। यह मेरी पशु वृत्ति है – अपने समूह के बाहर जाने से डरना।” इस जागरूकता से, उन्होंने पार्टी में जाने का निर्णय लिया और अंततः नए दोस्त बनाए।

अनुभवकर्ता की दृष्टि से पशु वृत्ति को समझने का महत्व

गुरुजी के उपदेश:

एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु अक्सर अपने शिष्यों से कहते थे, “पशु वृत्ति को दबाओ मत, उससे लड़ो मत, उसे दूर करने की कोशिश मत करो। बस उसे देखो, उसके साक्षी बनो।”

एक बार एक शिष्य ने पूछा, “गुरुजी, सिर्फ देखने से क्या होगा? मुझे तो अपनी पशु वृत्ति को मिटाना है।”

गुरुजी मुस्कुराए, “क्या तुमने कभी अंधेरे कमरे में प्रकाश जलाया है? क्या तुम्हें अंधेरे को हटाना पड़ा या सिर्फ प्रकाश जलाना पड़ा?”

शिष्य ने कहा, “सिर्फ प्रकाश जलाना पड़ा। अंधेरा अपने आप हट गया।”

गुरुजी ने कहा, “ठीक वैसे ही, अनुभवकर्ता की दृष्टि का प्रकाश जब पशु वृत्ति पर पड़ता है, तो वह अपने आप कमजोर पड़ने लगती है। तुम्हें उससे लड़ना नहीं, बस उसे देखते रहना है।”

क्रमिक परिवर्तन की कहानी

मीरा की यात्रा:

मीरा एक साधारण गृहिणी थीं। वह अपने परिवार की देखभाल करतीं, घर के काम करतीं, और अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जीतीं। उनके भीतर भी पशु वृत्तियां थीं – कभी गुस्सा, कभी भय, कभी चिंता, कभी आलस्य।

एक दिन, उन्होंने अपने पड़ोस में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला शांति देवी से बातचीत की। शांति देवी ने उन्हें साक्षी भाव की बात समझाई:

“देखो मीरा, हम सब के भीतर पशु वृत्तियां हैं, यह स्वाभाविक है। लेकिन हम इनसे अधिक हैं, हम इनके द्रष्टा हैं, अनुभवकर्ता हैं।”

मीरा ने साक्षी भाव का अभ्यास शुरू किया। जब भी वह गुस्सा होतीं, कहतीं, “मैं देख रही हूँ कि मुझे गुस्सा आ रहा है।” जब कभी भय महसूस होता, कहतीं, “मैं देख रही हूँ कि मुझे डर लग रहा है।”

धीरे-धीरे, वह अपनी भावनाओं और वृत्तियों से पहचान बनाना छोड़ दीं। वह उनसे अलग, उनकी साक्षी बन गईं।

छह महीने बाद, मीरा बदल गई थीं। वह पहले की तरह गुस्सा या चिंता करती थीं, लेकिन अब उनका प्रभाव कम हो गया था। एक दिन शांति देवी ने पूछा, “मीरा, तुम इतनी शांत कैसे हो गई हो?”

मीरा ने मुस्कुराकर कहा, “क्योंकि अब मैं अपने भीतर की पशु वृत्ति को देखती हूँ, उससे लड़ती नहीं। मैं उसकी साक्षी हूँ, और जब मैं साक्षी बनती हूँ, तो मैं वह वृत्ति नहीं रह जाती।”

शांति देवी ने कहा, “यही तो ज्ञान मार्ग का सार है – देखना, साक्षी बनना, अनुभवकर्ता होना।”

निष्कर्ष: पशु वृत्ति से ऊपर उठने का मार्ग

हमारी पशु वृत्तियां – भय, क्रोध, लालच, आलस्य, सुरक्षा की चाह, स्वाद की तृष्णा – ये सभी हमारे अस्तित्व का हिस्सा हैं। इनसे लड़ना या इन्हें दबाना समाधान नहीं है।

वास्तविक समाधान है अनुभवकर्ता बनना – इन वृत्तियों का साक्षी, दृष्टा बनना। जब हम देखते हैं, तो हम जागरूक होते हैं। जब हम जागरूक होते हैं, तो हम स्वतंत्र होते हैं।

याद रखें, आप सिर्फ अपनी वृत्तियां नहीं हैं, आप उनके अनुभवकर्ता हैं। आप सिर्फ शरीर, मन, विचार या भावनाएँ नहीं हैं, आप वह हैं जो इन सबको देखता है – शुद्ध चेतना, आत्मन, साक्षी।

जीवन में हर स्थिति में, अपने आप से पूछें:

  • “मैं इस क्षण क्या अनुभव कर रहा/रही हूँ?”
  • “कौन है जो इस अनुभव को देख रहा है?”

इस साक्षी भाव से जीते हुए, आप धीरे-धीरे अपनी पशु वृत्ति से ऊपर उठ जाएंगे और अपने सच्चे स्वरूप – शांत, प्रेममय, अनंत चेतना – का अनुभव करेंगे।

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Ajay Shukla

Throughout my life, I've worked across multiple industries, and truthfully, defining myself in one line has never been easy. However, a few roles resonate deeply with me: digital marketing strategist, former journalist (Dainik Jagran) and journalism teacher, and a lifelong student of existence. Each experience has shaped who I am, merging practical insight with a quest for deeper understanding.

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सृष्टि का आरंभ: शून्य से सब कुछ तक की संपूर्ण यात्रा

सृष्टि के आरंभ का सबसे गहरा रहस्य इस सरल सत्य में छुपा है – जब परम शून्यता स्वयं को अनुभव करना चाहती है, तभी सृष्टि का जन्म होता है। यह लेख शिव चेतना से लेकर संपूर्ण ब्रह्मांड तक की उस अद्भुत यात्रा को उजागर करता है जो हर आत्मा को करनी पड़ती है।

नेति नेति की अवस्था से सब कुछ बनने तक, और फिर सब कुछ छोड़कर वापस शुद्ध चेतना तक पहुंचने की यह संपूर्ण प्रक्रिया वास्तव में अहंकार की मृत्यु और शिव तत्व के पुनरागमन की कहानी है। जानिए कैसे आध्यात्मिक साधना के माध्यम से हम उसी मूल स्रोत तक वापस पहुंच सकते हैं जहां से हमारी यात्रा शुरू हुई थी।

यह केवल दर्शन नहीं, बल्कि उस व्यावहारिक ज्ञान का सार है जो हमें वर्तमान क्षण में पूर्ण चैतन्यता के साथ जीने की कला सिखाता है। शिव = कुछ भी नहीं – यह समीकरण समझना ही मुक्ति का द्वार है।

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