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जाति वृत्ति को साक्षी भाव से समझना: अनुभवकर्ता की दृष्टि

जाति वृत्ति

by | Apr 26, 2025 | Sanatan Soul

हमारे भीतर कई प्रकार की वृत्तियाँ होती हैं जो हमारे व्यक्तित्व और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती हैं। इन वृत्तियों में से एक महत्वपूर्ण है – जाति वृत्ति। जाति वृत्ति का अर्थ है सामाजिक पहचान, सफलता, प्रतिष्ठा और सामाजिक संबंधों से जुड़ी प्रवृत्तियाँ।

ज्ञान मार्ग पर चलते हुए, हम इन वृत्तियों को ‘नियंत्रित’ नहीं करते, बल्कि ‘अनुभवकर्ता’ के रूप में इनका ‘अवलोकन’ करते हैं। अनुभवकर्ता को हम कई नामों से जानते हैं – दृष्टा, साक्षी, चैतन्य, आत्मन। आइए जाति वृत्ति के विभिन्न पहलुओं को साक्षी भाव से समझें।

1. व्यवहार (Behavior) में जाति वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

साहसी, आत्मविश्वासी और मेहनती व्यवहार का अवलोकन

रवि की कहानी: रवि एक 35 वर्षीय उद्यमी हैं। वह अपने छोटे व्यवसाय को बड़ी कंपनी में बदलने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। एक दिन, एक मित्र ने पूछा, “क्या आप कभी थकते नहीं हैं?”

रवि ने एक क्षण रुककर अपने व्यवहार पर चिंतन किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरे भीतर एक ऐसी वृत्ति है जो मुझे निरंतर मेहनत करने, साहसी कदम उठाने और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी जाति वृत्ति है – समाज में सफल और प्रतिष्ठित होने की इच्छा।”

रवि इस वृत्ति के साक्षी बने, इससे तादात्म्य किए बिना।

स्वतंत्र और नेतृत्वकारी प्रवृत्ति का साक्षित्व

अनीता की कहानी: अनीता एक शिक्षिका थीं। लेकिन उन्हें हमेशा महसूस होता था कि वह किसी और के अधीन काम करने के बजाय अपना स्कूल खोलना चाहती हैं। एक दिन, वह इस इच्छा पर गहराई से विचार करने लगीं।

“मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर एक स्वतंत्र और नेतृत्वकारी प्रवृत्ति है,” उन्होंने स्वयं से कहा। “मैं कर्मचारी नहीं, नियोक्ता बनना चाहती हूँ। यह मेरी जाति वृत्ति है – दूसरों का मार्गदर्शन करने की, प्रभाव रखने की इच्छा।”

अनीता इस प्रवृत्ति की साक्षी बनीं, बिना इसे अच्छा या बुरा कहे।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे व्यवहार के पैटर्न को देखता है, उन्हें स्वयं मान लिए बिना। जैसे रात को तारे देखने वाला व्यक्ति तारों से अलग होता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे व्यवहार से अलग होता है।

चाय विक्रेता की कहानी:

पंकज अपने छोटे से चाय के ठेले पर दिन भर काम करते थे। वह शहर के व्यस्त चौराहे पर स्थित थे जहां कई बड़े व्यापारी और अधिकारी आते-जाते थे। एक दिन, एक नियमित ग्राहक ने उनसे पूछा, “पंकज, तुम भी एक रेस्तरां क्यों नहीं खोलते? तुम्हारी चाय तो बहुत अच्छी है।”

पंकज ने मुस्कुराते हुए कहा, “साहब, मैंने देखा है कि मेरे अंदर भी कभी-कभी बड़ा व्यापारी बनने की इच्छा जागती है। जब आप जैसे बड़े लोग आते हैं, तो मन करता है कि मैं भी एक दिन ऐसा बनूं। यह मेरी जाति वृत्ति है – समाज में ऊँचा स्थान पाने की, सम्मानित होने की चाह।”

“लेकिन मैं इस इच्छा का सिर्फ साक्षी बनता हूँ। मैं देखता हूँ कि यह आती है और फिर चली जाती है। मैं इससे अपनी पहचान नहीं बनाता। मैं न तो इसे दबाता हूँ, न ही इसमें खो जाता हूँ। मैं सिर्फ देखता हूँ।”

ग्राहक ने पूछा, “और ऐसा करने से क्या होता है?”

पंकज ने कहा, “इससे मैं शांति पाता हूँ। मुझे अपने छोटे से व्यापार में भी संतोष मिलता है, और कभी-कभी जब अवसर मिलता है, तो मैं आगे बढ़ने के लिए कदम भी उठाता हूँ – पर हड़बड़ाहट और चिंता के बिना।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. व्यवहार अवलोकन: एक दिन चुनें और उस दिन अपने हर महत्वपूर्ण निर्णय से पहले स्वयं से पूछें: “क्या यह निर्णय मेरी सामाजिक छवि या प्रतिष्ठा से प्रेरित है?”
  2. प्रेरणा की जाँच: जब भी आप किसी बड़े लक्ष्य के लिए काम कर रहे हों, रुकें और अपनी प्रेरणा का अवलोकन करें। क्या यह वास्तव में आपकी इच्छा है या समाज की अपेक्षाओं का परिणाम?
  3. नेतृत्व अभ्यास: जब आप नेतृत्व की स्थिति में हों, अपने भीतर उभरने वाले भावों का अवलोकन करें। आप शक्ति, नियंत्रण या महत्व के भाव को कैसे अनुभव करते हैं?

2. वाणी (Speech) में जाति वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

स्पष्टवादी और आत्मविश्वासी वाणी का अवलोकन

सुधीर की कहानी: सुधीर एक 40 वर्षीय मार्केटिंग प्रोफेशनल हैं। बैठकों में, वह अपनी बात बेबाकी से रखते हैं, चाहे सामने वरिष्ठ अधिकारी ही क्यों न हों। एक दिन, एक सहकर्मी ने उनसे पूछा, “आप इतने स्पष्ट और बिना डरे कैसे बोल लेते हैं?”

सुधीर ने अपनी वाणी के पैटर्न पर विचार किया। “मैं देख रहा हूँ कि मेरी वाणी में एक निर्भीकता और स्पष्टता है,” उन्होंने महसूस किया। “यह मेरी जाति वृत्ति है – अपनी बात मनवाने की, प्रभावशाली दिखने की इच्छा।”

वह इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे स्वयं मान लिए बिना।

अलग ढंग से बात करने की प्रवृत्ति का साक्षित्व

नीलम की कहानी: नीलम को अक्सर लोग कहते थे कि उनका बात करने का तरीका अलग है। वह न तो बहुत ज्यादा बोलती थीं, न ही बिल्कुल चुप रहती थीं। एक दिन, उन्होंने इस पर ध्यान दिया।

“मैं देख रही हूँ कि मेरा बात करने का तरीका प्रचलित पैटर्न से अलग है,” उन्होंने स्वयं से कहा। “मैं न तो अत्यधिक सामाजिक दिखना चाहती हूँ, न ही अलग-थलग। यह मेरी जाति वृत्ति का एक पहलू है – अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने की इच्छा।”

वह इस प्रवृत्ति की साक्षी बनीं, इसके बारे में निर्णय किए बिना।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारी वाणी के पैटर्न को देखता है, उनके साथ तादात्म्य किए बिना। जैसे रेडियो सुनने वाला व्यक्ति संगीत से अलग होता है, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारी वाणी से अलग होता है।

स्थानीय पत्रकार की कहानी:

वरुण एक छोटे शहर के पत्रकार थे। वह अपने बेबाक विचारों के लिए जाने जाते थे और अक्सर स्थानीय मुद्दों पर खुलकर अपनी राय व्यक्त करते थे। एक दिन, एक सहकर्मी ने उनसे पूछा, “क्या आप कभी डरते नहीं हैं कि आपकी स्पष्टवादिता से लोग नाराज हो जाएंगे?”

वरुण ने गहरी साँस ली और कहा, “मैंने अपने भीतर एक पैटर्न देखा है। जब मैं बोलता हूँ, तो मेरे अंदर से एक आवाज आती है जो चाहती है कि लोग मुझे सुनें, मेरी बात मानें, मुझे महत्वपूर्ण समझें। यह मेरी जाति वृत्ति है – प्रभावशाली होने की, अपनी पहचान बनाने की चाह।”

“लेकिन मैं सिर्फ इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करता हूँ। जब मैं बोलता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि मेरे शब्द कहाँ से आ रहे हैं – सच्चाई से या प्रभाव जमाने की इच्छा से। और फिर मैं अपने शब्दों को उसी के अनुसार ढालता हूँ।”

सहकर्मी ने पूछा, “क्या यह मुश्किल नहीं है?”

वरुण ने मुस्कुराकर कहा, “शुरू में था। लेकिन जब आप अपनी वृत्तियों का साक्षी बनना सीख जाते हैं, तो आपके शब्द अधिक सत्य, अधिक करुणा से भरे और कम अहंकार से प्रेरित होते जाते हैं।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. वाणी अवलोकन: एक दिन चुनें और उस दिन अपनी हर महत्वपूर्ण बातचीत से पहले 5 सेकंड रुकें। अपने आप से पूछें: “मैं यह क्यों कह रहा/रही हूँ? क्या यह सच है या प्रभावित करने के लिए है?”
  2. सुनने का अभ्यास: अगली बार जब कोई आपसे बात कर रहा हो, तो सिर्फ सुनें, बिना अपनी प्रतिक्रिया या जवाब तैयार किए। देखें कि क्या आपके मन में प्रभावित करने की इच्छा जागती है।
  3. मौन दिवस: हर महीने एक दिन चुनें जब आप सिर्फ जरूरी बातें ही करें। देखें कि बात न करने पर आपके मन में कैसे विचार और भाव उठते हैं।

3. विचार (Thoughts) में जाति वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

सफल लोगों से प्रेरित विचारों का अवलोकन

मोहन की कहानी: मोहन एक स्टार्टअप के संस्थापक हैं। वह अक्सर सफल उद्यमियों की आत्मकथाएँ पढ़ते हैं और उनकी तरह सोचने की कोशिश करते हैं। एक दिन, ध्यान करते समय, उन्होंने इस पैटर्न पर गौर किया।

“मैं देख रहा हूँ कि मेरे विचार अक्सर सफलता और प्रतिष्ठा के इर्द-गिर्द घूमते हैं,” उन्होंने महसूस किया। “मैं उन लोगों की तरह सोचना चाहता हूँ जिन्होंने समाज में बड़ी सफलता पाई है। यह मेरी जाति वृत्ति है – सामाजिक पहचान और प्रतिष्ठा प्राप्त करने की इच्छा।”

मोहन इस वृत्ति के साक्षी बने, इससे जुड़े बिना।

अलग ढंग से सोचने की प्रवृत्ति का साक्षित्व

प्रीति की कहानी: प्रीति एक डिजाइनर हैं। उन्हें अक्सर लोग कहते हैं कि उनका सोचने का तरीका अलग है। एक परियोजना पर काम करते हुए, उन्होंने इस पर विचार किया।

“मैं देख रही हूँ कि मेरी सोच प्रचलित तरीकों से अलग चलती है,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी जाति वृत्ति का एक पहलू है – अपनी विशिष्ट पहचान बनाने की, अलग दिखने की इच्छा।”

वह इस प्रवृत्ति की साक्षी बनीं, इसे अच्छा या बुरा कहे बिना।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे विचारों के प्रवाह को देखता है, उनमें बहे बिना। जैसे आकाश बादलों को आते-जाते देखता है, वैसे ही अनुभवकर्ता विचारों को देखता है।

ग्रामीण शिक्षक की कहानी:

राजेंद्र एक गाँव के स्कूल में शिक्षक थे। उन्होंने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे थे। एक दिन, एक युवा शिक्षक ने उनसे पूछा, “गुरुजी, आप हमेशा इतने संतुष्ट और शांत कैसे रहते हैं, जबकि हमारे स्कूल में इतनी समस्याएँ हैं?”

राजेंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा, “देखो बेटा, मैंने अपने विचारों का गहरा अध्ययन किया है। मैंने देखा है कि हमारे मन में अलग-अलग तरह के विचार आते हैं। कभी मैं भी सोचता हूँ कि काश मैं शहर के बड़े स्कूल में होता, या बड़ा अधिकारी होता। यह मेरी जाति वृत्ति है – समाज में बड़ा पद पाने की, प्रतिष्ठित होने की इच्छा।”

“लेकिन मैं इन विचारों का सिर्फ साक्षी बनता हूँ। मैं इन्हें आने-जाने देता हूँ, जैसे पक्षी आकाश में उड़ते हैं। मैं न तो इन्हें पकड़ता हूँ, न ही इनसे भागता हूँ। मैं सिर्फ देखता हूँ।”

युवा शिक्षक ने पूछा, “पर ऐसा करने से क्या फायदा होता है?”

राजेंद्र ने कहा, “जब तुम विचारों के साक्षी बनते हो, तो तुम्हें पता चलता है कि तुम विचार नहीं हो। तुम उससे कहीं गहरे और विशाल हो। इससे तुम्हें अपने वर्तमान में संतोष मिलता है, बिना भविष्य की चिंता या अतीत के पछतावे के।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. विचार डायरी: एक सप्ताह तक, हर शाम 5 मिनट के लिए अपने विचारों को लिखें। विशेष रूप से ध्यान दें कि कितने विचार सामाजिक प्रतिष्ठा, सफलता, और दूसरों पर प्रभाव से जुड़े हैं।
  2. प्रेरणा स्रोत का अवलोकन: अपने प्रेरणा स्रोतों (पुस्तकें, व्यक्ति, फिल्में) की सूची बनाएँ और देखें कि क्या इनमें एक पैटर्न है। क्या ये सब सामाजिक सफलता से जुड़े हैं?
  3. विचार अंतराल अभ्यास: दिन में कई बार, कुछ क्षणों के लिए, अपने विचारों के बीच अंतराल पर ध्यान दें। इन खाली स्थानों में अपने आप को अनुभव करें, विचारों से परे।

4. संबंध (Relationships) में जाति वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का अवलोकन

संदीप की कहानी: संदीप एक परिवार के मुखिया हैं। वह अपने माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं। एक दिन, उन्होंने अपने संबंधों के पैटर्न पर गौर किया।

“मैं देख रहा हूँ कि मुझे किसी पर निर्भर रहना पसंद नहीं है, लेकिन मैं अपने पर निर्भर लोगों की देखभाल करने की जिम्मेदारी महसूस करता हूँ,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी जाति वृत्ति है – परिवार में नेतृत्व का स्थान रखने की, सम्मानित होने की इच्छा।”

संदीप इस वृत्ति के साक्षी बने, इससे जुड़े बिना।

व्यावहारिक संबंधों का साक्षित्व

रेखा की कहानी: रेखा एक प्रोफेशनल हैं। उनके मित्र अक्सर कहते हैं कि वह बहुत व्यावहारिक हैं और भावुकता में आकर निर्णय नहीं लेतीं। एक दिन, उन्होंने इस प्रवृत्ति पर विचार किया।

“मैं देख रही हूँ कि मेरे संबंधों में एक व्यावहारिकता है,” उन्होंने महसूस किया। “मैं भावनाओं से ज्यादा तर्क और उपयोगिता पर विश्वास करती हूँ। यह मेरी जाति वृत्ति का एक पहलू है – सामाजिक और व्यावसायिक सफलता के लिए संबंधों को साधन के रूप में देखने की प्रवृत्ति।”

वह इस पैटर्न की साक्षी बनीं, इसे अच्छा या बुरा कहे बिना।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे संबंधों के पैटर्न को देखता है, उनमें उलझे बिना। जैसे दर्पण सभी चीजों को प्रतिबिंबित करता है पर उनसे प्रभावित नहीं होता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे संबंधों को देखता है।

छोटे व्यापारी की कहानी:

रामलाल एक छोटे कपड़े के व्यवसाय के मालिक थे। उनके कई ग्राहक, कर्मचारी और आपूर्तिकर्ता थे। एक दिन, उनके बेटे ने पूछा, “पिताजी, आप इतने सारे लोगों के साथ इतने अच्छे संबंध कैसे रखते हैं?”

रामलाल ने कहा, “बेटा, मैंने अपने संबंधों में एक पैटर्न देखा है। मुझे लोगों से जुड़ना अच्छा लगता है, विशेषकर जब वे मेरे व्यापार में मदद कर सकते हैं या मुझे सामाजिक सम्मान दिला सकते हैं। यह मेरी जाति वृत्ति है – संबंधों को सामाजिक और व्यावसायिक लाभ के लिए उपयोग करने की प्रवृत्ति।”

“लेकिन मैं इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करता हूँ। जब मैं किसी से बात करता हूँ, तो मैं देखता हूँ – क्या मैं इस व्यक्ति से कुछ पाना चाहता हूँ या वास्तव में उसकी परवाह करता हूँ? इस अवलोकन से मेरे संबंध अधिक गहरे और सच्चे होते जाते हैं।”

बेटे ने पूछा, “क्या इससे व्यापार पर असर नहीं पड़ता?”

रामलाल ने मुस्कुराकर कहा, “उल्टा, इससे व्यापार बेहतर होता है। जब तुम सच्चे संबंध बनाते हो, तो लोग तुम्हारी ईमानदारी और निष्ठा को पहचानते हैं। लेकिन मैं अब संबंधों को सिर्फ व्यापार के लिए नहीं, उनके अपने महत्व के लिए भी मूल्य देता हूँ।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. संबंध अवलोकन: अपने मुख्य संबंधों की सूची बनाएँ और प्रत्येक के सामने लिखें कि आप इस संबंध से क्या चाहते हैं। फिर देखें – क्या अधिकांश संबंध सामाजिक लाभ या प्रतिष्ठा से जुड़े हैं?
  2. निस्वार्थ कार्य अभ्यास: हर सप्ताह एक ऐसा कार्य करें जिससे आपको कोई सामाजिक लाभ न मिले। देखें कि इस दौरान आपके मन में क्या विचार आते हैं।
  3. निर्भरता का अवलोकन: जब कोई आप पर निर्भर हो, तो अपने भीतर उठने वाले भावों का अवलोकन करें। क्या आप महत्वपूर्ण महसूस करते हैं? क्या आप बोझ महसूस करते हैं?

5. मनोरंजन (Recreation) में जाति वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

महान लोगों की जीवनियों में रुचि का अवलोकन

विजय की कहानी: विजय एक कॉलेज छात्र हैं। उन्हें अपना अधिकांश खाली समय महान उद्यमियों, नेताओं और विचारकों की जीवनियाँ पढ़ने में बिताना पसंद है। एक दिन, उन्होंने इस रुचि पर गौर किया।

“मैं देख रहा हूँ कि मुझे ऐसे लोगों के बारे में पढ़ना पसंद है जिन्होंने दुनिया में बड़ा प्रभाव छोड़ा,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी जाति वृत्ति है – सफलता और प्रभाव पाने की, समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखने की इच्छा।”

विजय इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे अच्छा या बुरा कहे बिना।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन के विकल्पों को देखता है, उनके साथ तादात्म्य किए बिना। जैसे कोई संगीत को सुनता है लेकिन उसमें खो नहीं जाता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे मनोरंजन के तरीकों को देखता है।

लाइब्रेरियन की कहानी:

सुमन जी पिछले 25 वर्षों से अपने शहर के पुस्तकालय में काम कर रहीं थीं। उनके पास हजारों किताबें थीं, लेकिन उन्होंने देखा कि अधिकांश लोग जीवनियाँ और सफलता की कहानियाँ ही पढ़ना पसंद करते थे। एक दिन, एक युवा पाठक ने उनसे पूछा, “आपको किस तरह की किताबें पढ़ना पसंद है?”

सुमन जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मुझे भी पहले सिर्फ महान लोगों की जीवनियाँ पढ़ना पसंद था। मैंने देखा कि मेरे भीतर एक इच्छा थी – उनकी तरह बनने की, समाज में प्रतिष्ठित होने की, सफलता पाने की। यह मेरी जाति वृत्ति थी – सामाजिक पहचान और स्थिति के प्रति आकर्षण।”

“लेकिन धीरे-धीरे, मैंने इस वृत्ति का साक्षी बनना सीखा। अब मैं विभिन्न प्रकार की किताबें पढ़ती हूँ – कभी जीवनियाँ, कभी कविता, कभी विज्ञान। मैं देखती हूँ कि पढ़ते समय मेरे मन में क्या भाव उठते हैं, कौन सी किताबें मुझे सिर्फ सामाजिक प्रतिष्ठा की चाह से आकर्षित करती हैं और कौन सी वास्तव में मेरे हृदय को छूती हैं।”

युवा पाठक ने पूछा, “तो आप कहना चाहती हैं कि सफलता की कहानियाँ पढ़ना गलत है?”

सुमन जी ने कहा, “बिलकुल नहीं। कोई भी पुस्तक अच्छी या बुरी नहीं होती। महत्वपूर्ण यह है कि हम अपने पढ़ने के उद्देश्य के प्रति जागरूक रहें। क्या हम सिर्फ अपने अहंकार को तृप्त करने के लिए पढ़ रहे हैं, या वास्तव में कुछ सीखने और विकसित होने के लिए? जब हम इस अंतर को देखते हैं, तो हमारा पढ़ना अधिक सार्थक और आनंददायक हो जाता है।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. मनोरंजन डायरी: एक सप्ताह तक अपने मनोरंजन के तरीकों को नोट करें और देखें कि इनमें कौन से जाति वृत्ति से प्रेरित हैं (सामाजिक प्रतिष्ठा, सफलता की चाह, आदि)।
  2. विविधता प्रयोग: अपने मनोरंजन में विविधता लाएँ। कुछ ऐसा करें जो आम तौर पर आपकी सामाजिक पहचान से जुड़ा नहीं है। देखें कि यह कैसा महसूस होता है।
  3. अवलोकन पठन: अगली बार जब आप कोई जीवनी पढ़ें, तो अपने भीतर उठने वाले भावों का अवलोकन करें। क्या आप उस व्यक्ति की तरह बनना चाहते हैं? क्यों?

6. स्वास्थ्य (Health) में जाति वृत्ति का अवलोकन

दर्शनीय वृत्तियाँ:

सामान्य स्वास्थ्य का अवलोकन

अरुण की कहानी: अरुण एक मिडिल-एज प्रोफेशनल हैं। वह अपने स्वास्थ्य के बारे में न तो बहुत चिंतित हैं, न ही बिल्कुल लापरवाह। एक दिन, वार्षिक स्वास्थ्य जाँच के दौरान, उन्होंने अपने स्वास्थ्य के प्रति अपने रवैये पर विचार किया।

“मैं देख रहा हूँ कि मेरा स्वास्थ्य सामान्य है, और मैं इसे बहुत महत्व नहीं देता,” उन्होंने स्वयं से कहा। “यह मेरी जाति वृत्ति का एक पहलू है – शारीरिक उपस्थिति को उतना महत्व न देना, जितना सामाजिक और व्यावसायिक सफलता को।”

अरुण इस वृत्ति के साक्षी बने, इसे निर्णित किए बिना।

अनुभवकर्ता का दृष्टिकोण:

अनुभवकर्ता हमारे स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों और आदतों को देखता है, उनसे प्रभावित हुए बिना। जैसे कोई वाहन का रखरखाव करता है पर स्वयं को वाहन नहीं मानता, वैसे ही अनुभवकर्ता हमारे शरीर के लिए निर्णयों को देखता है।

ग्रामीण चिकित्सक की कहानी:

डॉक्टर वर्मा एक गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चलाते थे। उन्होंने देखा कि अधिकांश ग्रामीण अपने स्वास्थ्य को लेकर कैसे रवैया रखते हैं। एक दिन, एक युवा मरीज ने उनसे पूछा, “डॉक्टर साहब, आप खुद के स्वास्थ्य का ध्यान कैसे रखते हैं?”

डॉक्टर वर्मा ने कहा, “मैंने अपने भीतर भी देखा है कि स्वास्थ्य के प्रति मेरा रवैया कैसा है। कभी-कभी मैं भी अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर देता हूँ, विशेषकर जब काम का दबाव अधिक होता है। यह मेरी जाति वृत्ति का एक हिस्सा है – समाज में अपने काम और योगदान को शरीर की देखभाल से अधिक महत्व देना।”

“लेकिन मैं इस वृत्ति का साक्षी बनने का प्रयास करता हूँ। जब मैं देखता हूँ कि मैं अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर रहा हूँ, तो मैं रुकता हूँ और सोचता हूँ – क्या मैं अपने शरीर के साथ न्याय कर रहा हूँ? क्या मैं अपने शरीर को सिर्फ एक उपकरण की तरह इस्तेमाल कर रहा हूँ, या इसकी देखभाल कर रहा हूँ?”

मरीज ने पूछा, “और इससे क्या फर्क पड़ता है?”

डॉक्टर वर्मा ने मुस्कुराकर कहा, “जब हम अपने शरीर के प्रति अपने रवैये के साक्षी बनते हैं, तो हम अपने शरीर की जरूरतों को अधिक स्पष्टता से देखते हैं। हम अपने शरीर को न तो सिर्फ सामाजिक प्रतिष्ठा का माध्यम मानते हैं (जैसे स्टेटस के लिए जिम जाना), न ही इसे पूरी तरह नजरअंदाज करते हैं। हम एक संतुलित दृष्टिकोण विकसित करते हैं, जहाँ शरीर की देखभाल भी महत्वपूर्ण है, बिना इसके प्रति आसक्त हुए।”

दैनिक जीवन के लिए सुझाव:

  1. स्वास्थ्य अवलोकन: एक सप्ताह तक अपने स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों को नोट करें और देखें कि इनमें से कितने सामाजिक प्रतिष्ठा या दिखावे से प्रेरित हैं।
  2. शरीर श्रवण अभ्यास: हर दिन 5 मिनट के लिए शांति से बैठकर अपने शरीर की आवाज सुनें। शरीर क्या चाहता है, क्या आवश्यकताएँ हैं? इसे सामाजिक अपेक्षाओं से अलग सुनें।
  3. संतुलित दृष्टिकोण: अपने स्वास्थ्य निर्णयों में, स्वयं से पूछें: “क्या यह निर्णय मेरे शरीर के हित में है या सिर्फ सामाजिक अपेक्षाओं के कारण है?”

जाति वृत्ति की जागरूकता और उससे आगे बढ़ना

हमारी जाति वृत्ति – सामाजिक पहचान, प्रतिष्ठा, सफलता और प्रभाव की चाह – हमारी मानवीय प्रकृति का एक हिस्सा है। इसे बुरा या अनुचित मानने की आवश्यकता नहीं है। सच्चा मार्ग है इसके प्रति जागरूक होना, इसका अनुभवकर्ता बनना।

वरिष्ठ महाराज का उपदेश:

एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु अक्सर अपने शिष्यों से कहते थे, “जाति वृत्ति न तो अच्छी है, न बुरी – यह सिर्फ है। यह हमारी मानवीय प्रकृति का हिस्सा है। इससे लड़ो मत, इसे दबाओ मत। बस इसके साक्षी बनो।”

एक बार एक शिष्य ने पूछा, “महाराज, पर क्या सामाजिक प्रतिष्ठा और सफलता की इच्छा रखना गलत नहीं है? क्या यह आध्यात्मिक विकास में बाधा नहीं है?”

महाराज ने मुस्कुराकर कहा, “जब तक तुम इन इच्छाओं से तादात्म्य रखते हो, तब तक ये बाधा हैं। जब तुम इनके साक्षी बन जाते हो, तब ये सीढ़ी बन जाती हैं। क्योंकि इन्हें देखकर, तुम स्वयं को इनसे परे जानते हो।”

शिष्य ने फिर पूछा, “तो क्या हमें सामाजिक सफलता का प्रयास छोड़ देना चाहिए?”

महाराज ने कहा, “नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं। तुम अपने कर्तव्य करो, अपने लक्ष्यों का अनुसरण करो, सफलता का प्रयास करो। परंतु साथ ही साथ, इन सबके पीछे की वृत्तियों के साक्षी बनो। तब तुम्हारी सफलता का आधार अहंकार नहीं, बल्कि प्रेम और सेवा होगा।”

दैनिक जीवन में जाति वृत्ति के व्यावहारिक उदाहरण

1. कार्यालय में दिखाई देने वाली जाति वृत्ति

अनिता का अनुभव: अनिता एक कंपनी में मैनेजर हैं। एक महत्वपूर्ण मीटिंग में, उन्होंने अपना विचार रखा, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर बाद, उनके एक वरिष्ठ सहकर्मी ने वही विचार रखा और सभी ने उसकी सराहना की। अनिता के भीतर गुस्सा और अपमान का भाव जागा।

अनुभवकर्ता के रूप में, अनिता ने इस क्षण को देखा: “मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर मान्यता पाने की, महत्वपूर्ण माने जाने की इच्छा है। यह मेरी जाति वृत्ति है – सामाजिक प्रतिष्ठा और मान्यता की चाह।”

इस जागरूकता से, वह अपने भावों से थोड़ा अलग हो सकीं और स्थिति को अधिक शांति से देख सकीं।

2. परिवार में दिखाई देने वाली जाति वृत्ति

मोहन का अनुभव: मोहन के बेटे ने बताया कि वह इंजीनियर नहीं, बल्कि संगीतकार बनना चाहता है। मोहन के मन में तुरंत चिंता और निराशा का भाव जागा – “लोग क्या कहेंगे? हमारे परिवार में सब इंजीनियर हैं।”

अनुभवकर्ता के रूप में, मोहन ने इस प्रतिक्रिया को देखा: “मैं देख रहा हूँ कि मेरे भीतर सामाजिक प्रतिष्ठा और परंपरागत सफलता की चाह है। यह मेरी जाति वृत्ति है – समाज में एक निश्चित छवि बनाए रखने की इच्छा।”

इस जागरूकता से, वह अपने बेटे की इच्छाओं को अधिक खुले मन से सुन सके।

3. सोशल मीडिया का उदाहरण

प्रिया का अनुभव: प्रिया ने अपनी एक सुंदर छुट्टी की तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की। जब उन्हें अधिक लाइक्स और कमेंट्स नहीं मिले, तो वह निराश हो गईं।

अनुभवकर्ता के रूप में, प्रिया ने इस प्रतिक्रिया को देखा: “मैं देख रही हूँ कि मेरे भीतर सामाजिक मान्यता और प्रशंसा पाने की चाह है। यह मेरी जाति वृत्ति है – दूसरों की नज़रों में अच्छा और सफल दिखने की इच्छा।”

इस जागरूकता से, वह अपनी खुशी को दूसरों की प्रतिक्रिया से अलग करने की ओर एक कदम बढ़ सकीं।

अनुभवकर्ता के दृष्टिकोण से जाति वृत्ति से ऊपर उठने की यात्रा

अमित की यात्रा:

अमित एक प्रतिष्ठित वकील थे। उन्होंने अपना करियर सामाजिक प्रतिष्ठा और सफलता की चाह से शुरू किया था। वह बड़े मुकदमे जीतते, महंगी कारें खरीदते, और समाज में अपनी एक खास पहचान रखते थे। फिर भी, अंदर से वह खाली और असंतुष्ट महसूस करते थे।

एक दिन, एक पुराने मित्र ने उन्हें एक आध्यात्मिक शिविर में आमंत्रित किया। वहाँ उन्होंने अनुभवकर्ता की अवधारणा के बारे में सीखा – वह जो देखता है, अनुभव करता है, पर स्वयं विचारों, भावनाओं और वृत्तियों से अलग है।

अमित ने अपनी जाति वृत्ति को देखना शुरू किया:

  • वह देखते कि कैसे वह हर बातचीत में अपनी बुद्धिमत्ता और ज्ञान दिखाना चाहते हैं
  • वह देखते कि कैसे वह अपनी सफलता की कहानियां दूसरों को सुनाते रहते हैं
  • वह देखते कि कैसे वह हमेशा अपने सामाजिक नेटवर्क को बढ़ाने की सोचते रहते हैं

वह इन सब प्रवृत्तियों के साक्षी बनते गए, न इनसे लड़े, न ही इनमें खोए।

धीरे-धीरे, एक अद्भुत परिवर्तन आया। जब आप किसी वृत्ति के साक्षी बनते हैं, तो उसकी पकड़ कमजोर हो जाती है। अमित ने पाया कि वह अब अपने काम को अधिक सहजता से, सेवाभाव से कर पा रहे थे। वह अब भी सफल थे, लेकिन सफलता का परिभाषा बदल गई थी।

एक दिन, एक युवा वकील ने उनसे पूछा, “अमित सर, आप इतने शांत और संतुष्ट कैसे रहते हैं, जबकि इस पेशे में इतना दबाव है?”

अमित ने मुस्कुराकर कहा, “क्योंकि मैंने अपनी वृत्तियों को देखना सीख लिया है। जब मैं देखता हूँ कि मेरे अंदर प्रतिष्ठा, सफलता और मान्यता की चाह जागती है, तो मैं उसका साक्षी बनता हूँ, उसमें खोता नहीं। मैं वह नहीं हूँ जो समाज मुझे मानता है, न ही वह जो मैं खुद को मानता था। मैं इससे कहीं गहरा और विशाल हूँ – मैं अनुभवकर्ता हूँ, साक्षी हूँ, चैतन्य हूँ।”

निष्कर्ष: जाति वृत्ति से परे जीवन की यात्रा

जाति वृत्ति – सामाजिक पहचान, प्रतिष्ठा, सफलता और प्रभाव की चाह – मानव स्वभाव का एक स्वाभाविक हिस्सा है। यह न तो अच्छी है, न बुरी – यह सिर्फ है।

जब हम अनुभवकर्ता होते हैं – इन वृत्तियों के साक्षी, दृष्टा – तब हम इनके प्रभाव से स्वतंत्र हो जाते हैं। हम इनसे लड़ते नहीं, इन्हें दबाते नहीं, इन्हें अस्वीकार नहीं करते – हम सिर्फ इन्हें देखते हैं।

और इस देखने में, एक अद्भुत परिवर्तन होता है। हम अपने अंदर एक ऐसे स्थान को पाते हैं जो सामाजिक मान्यता, प्रतिष्ठा या सफलता पर निर्भर नहीं है। हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं, जो जाति वृत्ति से परे है।

इसका अर्थ यह नहीं है कि हम सामाजिक जीवन, करियर या सफलता का त्याग कर दें। बल्कि, हम इन सबको अधिक स्वतंत्रता, सहजता और प्रेम से जीते हैं – इनके गुलाम बने बिना, इनकी दासता से मुक्त होकर।

आज ही से अपने जीवन में जाति वृत्ति के प्रति साक्षी भाव विकसित करें। अपनी सामाजिक पहचान, प्रतिष्ठा और सफलता की इच्छाओं को देखें। उन्हें न तो अच्छा कहें, न बुरा। बस देखें, और उस देखने में स्वतंत्रता पाएँ।

याद रखें, आप अपनी वृत्तियों के स्वामी नहीं, न ही दास – आप उनके साक्षी हैं, अनुभवकर्ता हैं, आत्मन हैं।

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Ajay Shukla

Throughout my life, I've worked across multiple industries, and truthfully, defining myself in one line has never been easy. However, a few roles resonate deeply with me: digital marketing strategist, former journalist (Dainik Jagran) and journalism teacher, and a lifelong student of existence. Each experience has shaped who I am, merging practical insight with a quest for deeper understanding.

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